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सपनों का सुख . . .

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दो टूक आपसे – सबसे पहले मैं क्षमाप्रार्थी हूँ की लंबे समय से कुछ विशेष लिख न पाया , समय का संजोग ऐसा हैं की मुश्किल हैं जरा सा वक्त निकालना । आज जब आप लंबे समय के बाद कुछ मेरा कुछ लिखा हुआ आप पढ़ रहे होंगे तो , आपके मन में जरूर कुछ बाते होंगी की , आज कुछ अलग आपको पढ़ने मिलेगा । लेकिन मैं यहाँ आपकी सोंच को जरा रोकना चाहता हूँ । मैं नहीं चाहता किसी प्रकार का उलझन जैसा पैदा हो । हो सकता हैं , आज की कहानी आपको थोड़ा ऋणात्मक प्रभाव दें लेकिन ये जरूरी हैं की जीवन के हर उस तथ्य से रूबरू हुआ जाये जो आपको भले सुनने या समझने में अच्छा न लगे , लेकिन उनकी सच्चाई और गहराई को जाना जाये । इससे पहले की कहानी शुरू हो – कुछ बातें और , जैसे की – 1.     ये  कहानी  पूरी तरह से काल्पनिक हैं , जिसका वास्तविकता से संबंध एक संजोग मात्र हैं । 2.      हो सकता हैं  कहानी  की बहुत सी बातें ,  आपको अच्छी न लगे लेकिन उनका वर्णन ,   कहानी  को पारदर्शी बनाने हेतु हैं किया गया हैं । 3.      कहानी  में कही गयी सारी बातें केवल कहानी तक के लिए सीमित हैं , उन्हे किसी भी प्रचार–प्रसार हेतु नही

मन की बात #3 – ज़िंदगी एवं जीवन पर चिंतन (व्यंग्य)

अंग्रेजी का एक शब्द #RIP - किसी व्यक्ति को श्रद्धांजलि में कहे गये शब्द । यहाँ हिंदी में अगर किसी अपने के प्रति दो शब्द श्रद्धांजलि के कहने हो तो, जैसे शब्दों की बाढ़ सी आ जाये, भले आदमी भाव-विभूर ही क्यूं न हो जाये , पर शब्द कम नही पड़ते । और यहाँ अंग्रेजी में 3 अक्षर में पूरी बात खत्म । खैर ये तो फिर अंग्रेजी और हिंदी में द्वंद वाली बात हो जाएगी । अंग्रेजी के इस शब्द से अनजान काफी दिनों तक मैं सोंचता था कि आख़िर इसका मतलब क्या होता होगा । बाद में पता चला RIP = Rest in Peace. तो इसका मतलब हम जो जी रहे हैं क्या वह शांति नहीं है, अक्सर भागवत , प्रवचन और बड़ों से कहते सुना हैं की इस ज़िंदगी से पार हो जाये , और दोबारा इस जीवन चंगुल में ना फसे । तो क्या हम एक ऐसी ज़िंदगी जी रहे हैं जिसमे शांति या सुकून नहीं हैं , क्यों आखिर ये ज़िंदगी जीना इतना मुश्किल हैं ! कोशिश करते हैं की इस ब्लॉग मे इसका जवाब हमें जरूर मिलें । इस सवाल की खोज मैंने अपनी ज़िंदगी से की और सोंचने लगा की क्या मैं अपने इस ज़िंदगी से नाखुश हूँ , जवाब बेशक ना मिला हों , लेकिन ये तो समझ गया की ज़िंदगी मे Peace यान

काली – एक नाट्य कथा

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नोट – उपयुक्त कहनी का प्रस्तुतिकरण एक नाटकीय मंचन के आधार पर किया गया हैं । खचाखच भरे पूरे सभा-भवन (हाल) मे सबकी निगाहें स्टेज की तरफ , सब पर्दे के उठने का इंतज़ार करते हुये । सभी के हाथों मे एक समान पर्चियाँ हैं  हैं जिस पर नाटक का चित्रण और आमंत्रण संबंधी बातें हैं ।  आस-पास की गुसफुसाहट से लोगो को लग रहा था की कोई देवकीय संबंधी नाटक होने वाला हैं । प्रवेश पर्ची पर भी एक लड़की की तस्वीर हैं जिसे काली का स्वरूप बताया गया हैं । काफी शोरगुल के बीच पर्दा उठता हैं , एकाएक सबकी आवाज़ थम सी जाती हैं । नाटक प्रारंभ – एक गाँव परिवेश के दोपहर का दृश्य , जहां एक छोटे से कच्चे मकान के अंदर का दृश्य प्रतीत होता हैं । जहां 2- 3 महिलायें चावल चुनने का काम करती नज़र आ रही हैं और साथ ही साथ वो अपनी कथा-कहानी , हसीं-ठिठोली तो कुछ तंजों का पिटारा एक दूसरे के साथ साझा कर रही हैं । तभी एक छोटी बच्ची की आवाज़ - माँ....... माँ , तभी उनमे से एक महिला उस बच्ची की आवाज़ पर प्रतिकृया देती हैं – हां , नीरू क्या हुआ ? नीरू (छोटी बच्ची) - माँ , जरा मुझे तैय