अंक- 7 : संजना से मुलाक़ात (अध्याय का आखिरी अंक)

अभी तक तो मैं संजना की सगाई वाली बात से उभरा भी नहीं था कि अब रिश्ते टूटने वाली बात सुनकर तो दिल बैठा जा रहा था । कल तक अपने लिए बहुत चिंता होती थी सोचता था की यह मेरे साथ क्या हो गया लेकिन मीता से बात करने के बाद सोचने लगा कि आखिर संजना के जीवन में इतना सब क्या हो गया । दिन-भर छोटी की समझाइश के बाद अभी तो मैंने निश्चय किया ही था कि, आज के बाद कभी भी संजना के बारे में नहीं सोचूंगा 

लेकिन मीता से बात करने के बाद वापस से संजना के बारे में सोचने लगा था कि आखिर उसकी जीवन में ऐसा क्या हो गया जो उसे ऐसा कदम उठाना पड़ा । सारी बीमारी, कमजोरी ना जाने कहां खो गई थी.... बस मन में इच्छा हो रही थी कि एक बार संजना से मिल लूं।

लेकिन संजना से पहले मीता को मनाना बहुत जरूरी था क्योंकि वह कहीं ना कहीं यह सोचती थी कि संजना के हालत का जिम्मेदार मैं हूं । हालांकि ऐसा था नहीं लेकिन उसकी बातों से तो ऐसा ही प्रतीत होता था ।
मैंने झट से गाड़ी निकाली और मीता के घर जाने का फैसला किया । शुरू शुरू में मीता मुझसे मिलना नहीं चाहती थी लेकिन मीता के पति के समझाने के बाद वह मेरी बात सुनने को राजी हुई । मेरे लिए मीता को समझाना बहुत मुश्किल था ।

मीता से मेरी मुलाकात हुई, और आखिरकार उसने मुझे माफ़ कर दिया । संजना से मिलने के पहले ही मैंने, मीता से संजना के रिश्ते के बारे में पूछा और उसने जो बताया वह सुनकर तो मेरे पांव के नीचे से जमीन ही खिसक गई । मीता की बताई हुई बातों पर यकीन करना मुश्किल था लेकिन संजना को मैं काफी समय से जानता था और जैसी संजना थी  वैसे में तो मीता की बात ही सच लगने लगी थी।

मीता ने बताया कि - जिस प्राइवेट कंपनी में संजना की नौकरी लगी थी उसी कंपनी में उसी के ही समुदाय का एक लड़का था, जिसका नाम अनिल था । अनिल, संजना की कंपनी में ऊंचे पद पर था या कहा जाए तो  संजना का बॉस था । शुरू से ही वो संजना को पसंद करने लगा था और वह यह बात जानता था कि वह दोनों एक ही जाति के हैं तो आगे उनकी बात बन सकती है । शुरू-शुरू में तो अनिल और संजना की बातें सामान्य थी, तो संजना को कभी महसूस नहीं हुआ ।
अनिल संजना कि हर साल सिफारिश लगा कर उसका प्रमोशन करवा देता था हालांकि ऐसा संजना को लगता था वास्तव में तो संजना की खुद की काबिलियत थी जो उसे स्थान पर पहुंचा रही थी ।
जैसे जैसे ही संजना की आमदनी बढ़ी वैसे-वैसे ही संजना ने अपने खर्चे भी बढ़ा दिए । वह शुरू से ही परिवार के लिए बहुत कुछ करना चाहती थी । ऐसे में संजना ने घर के आर्थिक ढांचे को मजबूत करने के लिए खुद का घर बनाने और बहन की मेडिकल पढ़ाई के लिए बहुत सारा लोन बैंक से कर्ज ले लिया ।

