Posts

Featured post

मन की बात #5 – The Kashmir Files फिल्म

Image
आज के मेरे इस ब्लॉग का लिखने का एकमात्र वजह बस अपनी भावनाएं व्यक्त करना हैं, किसी को आहत करना या किसी प्रकार के प्रचार की मंशा नहीं हैं । The Kashmir Files फिल्म के बारे में जानते ही मेरे मन में प्रबल इच्छा थी कि इसे सिनेमा घर में जाकर देखना हैं । अब सिनेमाघर के पीछे की कहानी यह हैं कि मैं अक्सर फिल्म, घर पर या अपने पर्सनल डिवाइस पर ही देखा करता हूं और कुछ चुनिंदा फिल्म को ही सिनेमाघर में जाकर देखता हूं । ऐसे में The Kashmir Files सिनेमाघर जाकर देखना अपने आप में एक प्रबल भाव हैं कि इस विषय में और जान पाऊं । फिल्म के बारे में कहूं तो फिल्म मेरी नजर में एक सामान्य फिल्म हैं ऐसा नहीं हैं की फिल्म में कोई एक विशेष खुद से गठित या लिखित कहानी हैं, या कुछ भी artificial या काल्पनिक बनाया गया हैं । ये 1991 के दशक में हुए कश्मीरी पंडित पर हुए नरसंहार (Genocide) को प्रदर्शित करती हैं । कैसे लाखों हिंदू परिवार एक ही रात में अपनी ही मिट्टी से बेदखल कर दिए जाते हैं कैसे आतंकवाद किसी एक धर्म का सहारा लेकर, जमीन के टुकड़े के मुद्दे से, कुछ लोगो के दम से कैसे सारे कुकर्म करता हैं । और सच कह

मातृत्व की छांव 💖

नमस्कार ! एक लंबे वक़्त के बाद आज फिर पुनः आपके समक्ष एक कृति लेकर प्रस्तुत हुआ हूँ , उम्मीद करता हूँ कि आपको पसंद आएगा । नोट – कहानी का वास्तविकता से कोई संबंध नहीं हैं , कहानी को संजीदगी से प्रस्तुत करने   के लिए , उनसे जुड़े तथ्यों को अपने कुछ जीवन के तथ्यों से मिलाकर प्रस्तुत कर रहा हूँ ।  किसी भी प्रकार की त्रुटि , आपत्ति और सुझाव के लिए संपर्क करें । अगर मैं आप से सवाल पूछूं की एक माँ की पहचान आप कैसे करोगे... ? तो आपका जवाब क्या होगा... ? शायद आपका जवाब होगा   - कि उस माँ के बच्चे को देखकर .. ! लेकिन क्या जरूरी हैं की जिस स्त्री का कोई बच्चा या संतान न हो वह क्या माँ नहीं होगी... आप भी सुनकर थोड़ा अचंभित हो गए न...आइये आज इसी सवाल का जवाब ढूंढते हैं....   बहुत समय पहले की बात हैं । मुझे किसी काम के सिलसिले से बाहर , दूसरे शहर जाना पड़ा , मैंने जैसे ही अपने गंतव्य वाले शहर का नाम अपनी माँ को बताया , माँ ने झट से अपनी सहेली रुक्मणी आंटी के यहां होकर आने को कहा । कुछ देर अपने दिमाग मे ज़ोर देने के बाद याद आया की ये वही रुक्मणी आंटी   हैं जो हमारे पुराने घर के

विपदा

काल 🌏 विपदा की इस घड़ी में, हम मौन बनकर असहाय है ! काल की इस गिरफ्त में, हम बेबस से लाचार हैं ! मजबूर हैं, नजरबंद होने को अपने प्रांगणो में, क्योंकि अदृश्य मेहमान बाहर तैयार हैं । अपने और अपनों के लिए, सुरक्षित तो अभी वो चार दीवार हैं । जिनके परिवार में हैं आई हैं विपत्ति, उसे दुनिया की कहां कोई बात याद हैं । उसका कोई अपना बच जाए, इससे ज्यादा उसकी न कोई आस हैं । दौर 🤕 ये दौर ही हैं कुछ खराब सा, बजती हर टेलीफोन की घंटी से अब मन बेहाल हैं । कही, कोई न हो दुखद ख़बर, अब किसी और को खोने को न मन तैयार हैं । कभी लगता, क्या गलती हो गई उस परमात्मा से हमारी, धर्म-संप्रदाय, आस्था सी भरी मिट्टी में न जाने क्यों आज लाशों की कतार हैं । रुक नहीं रहे, वो मृत्यु के आंकड़े थम नहीं रहे, वो अस्पतालों की कतारें . ऐसा दृश्यों से तो मन भी हताश हैं, अब तो आतम(आत्मा) भी खुद से हैरान हैं न जाने कैसे अब तक हिम्मत बरकार हैं । जरूरत 😢 सांसों की ज़रूरत सिलेंडरो में समा गई, रोटी, कपड़ा, मकान से ज्यादा हवा मूलवान हो गई । चंद दवाई की बोतलें जीवन-दायनी बन गई, वो सफेद लिबास इंसान, भगवान का रूप बन गई । जिंदगी भर की

