सरला- एक संघर्ष, एक पहचान
सरला - (प्रथम अध्याय) दूसरा अध्याय - नोट - ये कहानी एक काल्पनिक कहानी हैं । किसी कहानी की शुरुआत और अंत अगर आपको पता हो तो बेशक उस मध्य की कहानी को जानने मे उतनी रुचि नहीं रह जाती । लेकिन एक कहानी जहां किसी संघर्ष की बात हों तो बेशक कहानी का मध्य भी आपको पढ़ने पे मजबूर कर देता हैं । आज की कहानी सरला के ऊपर हैं । सरला जो गाँव मे रहने वाली एक सामान्य सी लड़की हैं । 10वीं मे अच्छे प्रतिशत नंबर होने के कारण , बायोलॉजी जैसा कठिन विषय चुनने वाली वो अपने गाँव की एकलौती लड़की हैं। 12वीं मे 85% नंबर लाने के बाद स्कूल के शिक्षक और खुद सरला भी डॉक्टरी के सपने बुनने लगी थी । सरला के मन में सपने तो प्रबल थे , आँखों मे सपना था की अपने आप को सफ़ेद कोट मे देखना और अपने नाम के आगे डॉक्टर लगाना । लेकिन माता-पिता की अनुमति न मिलने पर अपने सपने को धूमिल होता देख , सरला बड़ी उदास रहती थी । सरला की 5 साल की मेडिकल की पढ़ाई के लिए सरला के घर वाले राजी नहीं थे , वे उसकी शादी करा देना चाहते थे । गाँव मे और कोई उसका पक्ष रखने वाला भी नहीं था । गाँव मे अधिकतर सरला जैसी लड़कियों