संजना यह भी जानती थीं कि अब उसके लिए ये नौकरी करना जरूरी हो गया था ताकि वह इतने बड़े लोन को आसानी से चुका सके । फिर भी सब संजना को सामान्य सा लग रहा था उसे लगा था कि लगातार नौकरी करते रहने से लोन जल्दी से ख़तम हो जाएगा । वह इन सब बातों से अनजान थी कि अनिल उसके बारे में कुछ सोचता भी है, वह इस बात से अनजान नहीं थी कि अनिल उसके प्रति कैसी भावना रखता है । थोड़े दिन बाद जब अनिल ने अपनी बात संजना को कहीं तो यह बात उसे सही ना लगी और उसने मना कर दिया । अनिल ने तो संजना से शादी करने का मन ही बना लिया था इसलिए उसने जब संजना के तौर पर बात नहीं बनी तो उसने घर आकर संजना का रिश्ता मांग लिया ।
संजना के माता-पिता को भी लगा कि दोनों एक ही जगह पर काम करते हैं और दोनों एक ही समुदाय के थे तो ऐसे में शादी के बाद तो आगे बढ़नी ही थीं । हालांकि संजना का इतना मन नहीं था शादी का लेकिन फिर भी परिवार की खुशी के लिए आखिर कब तक ना कहती और उसे लग रहा था कि एक रिश्ते को निभाने के लिए शायद ये छोटी मोटी चीजें तो उसे एडजस्ट (समायोजित) करनी ही पड़ेगी ।

रिश्ता रखने की शुरुआत में तो सब कुछ ठीक था, लेकिन जैसे-जैसे रिश्ता पक्का होने लगा अनिल, संजना पर हक जताने लगा था । वह अक्सर संजना को कहता था कि उसको उसकी नौकरी उसके दम पर है । क्योंकि संजना के काफी लोन थे तो इस हालात में भी नहीं थी कि वह किसी और कंपनी में जाकर दूसरी नौकरी ढूँढे और वैसे भी अनिल के साथ उसका रिश्ता हो गया था तो वह ज्यादा कुछ नहीं कहती थी कभी-कभार अनिल, संजना को अपने किसी घरेलू कार्यक्रम पर ले जाता था तो उसे काफी कुछ कह देता । संजना एक सामान्य सी लड़की है ऐसे में संजना काफी काफी हद तक सादगी पसंद करती थी लेकिन अनिल का पूरा परिवार थोड़ा हाई क्लास खुद को समझता था । वह हमेशा संजना को उसके पहनावे ओढ़ावे पर टोकता अनिल भी हमेशा कहता है क्या तुम हमेशा यह सलवार सूट पहन लेती हो कभी तो कुछ वेस्टर्न ट्राई किया करो । सादगी पसंद संजना के लिए यह बहुत मुश्किल था ।
संजना, अनिल के किसी भी पार्टियां,  गेट-टुगेदर में आने से कतराते थी क्योंकि कहीं ना कहीं संजना और संजना का परिवार उसे बदलने में लगा हुआ था । अनिल की मां यानी संजना की होने वाली सास भी उसे सलवार सूट या साड़ी के बजाय इसका जींस टॉप पहनने को कहती थी शायद उनका मनना था कि ऐसे में उनकी होने वाली बहु ज्यादा स्मार्ट लगेगी । लेकिन संजना वास्तव में ऐसी थी ही नहीं तो ऐसे में खुद को बदलना उसके लिए बहुत मुश्किल था । हमेशा चुप रहने वाली संजना सब कुछ सहती रही है उसे कितना भी क्यों ना कहा गया हो । बस संजना को लगता था की शादी में ये छोटी मोटी चीजें हैं जो उसे शादी के बाद से कॉम्प्रोमाइज करनी पड़ेगी ।

संजना काफी दिन तक ये सब सह रही थी आखिकार संजना के सब्र का बांध टूटा जब अनिल ने शादी के बाद संजना को काम न करने की बात कही । अनिल और अनिल का परिवार चाहता था कि संजना शादी के बाद पूरी तरीके से हाउस-वाइफ बन जाए ।

धीरे-धीरे शादी का दिन करीब आने लगा, संजना के लिए जरूरी हो गया था कि वह इस बारे में अपने परिवार से बात करें लेकिन कहीं ना कहीं संजना को भी डर था । इतनी बड़ी बात करना किसी के लिए भी आसान नहीं होता है उसके आस पास केवल दो ही लोग थे जो उसकी इस सब में मदद कर सकते थे एक मीता और एक मैं । मीता भी उस समय पश्चात में संजना के पास नहीं थी जो उसकी मदद कर सके और अगर पास होती तो भी मीता के लिए मुश्किल ही था । संजना ने मुझसे भी मिलने की और बात करने की काफी कोशिश की लेकिन मैं भी छोटी की सगाई में इतना व्यस्त था कि संभव नहीं हो पाया ।
संजना ने एक बार घर आकर भी बात करने की कोशिश की लेकिन उस समय मैं भी वहां नहीं था और ना ही संजना को और कोई मेरे परिवार में पहचानता था जो उसकी उसकी खबर मुझे दे पाए ।

