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Showing posts from October, 2017

बात छेड़ दी, जो तुमने

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बात छेड़ दी, जो तुमने सब कुछ शांत, अविरल से था मेरा जीवन जैसे बहते हुए पानी में तिनके की भांति , नीले गगन में सफेद बादलों की भांति , धीरे धीरे बहते हवाओं में उस उड़ते पतंगों की भांति ..... सब कुछ एक पल में बदल सा दिया तुमने, जो तुम ने रुक कर बात क्या छेड़ दी . . . अधूरी थी ज़िंदगानी मेरी न कल , न आज की परवाह थी कभी घर-बार , न रास्तों की दरकार थी कभी तन्हा थे, न किसी की जरूरत थी कभी ( पर फिर भी ) सब कुछ एक पल में बदल सा दिया तुमने, जो तुमने रुक कर क्या बात छेड़ दी . . . बेताब से थे सपने मेरे मंज़िल न ठिकाने की जररूत थी मुझे सादे से कपड़े, सादी सी जीवनी थी मेरी न कोई शौक, ना कोई कमजोरियां थी मेरी सब कुछ एक पल में बदल सा दिया तुमने, जो तुमने रुक कर बात क्या छेड़ दी . . . अकेले थे , मगर खुश थे सही खुद को समझ रहे थे , सब कुछ संभाल रहे थे सही अव्वल न थे, पर कभी आख़री भी न थे न जाने वो वक़्त का तकाज़ा क्या रहा जो . . .  सब कुछ एक पल में बदल दिया तुमने, जो तुमने रुक कर क्या बात छेड़ दी . . . जो तुमने रुक कर क्या बात छेड़ दी . . . कभी

सरला

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जीवन के मजधार मे , जब आपकी सकारत्मकता , नकारात्मकता मे तब्दील होने लगे तब बहुत मुश्किल हो जाता हैं की, आप कैसे आने वाली परिस्थिति से कैसे निपटे . . .लेकिन ऐसे मे आप कुछ कर जाते हैं तो वो किसी जंग से किसी कम नहीं , आज की कहानी सरला , कुछ इसी दृष्टिकोण पर आधारित हैं । कहानी के लेखक " तरुण कुमार सोनी " और यह लेख “अतिथि लेखन” के अंतर्गत हैं सरला सरला के बापू, जरा बाजार से आते वक़्त ये सामान भी लेते आना, ये कहकर सरला की आम्मा ने एक पर्ची उनके हाथों में थमा दी । घी, बेसन, दही, गुड़, सूखे मेवे, दूध, बासमती चावल, खोवा... ये क्या सूची तो खत्म होने का नाम ही नहीं ले रही थी। इतनी बड़ी सूची? सरला के बापू शैलेश ने अचंभित भाव से अपनी प्राणप्रिये की और देखकर कहा। हां, तुम्हें तो दोस्तों संग गप्पे लड़ाने से फुर्सत ही कब मिलती है, सुबह से दफ्तर चले जाते हो, और शाम को तो न जाने ऐसे गायब होते हो जैसे गधे के सर से सींग, सरला की माँ ने बनावटी गुस्सा दिखाकर चुटकी ली। शैलेश साहब ने स्तिथि भांपते हुए तुक्का मारा, कहा क्यों री तेरे मायके से साले साहब आने वाले हैं क्या भाग्यवान? सरला