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A Day- एक दिन

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प्रिय पाठक आज पुनः एक लंबे अंतराल के बाद आज मैं एक नए अनुभूति के साथ आपके समक्ष अपने विचार प्रकट करने जा रहा हूँ , उम्मीद करता हूँ की आप को पसंद आएगा... बात दरअसल कुछ दिन पहले की है... मैं अपने किसी काम से बाहर गया हुआ था.... और मुझे आधे रास्ते मे ही अपने किसी काम के कारण रुकना पड़ा , मैंने देखा उस जगह पर एक बहुमंजिला भवन का निर्माण हो रहा था.... तप्ती धुप की , तप्ती दोपहर का समय था , उस बहुमंज़िला भवन पर काम रुका हुआ था , सारे मजदूर विश्राम कर रहे थे । तभी मेरी नज़र रेत पर खेल रहे एक बच्ची पर पड़ी , शायद वह बच्ची उस बहुमंजिला मे काम करने वाले मजदूरो मे से किसी एक की बच्ची रही होगी..... वह बच्ची रेत के टीले पर वृक्ष की छांव के आड़ मे कुछ खेल कर रही थी , इस तप्ती धूप मे भी शायद पेड़ की छाव उसे ठंडक भरे सुकून की मनोरम एहसास दिला रही थी..... इस बीच मे एक व्यक्ति उस बच्ची के करीब आकार बैठता है , शायद वह व्यक्ति उस बच्ची का पिता होंगे....काम के बाद अपनी थकान मिटाने वह उस रेत के टीले पर आते हैं , बच्ची अपने पिता को अपने उस खेल मे शामिल करने लगती हैं , वह अपन