मैंने जब संजना को फोन किया तो वह मुझसे बात करना चाहती थी लेकिन मैं हमेशा से वैसा ही था संजना की सगाई की खबर सुनकर मैंने संजना से बेरुखी से बात की और जानना भी नहीं चाहा कि क्यों मुझसे वो बात करना चाहती थी । संजना ने मुझे काफी फोन करने की कोशिश की लेकिन मैं उसके सारे फोन कॉल्स नजरअंदाज कर रहा था ।
संजना के पास कोई भी नहीं था जिससे वह सब खुल कर बात कर सके लेकिन अनिल और अनिल के परिवार का दबाव इतना इतना बढ़ गया था कि अब मुश्किल हो गया था इस रिश्ते को बचाना । सगाई में केवल एक दिन बचा था और सारे मेहमान भी आ चुके थे सारी तैयारियां भी हो चुकी थी ऐसे में आखिरकार संजना ने हिम्मत की और अपने माता पिता से ही जाकर बात कह दी । आखिरकार मां- बाप तो मां-बाप ही होते हैं बच्चों की खुशियों से ज्यादा कुछ नहीं चाहते हैं और सगाई से एक दिन पहले संजना के पिता ने फैसला लिया कि वह रिश्ता नहीं कर सकते हैं ।

अनिल का परिवार यह बात सुनकर आक्रोशित हो उठा और अनिल के साथ ही उसका पूरा परिवार संजना के घर आ धमका । काफी बहस और बातचीत हुई । अनिल का पूरा परिवार शादी के लिए काफी दबाव बनाता रहा लेकिन संजना के पिता हाथ जोड़ कर चुपचाप खड़े थे और एक शब्द भी नहीं कहा । संजना के लिए अपने पिता की ऐसी अवस्था अवस्था देखना बहुत दुखद था उसे लगता है कि सारी गलती उसी की ही है हालांकि संजना के माता-पिता ने उसे कभी जोर नहीं दिया कि वह अनिल से शादी करें । सगाई के पहले भी जब संजना ने अपने पिता से यह बात कही तो ही सजना के आंसू देख पिता ने एक सवाल भी संजना से नहीं पूछा ।
घर में आए हुए मेहमानों ने  संजना से हजार सवाल पूछते, कोई यह नहीं पूछना चाहता था कि आखिर ऐसा क्या हो गया जो वो रिश्ता नहीं करना चाहती है । सब उसे ही कहते कि जो भी है उसे आपस में सुलझा लो और हो सके तो रिश्ते को बचा लो लेकिन यह सब अब संजना के बस में भी नहीं था ।

संजना और संजना का पूरा परिवार इसके बाद बहुत टूट गया उनके लिए इन सब से बाहर आना मुश्किल था संजना ने भी सगाई के एक दिन बाद ही भोपाल छोड़ दिया । उसने अपनी दिल्ली वाली नौकरी भी छोड़ दी । और घर में भी नहीं बताया की वह अब कहाँ जा रही हैं ।
मीता के मुंह से यह सब बातें सुनकर मैं बिल्कुल सुन्न पड़ गया था कभी सोचा नहीं था कि छोटी सी मुस्कान के पीछे संजना इतना कुछ दर्द छुपाए बैठी है । हमेशा से मैं केवल अपनी दृष्टि से संजना के बारे में सोचता था कभी उसकी नज़र से सोचा ही नहीं ।

अपनी वास्तविक जीवन में भी हम ऐसे ही करते हैं। हमें कोई तब तक अच्छा लगता है जब तक हम उसे पसंद करते हैं लेकिन वह कह दे कि वह हमें पसंद नहीं करता तो हम दुनिया भर की सारी बुरी यातनाएं उसके लिए सोच लेते हैं ।
मैं भी कुछ ऐसा ही था जब मुझे लगने लगा कि संजना मेरी नहीं हो सकती तो मैं से मिलना भी जरूरी नहीं समझा उसकी बात भी नहीं सुननी चाहिए और अब जो हुआ...... वह बहुत दर्द देने वाला था !

