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Showing posts from March, 2018

सरला- एक संघर्ष, एक पहचान

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सरला - (प्रथम अध्याय) दूसरा अध्याय - नोट - ये कहानी एक काल्पनिक कहानी हैं ।  किसी कहानी की शुरुआत और अंत अगर आपको पता हो तो बेशक उस मध्य की कहानी को जानने मे उतनी रुचि नहीं रह जाती । लेकिन एक कहानी जहां किसी संघर्ष की बात हों तो बेशक कहानी का मध्य भी आपको पढ़ने पे मजबूर कर देता हैं । आज की कहानी सरला के ऊपर हैं । सरला जो गाँव मे रहने वाली एक सामान्य सी लड़की हैं । 10वीं मे अच्छे प्रतिशत नंबर होने के कारण , बायोलॉजी जैसा कठिन विषय चुनने वाली वो अपने गाँव की एकलौती लड़की हैं। 12वीं मे 85% नंबर लाने के बाद स्कूल के शिक्षक और खुद सरला भी डॉक्टरी के सपने बुनने लगी थी । सरला के मन में सपने तो प्रबल थे , आँखों मे सपना था की अपने आप को सफ़ेद कोट मे देखना और अपने नाम के आगे डॉक्टर लगाना । लेकिन माता-पिता की अनुमति न मिलने पर अपने सपने को धूमिल होता देख , सरला बड़ी उदास रहती थी । सरला की 5 साल की मेडिकल की पढ़ाई के लिए सरला के घर वाले राजी नहीं थे , वे उसकी शादी करा देना चाहते थे । गाँव मे और कोई उसका पक्ष रखने वाला भी नहीं था । गाँव मे अधिकतर सरला जैसी लड़कियों

मन की बात #2 - एक मोह- शांति के लिए

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थकान भरी होली के बाद , मैं लगा था अपने फेसबुक पर मंद हाथो के साथ तेज़ी से उन सारे पोस्ट को स्क्रोल कर रहा था जिसमे लाल-पीले होली से सने चेहरे नज़र आ रहे थे । अजीब बात हैं ना , लोग अपनी नॉर्मल सी तस्वीर को तो फ़िल्टर और एडिटर लगा के डालते हैं वहीं होली की आड़ी-तिरझी तस्वीरों को बेझिझक पोस्ट करे देते हैं। मैं भी बस लाइक का बटन किसी रोबोट की तरह दबा रहा था देखे बिना , तभी अचानक एक विडियो आया और शायद हाथ रुके ही थे की कुछ सेकंड के एक क्षण मे कुछ ऐसा देख लिया की , उस पोस्ट को , उस विडियो को देखे बिना मैं आगे न बढ़ सका – चंद शब्दों मे हो लिखने की कोशिश की हैं - कल हम सब रंगे थे रंग और गुलाल मे , कई मीलों दूर और भी कोई रंगा था मलबों की धूल और खून के रंग में   हम भी खेल रहे थे होली , वो भी खेल रहे थे होली फर्क बस इतना सा था , हम रंग से खेल रहे थे वो ज़िंदगी से खेल रहे थे हम बना रहे थे थोड़ा माहोल वो मांग रहे थे , एक शांति का माहोल वो एक तरफ खुशी से मुस्कुराते चेहरे , दूसरी तरफ दर्द बयां करते रोते-बिलखते चेहरे ना जाने ये कैसी रंज हैं , क