बड़ा पत्थर
किसी समय मे एक मोहन नाम का व्यक्ति हुआ करता था , पेशे से वह एक मूर्तिकार था और हस्तकला मे निपुण था , उसका एक छोटा सा परिवार था जिसके साथ वह अपने गाँव में रहा करता था । मोहन का गाँव नदी के किनारे बसा हुआ था और मोहन का घर भी नदी के बिलकुल किनारे पर था । नदी से आई हुई नरम मिट्टी से मोहन मूर्तियाँ बनाया करता था , लोगों के मांग के अनुसार कभी-कभी वह पत्थरों से भी मूर्तियाँ बना लिया करता था । मोहन के साथ-साथ पूरे गाँव की आजीविका उस नदी पर निर्भर करती थी , कोई मछली पकड़ना तो , कोई नाव तो , कोई मोहन की तरह मूर्तियाँ बना कर गुज़र-बसर कर रहा था । मोहन अपने गाँव मे एक सुसज्जित व्यक्ति के रूप में था , न किसी से बैर था , न किसी से द्वेष । उसका गुज़र-बसर भी अच्छा चल रहा था मूर्तियाँ इतनी बारीकियों से बनाता की उसकी मूर्तियाँ चंद दिनों मे बिक जाती थी , उसका नाम भी दिन-ब-दिन विख्यात होने लगा था... क्योंकि मोहन अपने काम के प्रति काफी लगनशील था , और इसके चलते ही उसे बहुत दूर-दूर से मूर्तियों के बनाने हेतु उसे निमंत्रण आते थे लेकिन मोहन की एक बड़ी समस्या थी जिस को लेकर वह हमेशा परेशान रह