संजना की हालात मीता के मुंह से सुनने के बाद बस मन हुआ था कि कैसे जल्दी से जल्दी उससे मिला जाये । मीता भी संजना से मिलना चाहती थी, तो हम दोनों ने निर्णय लिया कि हम दोनों संजना से मिलने जाएंगे । हम दोनों ने बड़ी हिम्मत जुटाकर संजना के घर जाने का फैसला किया । संजना के घर गए तो उसके माता-पिता से बात की तो पता चला कि वह बिलासपुर में रहती है । संजना के माता-पिता भी संजना की हालत का जिम्मेदार खुद को मानते थे । उन्हें ऐसा लगने लगा था कि घर की जिम्मेदारियों में संजना ने अपनी जिंदगी दांव पर लगा दी थी । हालांकि ऐसा था नहीं सब अपनी-अपनी जगह पर अपनी जिम्मेदारियां निभा रहे थे । संजना के माता पिता को हौसला देकर हमने फैसला किया कि हम संजना से मिलने के लिए बिलासपुर तक का सफर तय करेंगे ।

अगले ही दिन हम बिलासपुर के लिए रवाना हो गए । पूरी यात्रा में हमने एक दूसरे से बात तक नहीं की कहीं ना कहीं इसकी वजह संजना थी, वह बहुत दुखी थी तो हम खुश कैसे हो सकते थे । हम दोनों अपने आप को कोस रहे थे कि हम में से कोई भी एक संजना के आस-पास होता तो हालात कुछ और ही होते । भले ही होनी को नहीं टाल सकते थे लेकिन कम से कम उसका सहारा बनकर उसके साथ तो खड़े रहते ।


आखिरकार शाम होते तक हम बिलासपुर पहुंच गए और हमने भी पता लगा लिया कि कहां पर संजना रहती थी । संजना एक फ्लैट में किराए पर रहती थी उसके फ्लैट में जाने पे पता चला कि वह अभी अपने काम से वापस नहीं लौटी है मीता और मैंने सोचा कि हम यही सीढ़ियों पर बैठकर उसके आने का इंतजार करेंगे ।

मैं मन ही मन कांप रहा था । भले ही मीलों का फासला तय करके संजना से मिलने आ गया था लेकिन यह चंद कदमों की दूरी मुझे खटक रही थी । समझ नहीं आ रहा था कि किस मुंह से संजना के सामने जाऊंगा । सीढ़ी पर बैठे बैठे हमारी आंखें लग गई । जब आंख खुली तो देखा संजना आ चुकी थी, दरवाजे पर लटका ताला हट गया था । शायद संजना ने मुझे और मीता को नहीं देखा होगा । बड़ी हिम्मत करके हमने जाने का फैसला किया, मीता ने आगे बढ़कर दरवाजा खटखटाया ।
संजना ने दरवाजा खोला…..  मीता को देख कर संजना की आंखें नम हो गई थी और होना लाजमी भी था क्योंकि मीता भी संजना से नहीं मिली थी । दोनों सहेलियां की मुलाकातें भावुक कर देने वाली थी । मै पीछे खड़ा सारा नज़ारा देख रहा था लेकिन हिम्मत नहीं हो रही थी कि मैं भी जाऊं । सीढ़ी जारा थेढ़ी थी तो संजना को में दिखाई नहीं दे रहा था ।
मीता ने थोड़ी देर बाद, पीछे पलट कर देखा और मुझे ना पाकर मैं समझ गई कि अभी भी मैं सीढ़ियों पर ही हूं।

मिता को इधर उधर देखता हुआ देख सजना ने पूछा किसे ढूंढ रही हो?
संजना अभी तक अनजान थी की .....मैं भी मिलने आया हूं, उसने पूछा
कौन हैं मीता !


तुमसे कोई मिलने आया है!
कौन ?

