अंक 3 : मेरे बचपन का प्यार



अब मैं जिस व्यक्तित्व की परिचय आपसे करने जा रह हूँ, वो मेंरे लिए खास हैं । खैर उनके बारे में बताने को तो बहुत सी बातें हैं लेकिन ये चंद पंक्तियाँ, आपको मदद करेंगी यह जानने में की मेंरे मन में उनके लिए कैसी भावना हैं ।

मुझे आज भी याद है वो तुमसे पहली मुलाकात
बिखरे बाल और वो नखरीला सा अंदाज़ 
लगी थी बस तुमसे बस ऐसी नज़र …….. आज भी मानो कल की ही बात लगती हैं

मुझे आज भी याद है , पहली नज़र का वो पहला इकरार
तुम्हारी सहमी सी हंसी, और मेरा भावुक सा प्यार
तुम्हारी चुप्पी और सब कुछ कह जाने का एहसास…….. उन पलों को कैसे भुला सकता हूँ  मैं

तुम्हारा यूं मुस्कुराना और पल-पल इठलाना
बेधड़क सा तुम्हारा इस कदर बारिश में भीगना और पागलों की तरह नाचना
कुछ न कहना, बस मुस्कुरा कर यूं चले जाना, आज भी याद हैं मुझे !

मुझे आज भी याद है वो बरामदे की चहल कदमियां
तुम्हारे गुपचुप इशारों का व्यंग्य , और आंखो की मटरगश्तीयाँ
वो बात बात पे इतराना , शरमाकर फिर हंस के चले जाना........... आज भी याद हैं मुझे !


आज भी याद हैं मुझे ....उम्मीद हैं की चंद पंक्तियाँ पढ़ के आपको मेरी कहानी थोड़ी बहुत तो समझ आ ही गयी होगी....!
अब इतना कुछ जान लिया हैं तो आपको पूरी कहानी जानने  की इच्छा हो रही होगी । अब पूरी कहानी तो नहीं बता सकता क्योंकि उन मोहतरमा पर तो पूरी 1 किताब लिखी हैं मैंने......अब जब क्योंकि आप फ़्लैशबैक में हैं तो आपको कहानी की मूलभूत बातें तो बतानी पड़ेंगी.....

तो लीजिये फ़्लैशबैक में प्यार वाली कहानी....

बात दरअसल उस वक़्त की हैं जब हम स्कूल में कक्षा 10वीं में पढ़ते थे । बोर्ड की परीक्षा के लिए काफी जी तोड़ प्रयास चल रहा था । तभी हमारे कक्षा में नयी विद्यार्थी अर्थात CLASSMATE का आगमन हुआ.... आधे सत्र के बाद उनका स्कूल में आगमन हुआ ।
क्लास में 2-3 दिन पहले से ही हल्ला मचा दिया गया की कोई नया विद्यार्थी आने वाला हैं... और ये भी बताया गया की पढ़ाई-लिखाई में होशियार हैं ।

हम बिचारे......समय से अंजान......चीजों से बेखबर ......जी रहे थे । हमें उस वक़्त फर्क ही नहीं पड़ता था की कोई जीवन में आने वाला भी हैं या नहीं । अपने ही जीवन में मस्त थे । उस वक़्त खासा लगाव था पढ़ाई-लिखाई से.... खासकार गणित से .... काफी दिलचस्प हुआ करता था उस समय का जीवन.....!

खैर उस नए विद्यार्थी...मतलब नयी छात्रा का क्लास में आगमन हुआ। आज भी उस दिन का पूरा दृश्य आज भी याद हैं.....

सुबह प्रार्थना-सभा लगी हुई थी । पिछले वर्ष कक्षा में प्रथम आया था इसलिए लाइन में सबसे पहले खड़ा हुआ करता था । सभा खत्म हुई और हम सब 1-1 कदम क्लास की ओर बढ़ने लगे । क्लास का दरवाजा जरा आधा सा खुला हुआ था । धकेल कर दरवाजा खोला और अंदर देखा.....मानो ज़िंदगी ही बदल गयी ।
जैसा की कविता में लिखा हैं.....जैसे देखा उनको नज़र ही भीड़ गयी...कब टीचर आए-गए कुछ पता नहीं चला ...बाकी उस दिन का कुछ भी याद नहीं...बस एक टक देखा जा रहा था ।
.....अरे भैया...नज़र ही नहीं हट रही थी ।

`नाश्ते खाने की छुट्टी के बाद तक  बचा खुचा उभरा तो समझ आया.... की अभी भी जीवन चल रहा हैं । इधर-उधर के पड़ोसी-मित्रों से पता चला की ये वही विद्यार्थी हैं, जिनकी चर्चा हाल ही के दिनों में हो रही थी । बड़े जुगत के बाद नाम पता चला ........संजना । अब समझ आया की ये वही लड़की हैं जो सुधीर की संजना होने वाली हैं ।
काफी सोंचने-समझने के बाद मन हुआ की दोस्ती शुरु की जाये....लेकिन हम ठहरे गणित के विद्यार्थी । किताब की सिवाय दुनिया में दूसरा किसी को अपना समझा ही नहीं ..........कहाँ से बात-चीत कर पाते ..... पूरा साल ही ऐसे बीत गया...नैन-मटक्के में..... लेकिन बात ही नो सकी....!

