चिड़ा
एक सामान्य दोपहर की तरह वही चिलचिलाती धूप , शांत भाव से बहता पानी और वो गरम हवा के झोकें , लेकिन आज समुद्र कुछ अलग सा था , थोड़ी ज्यादा अँगड़ाई ले रहा था मानो किसी को मिलने को बेताब हो । कहते हैं की अपने ही खुशियों मे अपने हीं शरीक होते हैं , शायद प्रकृति भी कुछ ऐसा ही कर रही हों । वही दूसरी और तट से लगे नारियल के वृक्ष मे थोड़ी आज हलचल सी मची थी , चूंकि आज अंडो से बच्चे निकलने वाले हैं । नारियल के वृक्ष पर दो सफेद पंछी रहा करते थे । दोनो पंछी काफी खुश र हा करते थे बस जीवन मे कमी एक बच्चे की थी और अंततः आज वो दिन आ ही गया जब अंडे से बच्चे निकले । थोड़ी देर बाद अंडे में कुछ हलचल हुई , अंडा लहराने लगा और एक टूक समय पश्चात बच्चे ने अंडे को फोड़ कर उसमें से अपना पाँव निकाला और धीरे से बाहर आ गया . . . नन्हे से छोटी चि ड़ि या को देख माँ चिड़िया बड़ी खुश हुई , उसे अपने चोंच और पांव से पुचकार कर रही थी तभी उसकी नज़र बच्चे के पंखों पर पड़ी वो शायद सही से बने न ही थे , लेकिन अभी नवजात है और बड़े होने के साथ इसके पंख भी बाद जाएंगे ऐसा सोच कर अनदेखा कर दिया । नन्ही च