फिर मीता ने मुझे बुलाया , बड़े भारी कदमों से मैं आगे बढ़ा...  नजरे झुकी हुई थी, मन नहीं था संजना से नजरें मिलाने का,  लेकिन फिर भी मैं आगे बढ़ा । पलकें उठी तो देखा संजना के चेहरे पर एक उत्सुकता थी लेकिन मुझे देखते ही उसका चेहरा उतरने लगा , शायद वह मेरी जगह किसी और के आने की अपेक्षा कर रही थी । मुझे देखते ही वह अंदर चली गई । इससे एक बात तो साफ था कि यह संजना मुझसे मिलना नहीं चाहती थी । मैं थोड़ा घबराया हुआ था तभी मीता ने इशारे में कहा की टेंशन मत लो मैं संजना को संभाल लूंगी ।

मन तो नहीं था लेकिन फिर भी घर के अंदर हमने प्रवेश किया।
हम सोंफे पर जा कर बैठ गए मेरे मन में एक अजीब सी कपकपी थी लेकिन फिर भी बड़ी हिम्मत जुटाकर बैठा हुआ था और सोच रहा था कि बस मुझे एक मौका मिले तो मैं सब संजना को समझा सकूं । संजना काफी देर तक बाहर नहीं आयी शायद वह किचन में थी हल्की- फुल्की बर्तनों की आवाज आ रही थी  । थोड़ी  देर के बाद जब संजना बाहर नहीं आई तो मीता भी वहां से उठकर किचन की ओर गई ।

मैं इंतजार कर रहा था कि कब संजना सामने आए और मैं उससे कुछ कह सकूं । बैठे बैठे वहां हजार शब्द बुन रहा था सोच रहा था कि बस एक पल के लिए संजना मेरे सामने आ जाए और उससे सारी बात कर लूँ,  मन ही मन सारे शब्द जोड़ रहा था संजना को कहने के लिए ।
मैं जानता था की कहीं न कहीं संजना के हालत का जिम्मेदार कुछ हद तक मैं भी हूँ , शायद अपने रवैये का नहीं अपनाता तो आज परिस्थिति कुछ और ही होती । शायद होनी को तो हम भी नहीं बदल सकते थे लेकिन शायद मैं संजना की दशा को भांप पाता तो इतने दिन संजना घुट-घुट के नहीं जीती । खैर अब जो हो गया था उसे तो मैं बदल नहीं सकता था अब बस यही उम्मीद थी की संजना मुझे माफ़ कर दे । कुछ देर तक इंताजर करने के बाद भी संजना बाहर नहीं आयी थी तो मीता अंदर शायद मेरे लिए सिफारिश बन कर गई, लेकिन कहां बात बनने वाली थी ।

आखिरकार मीता ने एक आखिरी कोशिश की .... वह फ्रेश होने का बहाना दे कर दूसरे कमरे में चले गई और उसने मुझसे इशारे में कहा की संजना से बात करो ।
मैं बस उस वक्त इंतजार कर रहा था कि कब संजना मेरे सामने से गुजरे । थोड़ी देर बाद संजना किचन से बाहर आई । वह मेरे सामने से ऐसे गुजरी जैसे कमरे में कोई हो ही न ।  वह नजरे चुराते एक कमरे से दूसरे कमरे जा  रही थी ।
मैंने उसे रोकने की कोशिश की ....मैंने उसे रोकने के लिए उसके सामने जाकर खड़ा हो गया, संजना रुकने को तैयार नहीं थी, मैंने कहा - संजना एक बार तो मेरी बात सुनो उसने 1-2 बार निकलने की कोशिश की लेकिन फिर वह रुक गयी । आज न जाने कहाँ से हिम्मत जुटा पाया था ये शायद पश्चाताप ही था जो मुझे हिम्मत दे रहा था ।
मैंने संजना से कहा – संजना ! प्लीज मुझे माफ़ कर दो –
संजना मुझसे नजरे झुकाये हुये खड़ी थी । मेरे लिए मुश्किल था ये समझना की मेरी कहीं हर बात संजना तक पहुँच भी रही हैं या नहीं...   मैंने बात को ज्यादा गहरे ढंग से कहने के लिए संजना का दोनों हाथ पकड़कर जमीन मे घुटने के बल आ गया, शायद ये मेरे लिए जरूरी था, जिससे मैं संजना से नजरे मिला के बात कर सकूँ ।
लेकिन जब मैं झुककर संजना की ओर देखा तो पता चला की वह रो रही थी । हमेशा से हंसते मुस्कुराते रहने वाली संजना को आज पहली बार रोते देखा था । हमेशा से जिन आंखो ने ख्वाब सजे हुये होते थे, आज आंसुओं में डूबे थे । शायद यही वजह रही होगी की वह  मुझसे नज़रें नहीं मिला पा रही थी ।
छुपाती नजरों से वो शायद अपने आंसू छुपा रही थी, शायद उसमें भी हिम्मत नहीं थी कि मुझसे नजरें मिला सके । मैंने उठकर उसे गले लगा लिया और वह फफक कर रो पड़ी...........

