अंक- 7 : संजना से मुलाक़ात (अध्याय का आखिरी अंक)
अभी तक तो मैं संजना की सगाई वाली बात से उभरा भी नहीं था कि अब रिश्ते टूटने वाली बात सुनकर तो दिल बैठा जा रहा था । कल तक अपने लिए बहुत चिंता होती थी सोचता था की यह मेरे साथ क्या हो गया लेकिन मीता से बात करने के बाद सोचने लगा कि आखिर संजना के जीवन में इतना सब क्या हो गया । दिन-भर छोटी की समझाइश के बाद अभी तो मैंने निश्चय किया ही था कि , आज के बाद कभी भी संजना के बारे में नहीं सोचूंगा । लेकिन मीता से बात करने के बाद वापस से संजना के बारे में सोचने लगा था कि आखिर उसकी जीवन में ऐसा क्या हो गया जो उसे ऐसा कदम उठाना पड़ा । सारी बीमारी , कमजोरी ना जाने कहां खो गई थी.... बस मन में इच्छा हो रही थी कि एक बार संजना से मिल लूं। लेकिन संजना से पहले मीता को मनाना बहुत जरूरी था क्योंकि वह कहीं ना कहीं यह सोचती थी कि संजना के हालत का जिम्मेदार मैं हूं । हालांकि ऐसा था नहीं लेकिन उसकी बातों से तो ऐसा ही प्रतीत होता था । मैंने झट से गाड़ी निकाली और मीता के घर जाने का फैसला किया । शुरू शुरू में मीता मुझसे मिलना नहीं चाहती थी लेकिन मीता के पति के समझाने के बाद वह मेरी बात सुनने को राजी हुई