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काली – एक नाट्य कथा

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नोट – उपयुक्त कहनी का प्रस्तुतिकरण एक नाटकीय मंचन के आधार पर किया गया हैं । खचाखच भरे पूरे सभा-भवन (हाल) मे सबकी निगाहें स्टेज की तरफ , सब पर्दे के उठने का इंतज़ार करते हुये । सभी के हाथों मे एक समान पर्चियाँ हैं  हैं जिस पर नाटक का चित्रण और आमंत्रण संबंधी बातें हैं ।  आस-पास की गुसफुसाहट से लोगो को लग रहा था की कोई देवकीय संबंधी नाटक होने वाला हैं । प्रवेश पर्ची पर भी एक लड़की की तस्वीर हैं जिसे काली का स्वरूप बताया गया हैं । काफी शोरगुल के बीच पर्दा उठता हैं , एकाएक सबकी आवाज़ थम सी जाती हैं । नाटक प्रारंभ – एक गाँव परिवेश के दोपहर का दृश्य , जहां एक छोटे से कच्चे मकान के अंदर का दृश्य प्रतीत होता हैं । जहां 2- 3 महिलायें चावल चुनने का काम करती नज़र आ रही हैं और साथ ही साथ वो अपनी कथा-कहानी , हसीं-ठिठोली तो कुछ तंजों का पिटारा एक दूसरे के साथ साझा कर रही हैं । तभी एक छोटी बच्ची की आवाज़ - माँ....... माँ , तभी उनमे से एक महिला उस बच्ची की आवाज़ पर प्रतिकृया देती हैं – हां , नीरू क्या हुआ ? नीरू (छोटी बच्ची) - माँ , जरा मुझे तैय