आज तक हंसती मुस्कुराती संजना को इतना रोते देख, मैं भी नम हो गया था । उसके बहते आंसु तो मैं भी पोछना चाहता था लेकिन बस सोच रहा था कि - बस आज जितना रोना हैं रो लो संजना ! आज के बाद मैं तुम्हें रोने नहीं दूंगा ! ये पल हम दोनों के लिए काफी खास था उस एक लम्हे को शायद शब्दों मे बयां कर पाना मेरे लिए मुमकिन नहीं हैं । बहुत सी भावनाओं का मन मे सराबोर सा था...लग रहा था की बस संजना के सारे दुख दर्द बस आज यहाँ खत्म हो जाये...... संजना के साथ वह पल बस मुझे इस बात का एहसास दिला रहे थे की कुछ भी हो जाये मैं अब संजना को जीवन के हर दुख-दर्द से... मैं उसे दूर रखूँगा ।
हम अक्सर खुशियों की बात करते हैं । लेकिन जीवन की वास्तविकता केवल हमें हमारा दुख दिखाता है की हम कब किसके काम आते हैं । हम किसी से कितना प्रभावी हो जाते हैं मुझे आज महसूस हो रहा था ।
सजना का यूं  मेरे सीने से लग कर रोना इस बात का प्रमाण था कि मैं उसके जीवन में बहुत कुछ मायने रखता हूं । और संजना इतने दिन शायद यही सब की कमी महसूस कर रही थी, उसे कोई ऐसा चाहिए था जो उसकी बात सुन सके, उसके बारे मे पूछे सके, जिसके कंधे पर वो जी भर कर अपना बोझ हल्का कर सके ।   
मेरी नजर अचानक दूसरे कमरे की ओर पड़ी तो मैंने मीता को देखा ....... मीता की आंखों में भी आंसू थे  लेकिन वह हमें देख कर मुस्कुरा रही थी । मीता हमें ऐसा देख सब कुछ समझ रही थी । जिस बातों का निष्कर्ष हम सालों नहीं लगा पाए जिसका निष्कर्ष मीता ने उन चंद मिनटों में निकाल लिया । संजना का मेरे प्रति ऐसा व्यवहार देखकर मीता जान चुकी थी की भले ही संजना कितना भी कहती हो, लेकिन संजना की ज़िंदगी में, ..... मैं बाकी लोगो से हटकर था । ऐसा नहीं था की संजना के आस-पास और लोग नहीं थे जिससे वो सबकुछ साझा कर सके ।  लेकिन कहीं न कहीं  संजना को लगता था की उसके जीवन को अगर कोई सहीं से समझता हैं तो .....वो मैं हूँ । हालांकि कभी संजना ने कहा नहीं लेकिन मीता समझ रही थी की संजना भी मुझे कुछ हद तक पसंद करती हैं ।


 मेरी भावनाएं तो सबको पता थी लेकिन संजना की भावना से सब अवगत नहीं थे, और शायद संजना खुद भी…. वे हमेशा कहती रही दोस्त हैं, लेकिन इन 8-9 सालों में हमारे बीच ऐसा कुछ बन गया की हमें एक दूसरे की आदत बनने लगी थी । और हम खुद समझ ही नहीं पाए ।

