बात छेड़ दी, जो तुमने
बात छेड़ दी, जो तुमने
सब कुछ शांत, अविरल से था
मेरा जीवन
जैसे बहते हुए पानी में
तिनके की भांति,
नीले गगन में सफेद बादलों
की भांति,
धीरे धीरे बहते हवाओं में
उस उड़ते पतंगों की भांति .....
सब कुछ एक पल में बदल सा
दिया तुमने, जो तुम ने रुक कर बात क्या छेड़ दी . . .
अधूरी थी ज़िंदगानी मेरी
न कल, न आज की परवाह थी
कभी
घर-बार, न रास्तों की दरकार
थी कभी
तन्हा थे, न किसी की जरूरत
थी कभी ( पर फिर भी )
सब कुछ एक पल में बदल सा
दिया तुमने, जो तुमने रुक कर क्या बात छेड़ दी . . .
बेताब से थे सपने मेरे
मंज़िल न ठिकाने की जररूत
थी मुझे
सादे से कपड़े, सादी सी
जीवनी थी मेरी
न कोई शौक, ना कोई
कमजोरियां थी मेरी
सब कुछ एक पल में बदल सा
दिया तुमने, जो तुमने रुक कर बात क्या छेड़ दी . . .
अकेले
थे, मगर खुश थे सही
खुद
को समझ रहे थे, सब कुछ संभाल रहे थे सही
अव्वल
न थे, पर कभी आख़री भी न थे
न
जाने वो वक़्त का तकाज़ा क्या रहा जो . . .
सब कुछ एक पल में बदल दिया
तुमने, जो
तुमने रुक कर क्या बात छेड़ दी . . .
जो
तुमने रुक कर क्या बात छेड़ दी . . .
कभी कभी हमारे ज़िंदगी मे
कुछ ऐसे लोग आते हैं, जिनकी हमे कोई आशा नहीं होती हैं और ऐसे लोग अक्सर हमारे
जहन मे अलग ही अपनी जगह बना लेते हैं,
अक्सर ये प्यार या आपके दिल का कोई करीबी होता हैं । जब-जब
ऐसे लोग हमारे जीवन मे आते हैं हमारी ज़िंदगी का एक बहुत बड़ा हिस्सा तब्दील या बदल
जाता हैं । उन
बदलावों से पहले की ज़िंदगी को मैंने
चंद शब्दों मे बांधने की कोशिश की हैं,
उम्मीद करता हूँ की आपको पसंद आएगी ।
कविता
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धन्यवाद
!
लेखक
– प्रेम
नारायण साहू ( Prem
Narayan Sahu )
Thanks mere bhai.... Ye pura mere pe feet baidta hai
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