बात छेड़ दी, जो तुमने
बात छेड़ दी, जो तुमने सब कुछ शांत, अविरल से था मेरा जीवन जैसे बहते हुए पानी में तिनके की भांति , नीले गगन में सफेद बादलों की भांति , धीरे धीरे बहते हवाओं में उस उड़ते पतंगों की भांति ..... सब कुछ एक पल में बदल सा दिया तुमने, जो तुम ने रुक कर बात क्या छेड़ दी . . . अधूरी थी ज़िंदगानी मेरी न कल , न आज की परवाह थी कभी घर-बार , न रास्तों की दरकार थी कभी तन्हा थे, न किसी की जरूरत थी कभी ( पर फिर भी ) सब कुछ एक पल में बदल सा दिया तुमने, जो तुमने रुक कर क्या बात छेड़ दी . . . बेताब से थे सपने मेरे मंज़िल न ठिकाने की जररूत थी मुझे सादे से कपड़े, सादी सी जीवनी थी मेरी न कोई शौक, ना कोई कमजोरियां थी मेरी सब कुछ एक पल में बदल सा दिया तुमने, जो तुमने रुक कर बात क्या छेड़ दी . . . अकेले थे , मगर खुश थे सही खुद को समझ रहे थे , सब कुछ संभाल रहे थे सही अव्वल न थे, पर कभी आख़री भी न थे न जाने वो वक़्त का तकाज़ा क्या रहा जो . . . सब कुछ एक पल में बदल दिया तुमने, जो तुमने रुक कर क्या बात छेड़ दी . . . जो तुमने रुक कर क्या बात छेड़ दी . . . कभी