क्यूं जरूरी हैं....? 😌❤️

नमस्कार ! आज की ये कविता मेरे ड्राफ्ट बॉक्स में कई वर्षों से पड़ी हैं, बहुत दिनों पहले, मैने अपने दोस्त के लिए ये कविता लिखी थी । अब उनकी इजाज़त से ही मैं यह कविता पोस्ट कर रहा हूं । वैसे तो अक्सर मेरी कोशिश होती है कि कहानी, कविता ऐसी लिखूं जिससे की उसकी वास्तविकता उजागर न हो, पर यहां पर मैंने किसी भी प्रकार का, उस कविता को अपना स्वरूप नही दिया हैं वो जैसी थी उसे वैसे ही पोस्ट कर रहा हूं । और ऐसा करने का एकमात्र उद्देश्य है की इसका सीधा भावनाओं से जुड़ा होना । वो कहते हैं ना, जो बात वास्तविकता में हैं वो काल्पनिक में कहां ...! कविता का भाव एक लड़की की तरफ़ से है... जो अपने प्रेमी के कथन का जवाब देती हैं, जब लड़का पूछता हैं उनसे - क्यूं जरूरी हैं, मेरा होना तुम्हारी जिंदगी में ? जवाब – 💌 तुमने पूछा था क्यूं जरूरी हैं....? 😌 ना जाने ये मन में कैसी बैचैनी हैं पता नहीं क्यूं, लेकिन अब हर बात कहना जरूरी है अब कैसे कहूं तुमसे कि तुम्हारा होना,  तुमसे जुड़ी हर बात मेरे लिए कितना जरूरी हैं...... 🥰 उन मुलाकातों से लगा नहीं था कि इतने दूर आ जाएंगे कल के मिले, आज इतने करीब आ जाएंगे न जाने ये

लगता हैं ❤️

नमस्कार ! एक लंबे समय के बाद आज कुछ पोस्ट करने की जहमत कर रहा हूं, दरअसल वक्त भी कुछ ऐसा हैं कि अब मन नहीं करता कुछ लिखने का । ऐसा नहीं हैं की कहानियां बुनने का क्रम बंद हो गया हैं ड्राफ्ट में ऐसे कई कहानी और कविता होंगी जो आधी अधूरी लिखी पड़ी हैं पर अब उन्हें पूरा करने का दिल नहीं करता। शायद ये भी एक वक्त हैं । आज की कविता का विचार मुझे मेरे दोस्त की बातों से आया । बेशक ये एक हाल-ए-दिल वाला मामला है पर उनकी बातों में एक अलग ही बात होती हैं जिसने मुझे ये लिखने पे मजबूर कर दिया हैं । हम सब की एक ख्वाबों की दुनिया होती हैं, जिसमे हम हजार ऐसी अपेक्षाओं को बुनते हैं जो शायद वास्तविक जीवन में अस्तित्व में न आ पाए । पर फिर भी imagine (कल्पना करना) भी एक अलग दुनिया हैं भले वो आगे चलकर पूरी हो न हो पर आज उस कल्पनाओं का अलग ही मजा होता हैं । ऐसे ही हमारे मित्र जो हमेशा अपनी प्रेमिका के बारे में बात करते हैं, न पूछने पर भी अपने दिल का हाल सुनाते रहते हैं । उनकी बातों में ज्यादातर तो उनकी खयाली पुलाव वाली बातें होती है । जैसा वो सोचते हैं वैसा वास्तविकता में हुआ नही होता हैं, पर वो सोचते हैं की अ