पूरे साल एक ही दिनचर्या बन गया था । सुबह टीप-टाप होकर स्कूल जाना .... और रोज उन्हें देखना । उम्मीद रोज होती थी की आज बात- होगी, कल बात होगी और इसी आस में दिन गुजरने लगा ।

हमारे आदतों की तरह हम भी निकले....जरा SLOW …. हमसे पहले क्लास के आधा-दर्जनों लड़को  ने उन पर प्रयास कर लिए । पर मैडम आदतों और संस्कारों में लिप्त ...हमसे ज्यादा पढ़ाई-लिखाई में घुली-मिली निकली । सभी प्यार proposal को ठुकरा दिया । अब प्यार न सही लेकिन क्लास के लड़के दोस्ती-यारी निभाने के बहाने उनसे बात करते...और हम यहाँ केवल नैन-मटक्का करते रह गए । पहले ही मंडे टेस्ट में पता चल गया की मैडम कोई कच्चे खेत की मूली नहीं । मैडम ने आते ही ज़ोर दार छक्का मारा ....और आधे सत्र में आने के बावजूद ...तिमाही परीक्षा में प्रथम ....!

मैं कहाँ प्रथम से छटवें पर आकर गिरा .... अब प्यार तो था लेकिन जलन भी अजीब किस्म की थी । मैडम के आने से क्लास का माहोल ही कुछ बदल गया । पूरी क्लास के बच्चे पढ़ने लगे थे । एक-एक नंबर के लिए महाभारत होती थी ।

खैर बढ़ते नंबरों ने पहले ईर्ष्या का भावना जरूर दिया लेकिन समय रहते समझ आने लगा की .... की ये उनकी अपनी काबिलियत हैं कोई फरेब नहीं......

साल बीता ........संजना जी .... प्रथम आ गयी ।

खैर प्यार में बरबाद आशिक की तरह इस कड़वे सत्य को भी मान लिया... 11वीं आई .... विषय चुनने का वक़्त आया । साल भर गणित के भक्त यानि मैंने गणित ले लिया....हमारी संजना मैडम ने भी....! लेकिन सहायक सब्जेक्ट ने हम दोनों को अलग-अलग कक्षा में भेझ दिया । जितनी खुशी गणित मिलने पे थी उससे ज्यादा दुख तो उनसे दूर होने की था...खैर क्लास बदला था.... प्यार नहीं...!

अब जरा देखने दिखाने का वक़्त बदल गया था । खाने की छुट्टी और प्रार्थना-सभा में उनको बस देख पता था । अब बात तो कभी की नही थी...... तो बस देखादेखी वाला आलम चल रहा था ।

11वीं... 12वीं ऐसे निकला मानो... बुलेट ट्रेन....। 2 साल में तो मैं हिम्मत न जुटा पाया उनसे बात करने का.... ! स्कूल खत्म हुआ और मैडम सिविल सर्विस की परीक्षाओं में लग गयी और हम..... इंजीनियरिंग में । अब गणित ले के जो पाप किया था उसे तो इंजीनियरिंग से ही ढोना था.... तो आखिर वो ही सही....!

हम अपने पढ़ाई-लिखाई में लग गए.....और वो अपनी ।

इंजीनियरिंग का 1 साल बीतने के बाद समझ आया  की अगर अपनी दिल की भड़ास ना निकली तो जीवन जीना मुश्किल सा हो जाएगा ।
दोस्तों यारों से मिल कर सुझाव लिया... की आखिर क्या उनसे मिल कर दिल से दिल की बात कह दूँ । कुछ एक आद को छोड़कर..... बाकी सभी दोस्तों की यही राय थी की मैं उनसे कुछ ना कहूँ.... क्योंकि सभी उनके आदत और व्यवहार से परिचित थे । सब जानते थे की वो आदर्श-वादी हैं और जीवन में कुछ बड़ा करना चाहती हैं। जिस वजह से वह अपने भविष्य के लिए ज्यादा मेंहनत कर रही हैं....ऐसे में मेंरा बोलना व्यर्थ ही हैं....क्योंकि मुझे ना ही जवाब में आने वाला था ।

कुछ संजना की सहेली थी, जिनसे मेरी भी दोस्ती थी, उन्होने भी मुझे सख्त मना ही कर दिया । अब दोस्तों की ना भी मुझे खटक रही थी...लेकिन अब सुझाव लिया था तो कुछ अच्छा समझकर, मैंने सबकी बात मान ली ।

अब दिल की झटपटाहट इम्तिहान ले रही थी ।  बस मन हो रहा था की जैसे तैसे अपनी बात तक उन तक पहुँचा दूँ .....भले ही वो मेरे प्रस्ताव को ही क्यूँ  न कह दे । कम से कम जीवन में ये....आधे देवदास वाली feeling तो कम होगी । ऐसा सोंच कर चिट्ठी लिखने को सोंचा अर्थात प्रेम-पत्र !