काफी देर माहौल नम सा था लेकिन धीरे-धीरे संजना भी शांत होने लगी, थोड़ी देर बाद मीता ने संजना को सोंफे पर बैठाया और उसे काफी सहारा दिया, मैं भी उसका हाथ पकड़ कर जमीन पर ही बैठा रहा जब तक वह अच्छा महसूस न करने लगे ।
हम जानना चाहते थे कि वास्तव में संजना कैसा महसूस कर रही थी लेकिन सच कहूं तो हमें पूछने की जरूरत ही नहीं पड़ी बहते हुए आंसू में संजना के सारे जज़्बात बता डाले । संजना ने बताया की इन बीते दिनों में और ज्यादा इसलिए परेशान थी की क्यूंकी उसे लग रहा था की उसने रिश्ता तोड़ के कोई गलती कर दी हैं हर कोई संजना को ही दोष मढ़ रहा था कि आखिर उसने क्यों एक अच्छा रिश्ता ठुकरा दिया । कहीं न कहीं संजना इसलिए भी परेशान थी की उसके माता-पिता का उसने मान घटाया हैं, लेकिन जब हमने संजना को बताया की उसके माता-पिता भी उसके लिये भी इतने ही परेशान हैं तो श्याद उसे अपना निर्णय सही लगने लगा । बातों-बातों में ही मैंने भी अपनी गलती के लिये उससे माफी मांग ली – मैंने कहा – संजन मुझे  माफ कर दो जब तुम्हें मेरी सबसे ज्यादा जरूरत थी तब तो मैं तुम्हारे पास नहीं था ,
संजना ने बात काटते हुये कहा – तुम्हारी इसमें क्या गलती, बस मैं चाहती की कोई तो हो जिसे मैं ये सारी बात बता सकूँ कोई मुझे बता पाता की आखिर क्या सहीं हैं या नहीं...
लेकिन अंत मे मैंने खुद ही हिम्मत करके सबको बोल दिया -

(अब सोचता हूँ की अच्छा ही हुआ जो मैं या मीता संजना के पास नहीं थे अगर होते तो संजना आज भी अपने डर से बाहर नहीं आ पाती, उसने खुद सारी परिस्थ्ति को संभाला ।)

सबकुछ बातें होने के बाद हम थोड़ी सामान्य बातें करने लगे और संजना ने पहली बार मुस्कुराया, वह थोड़ी देर के बाद अंदर चले गई हम थोड़ा डर रह थे की आखिर क्या हुआ जो संजना अंदर चले गई ।
अंदर से संजना ने एक किताब लाया, और आप शायद यकीन नहीं करेंगे ये मेरी वही “यात्रा वाली” किताब थी जो प्रसिद्ध हुई थी उसने एक पेन और मेरी किताब का प्रथम पन्ना निकालकर दिया, मैं समझ गया था  वो मुझसे क्या करवाना चाहती थी । मेरे लिये भी ये एक बड़ी बात थी... मैंने किताब पर अपना साइन कर के दे दिया....
उसने कहा – बहुत अच्छी हैं ये किताब ! मैं पूरी किताब 2-3 बार पढ़ चुकी हूँ ।
बहुत कीमती पल था ये मेरे लिये क्यूंकी आप जिसे पसंद करते हैं वो ही आपकी तारीफ करें तो यह अच्छा लगता हैं ।

बातों का सिलसिला और आगे बढ़ा, हमने उस रात का खाना संजना के फ्लैट में ही खाया । मैंने और मीता ने निर्णय लिया की अब सुबह ही भोपाल की और लोटेंगे । मैं संजना के फ्लैट में नहीं रह सकता था तो संजना ने पास के ही एक होटल मे ठहरने का इंतजाम किया ।
इस बीच जब हम संजना के घर से होटल जा रहे थे तो हमे वक्त मिल गया आपस मे बात करने का.... हमरे बीच काफी बातें हुई , मैंने संजना को सुझाव दिया की वह कुछ दिन अपने माता-पिता के साथ गुजारे क्यूंकी रिश्ते टूटने के बाद काफी कुछ जरूरी हो गया था । मैंने उसे कहा की वापस से वो भी अपने खुशहाल जीवन में लौट जाये, अपने सारे सपने पूरे करें, वापस से नया जीवना शुरू करें लेकिन बिना तकलीफ़ों के.... हमारी बातें काफी लंबी चली और मैंने भी वो सब कुछ कहा जिससे मुझे लगता था की संजना का जीवन बादल सकता हैं ।

अगले दिन मैं और मीता वापस भोपाल की ओर लौटे । 
आते-आते मीता ने जो उसने हमारे बारें मे महसूस किया वो सब मुझे बताया और मुझे वो काफी ज़ोर दे रही थी की मैं अब संजना से शादी कर ही लूँ । लेकिन मैं ये नहीं चाहता था क्यूंकी संजना अभी-अभी ही ये सब से उबरी थी मैं चाहता था की वापस से फिर वही शादी की बात करके उसे दुविधा में डालूँ ।

फोन बजता हैं – टर्र –टर्र ....
हैलो, हाँ माँ !

बस माँ थोड़ी देर फिर मैं भोपाल पहुँच जाऊंगा, किसी को भेझने की जरूरत नहीं हैं मैं खुद ही आ जाऊंगा,
अरे नहीं सुधीर, तेरे पापा तुझे लेने आ रहे स्टेशन......... उन्हें अपने बोगी नंबर बता दे....
ठीक हैं माँ, पहुंच के फोन करूंगा ।

अरे आप कहीं कहानी मे खो तो नहीं गए थे.... शुरू में याद होगा तो मैं पुणे से अपने घर भोपाल की ओर निकला था और अपनी कहनी आपको सुना रहा था । अभी बस छोटी की शादी होने वाली हैं तो उस सिलसिले में घर जा रहा .....

अब आप सोंच रहे होने की आगे फिर क्या हुआ होगा –

हमारे भोपाल आने के बाद ...हम अपनी-अपनी दिनचर्या में लौट गए , मैं भी वापस पुना लौट गया, मीता भी अपने घर चली गई ।
हमारे बिलासपुर से आने के बाद संजना भी वापस भोपाल आ गई । उनके घर की सारी आर्थिक समस्या भी अब सामान्य हो गई, कुछ दिन बाद संजना ने मेहनत करके अपने मनचाहे जगह पर नौकरी पा ली । अब वो सूचना एवं प्रोद्योगिकी विभाग में काम करती हैं ।

तो क्या मेरी और संजना की शादी हुई या अब होगी ???

 – फिलहाल अभी तक तो नहीं हुई और तो सच कहूँ तो इसका जवाब अभी तो मैं भी नहीं जानता की आखिर हमारी शादी कब होगी ?
लेकिन अब सब ठीक हैं, खैर अब फर्क भी नहीं पढ़ता की शादी होगी की नहीं, अब हमारी लगभग रोज बात होती हैं , हर बातें अब हम एक दूसरे से साझा करते हैं ।  मीता ने मेरे और संजना की शादी की अर्जी हम दोनों के घर मे लगा दी हैं, अब देखने वाली बात हैं...शादी होती हैं की नहीं.....

क्या पता शादी न भी हो .....!!

आपको क्या लगा था की आत्मकथा केवल 7 अंको मे खत्म हो जाएगी....अभी तो इस पूरी मेरी कहानी का दूसरा अध्याय आना बचा हैं, तब पता चलेगा की हमरी सच मे शादी होती है की भी नहीं.... की वापिस से फिर कोई परेशानी आती हैं ।

अगली बार फिर लौटूँगा... अपने जीवन के एक नए अध्याय के साथ .....


धन्यवाद !

मूल लेखक – प्रेम नारायण साहू



Zindagi Unplugged Blogspot Page - https://www.facebook.com/ZindagiUnplugged24

Comments

  1. Nice story.... last part too sentimental... love you brother

    ReplyDelete
  2. पूरी कहानी एक ऐसे व्यक्ति के इर्द गिर्द होती हुई गुजरती है, जो हमारे बीच ही कहीं बसा हुआ है। परिस्थितियों के कारण, कुछ ऐसे निर्णय लेने पड़ते हैं जिनसे दूरियां बढ़ती हैं। कई उतार चढ़ाव और अवसाद के दिन भी देखने को मिलते हैं। कभी कभी तो रिश्तों को कसौटी पर भी मापा जाता है। पर कहते हैं ना, अंततः सच्चे प्यार की जीत होती है। ठीक उसी तरह आखिरकार दोनों ने अपने जज़्बात बयां कर ही दिए। मैं कामना करता हूँ कि उनकी शादी हुई हो। 😅

    बहुत-बहुत धन्यवाद प्रेम। 💐

    ReplyDelete

Post a Comment

Popular posts from this blog

लगता हैं ❤️

विपदा

मन की बात #5 – The Kashmir Files फिल्म