बाजार से चम-चमाता हुआ रंगीला कागज़ उठा लाया ......कोरे शब्द और भावना उस चंद कागजों के टुकड़े में ... मैं उतारने लगा    बड़े ही अथक प्रयास से उस लव-लेटर को मैंने लिखा और सजाया ।
दुनिया भर के सारे दिल की आकृतियाँ उस चिट्ठी में सजा दी और एक गुलाब के साथ उन तक भिजवा दिया । बस डर इस बात का था की अगर मेरे या संजना के परिवार में से किसी को भी मेरी ये लव-लेटर वाली कहानी पता चल गयी .... तो मैं अपने घर से ही नहीं पूरी दुनिया से ही बेदखल कर दिया जाऊंगा ।

लेकिन  खुशी की बात ये थी की संजना ने भी मेरी चिट्ठी को अपने तक ही रखा.... और उसे स्वीकार भी किया । एक छोटे बच्चे की तरह हज़ार सपने सजाये...उसके जवाब का इंताजर करता रहा । जानता था, जवाब में ना ही होगा....लेकिन फिर भी .... उम्मीद पे दुनिया कायम ।

खैर उम्मीद से परे जवाब आया.... कहाँ मेरे लाल-पीले चमचमाते हुये लव-लेटर के जवाब में एक छोटा सा कागज़ का टुकड़ा आया । जिसमें बड़े बड़े अक्षरों में ना लिखा था ।  खैर ना की उम्मीद तो मैंने भी की थी........... लेकिन संजना ने तो दिल तोड़ने वाला जवाब दिया।

उस खत को देखकर एक ही बात मान में आयी... ।
अगर आपने बाजीराव फिल्म का डायलॉग सुना होगा तो याद होगा.... 
      ....की अगर आप हमारी जान मांगते  तो हम खुशी खुशी दे देते...लेकिन आपने तो हमारा गुरूर ही मांग लिया.... 
ठीक कुछ ऐसे ही feelings मुझे भी आई.....

      ......की संजना आप हमसे जान मांगते तो हम खुशी खुशी दे देते....लेकिन आपने तो हमारी जीने की वजह ही मांग ली....! खैर वो सामने होती तो उनसे ये बात कह देता ।

चिट्ठी में संजना ने मेरे प्रस्ताव को इन्कार करते हुये कहा की वो मुझे पसंद नहीं करती हैं ।  उन्होने लिखा था की उन्हें अपने भविष्य में बहुत कुछ करना हैं तो वो इन सब चीजों में अपना वक़्त जाया नहीं करना चाहती थी । संजना चाहती थी की मैं उन्हे हमेंशा के लिए भुला दूँ और भविष्य में और कभी भी उनसे उम्मीद न रखूँ ।

खैर "ना" की उम्मीद तो मुझे पहले से थी । लेकिन मन में ये भी कसक थी की, शायद आज नहीं तो कल शायद संजना के लायक बन कर उनसे शादी कर लूँगा । लेकिन संजना की कही बातों से दिल जरा बैठ गया । अब ये तो पता था की संजना मुझे पसंद तो नहीं करती और आगे भी कोई उम्मीद या chance नहीं नज़र आ रहा था ।

अब तो मैं पूरा देवदास था.....कुछ दिन तो सदमें से उबरने में लगे लेकिन फिर बिछड़े दिल की आस में  उनकी याद में...किताब लिखना शुरू किया...और वही मेंरी पहली किताब बनी.....

उन दिनो बस फिर बची खुची इंजीनियरिंग की पढ़ाई... दिल लगा के पूरी की...खाली वक़्त में किताब लिखा करता था.....

संजना से स्कूल के बाद कभी मिला नहीं....बस चिठ्ठी के बहाने कागजों में ही बात हुई । कुछ दोस्तों यारों के जलसे में भी मिले ....देखा दाखी भी हुई । लेकिन झूठी-मुस्कान हमेंशा उनके सामने होती थी । कई बार एक मुलाक़ात भी हुई लेकिन बस हल्की-फुल्की बात-चित भी हुई । लेकिन अब दिल नहीं मिलने वाले थे तो बात करके क्या ही फायदा होने वाल था...।

दोस्तों यारों ने कहाँ गम भूलने के लिए किसी और को पसंद कर लो....लेकिन कमबख्त इंजीनियरिंग के 4 साल में कोई न मिला ।
बात-चित के नाम पर मैसेज में कभी कभार  2- 4 महीनों में एक दफा बात-चित हो जाया करती थी, उसमें भी पढ़ाई-लिखाई के अलावा भी और बाहर की बात चित ना हुई.....

तो खैर ऐसे ही मेरे पहले प्यार का खत्म हुआ....
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लेकिन ठहरों ...आपको क्या लगता हैं संजना के साथ मेरी कहानी खत्म हो गयी ....अगर आप ऐसा सोंच रहे होगे तो आप बिलकुल गलत हो.... कहानी अभी बाकी हैं मेरे दोस्त....

बाकी कहानी के लिए अगला अंक जरूर पढ़े ।  

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