अंक-5 : मेरी सफलता, मेरी जीत या हार-सुधीर


पुणे की ज़िंदगी भी अब रास नहीं आ रही थी । इसी बीच घर के काम से भोपाल जाना हुआ । चार दिनों की छुट्टी में आया तो घर के काम से ही था, लेकिन आने पर पता चला कि मेरी एक स्कूल में साथ पड़ने वाले दोस्त की शादी है । हालांकि मन तो नहीं था लेकिन फिर भी घर वालों के जोर में, पार्टी में जाने को राज़ी हो गया ।

काफी दिनों के बाद अपने पुराने दोस्तों से मिलकर काफी अच्छा लग रहा था । अब शायद मेरी चार दिन की छुट्टी मुझे सार्थक नजर आने लगी थी कि तभी.....

 ........मैं खाने की प्लेट लेने बढ़ा ही था लेकिन यह क्या........... अचानक से हल्की-हल्की हवा चलने लगी थी । 
हम इंसान अकसर कहते हैं कि हमारी पांच इंद्रियां हैं लेकिन मुझे ऐसा लगता है कि हमारी छटवी इंद्री भी होती है जो हमें किसी के होने ना होने का एहसास कराती हैं । मुझे आज भी याद है वह दिन अच्छे से...... हो ना हो यह जरूर संजना ही थीं । उसकी एंट्री मुझे आज भी याद है । लाल साड़ी में बिल्कुल सुंदर लग रही थी वो, पता नहीं था कि संजना भी शादी में आने वाली है । 
मैं नहीं जानता कि वो सूरज को कैसे जानती थी । (सूरज वो हैं जिसकी शादी में मैं आया था ) । एक दफा में मुश्किल था उसे पहचानना, काफी कुछ बदल सी गई थी वो ! एक साल पहले और आज वाली संजना में जमीन आसमान का फर्क था । सामान्य से दिखने वाली संजना आज कुछ अलग ही दिख रही थी, शायद यह असर दिल्ली का था ।
मुझे सारी पुरानी बातें याद आने लगी । ऐसे ही एक शादी में हम कुछ साल पहले मिले थे और उस शादी के बाद हम दोनों की जिंदगी में बहुत कुछ बदलाव आया था ।

मैं इन सब से बेखबर,  संजना को देखने के बाद उससे नजर चुराये फिर रहा था, इतनी गहरी दोस्त की बाद भी मैं उससे मिलना नहीं चाहता था ।  पता नहीं मेरे इस रवैया की आखिर क्या वजह थी शायद मैं डरता था कि वापस हमारी मुलाकात, फिर मुझे किसी पुराने याद की ओर तो नहीं धकेल ले जाएगी । जैसे तैसे मैं संजना से नजर बचाये ये सोच रहा था कि कैसे जल्द से जल्द पार्टी से निकला जाये । जल्दी खाना-खाने के बाद मैं निकलने की सोच रहा था ..... तभी मेरी नज़र पार्टी के आइसक्रीम कॉर्नर पर पड़ी । अब ये तो आप सभी मानते होंगे की हम भारतीय का खाना तब तक पूरा नहीं होता जब तक खाने के बाद में मीठा न खाया जाए । लेकिन पार्टी में आइसक्रीम वाले के पास इतनी ज्यादा भीड़ थी कि वहां जाने का मन भी नहीं हो रहा था। ऐसे में डर भी लगा हुआ था कि कहीं संजना ना आकर मिले ले । लेकिन संजना तो संजना ही थी आखिर उसने मुझे ढूंढ ही लिया।

 वह मेरे पास आई, उनके हाथों में दो आइसक्रीम के कप थे, एक आइसक्रीम का कप उन्होंने आगे बढ़ाते हुए कहा, आप यहीं ढूंढ रहे थे ना । मैंने एक छोटी सी मुस्कान में "हां" कहा । वो एक लम्हा, आज भी मैं महसूस कर सकता हूं.... पुराने अपने सभी व्यवहारों के लिए बड़ी शर्मिंदगी महसूस हो रही थी, शायद मेरा वो अहंकार ही था, जो संजना को अपने जीवन में उदासी का कारण मानता था । लेकिन संजना के नम्र भाव से लग ही नहीं रहा था कि वो शायद मेरी सब बचकानी, बेरुखी भरी बातों को याद भी रखी होगी ।

हम साथ-साथ चलने लगे, शायद आइसक्रीम एक बहाना था, महफिल से हमको चुराना था । हम थोड़ा शोर-शराबे से दूर थोड़ी खुली जगह पर आए । चलते चलते तकरीबन पांच मिनट तक हम मौन रहे ।  अजीब सी परिस्थिति थी न वो कुछ कह रही थी  और न ही मैं कुछ कहने की हिम्मत जुटा पा रहा था ।

आखिर शुरुआत उन्होंने ही की - कहा

संजना - आप कैसे हो ?
सुधीर - मैं ठीक हूं !
संजना - आप नजर नहीं आ रहे थे !
सुधीर - नहीं बस, ऐसे ही दोस्तों में जरा busy हो गया था ।
संजना - और बताइए सब कैसा चल रहा है ।
सुधीर - सब ठीक ही है ।
             तुम बताओ ! तुम्हारा काम कैसा चल रहा है ।
संजना - काम तो काफी अच्छा ही चल रहा है एक साल में ही मुझे प्रमोशन मिल गया ! (मुस्कुराते हुए)
सुधीर - चलो बढ़िया है ।
संजना - आप मुझे भूल ही गए थे ......जब से मैं दिल्ली गई, ना कोई फोन ना कॉल ना एस.एम.एस (SMS)
सुधीर - नहीं ऐसा तो कुछ भी नहीं है !
             तुमने भी मुझे कहां फोन किया । (मुस्कुराते हुए)
संजना - घर में सब कैसे हैं ।
सुधीर - सब ठीक ही हैं, बस पिताजी घर बना रहे हैं । और अगले साल छोटी की शादी भी करनी है तो बस......
संजना - हां शादी के लिए तो मैं मुझे भी कह रहे हैं ।
            मैंने सुना कि आप ने भोपाल वाली नौकरी छोड़ दी ! क्यों ?
सुधीर -   नहीं ऐसी कोई खास वजह तो नहीं है बस मन नहीं लग रहा था ।
संजना - तो अभी आप कहां ?
सुधीर - अभी पुणे की एक एमएनसी (MNC) कंपनी में काम करता हूं ।
संजना - चलो बढ़िया है आप भी मेट्रो सिटी की ओर आ ही गए....
सुधीर -  (मैंने एक छोटी सी मुस्कान दी)

लग रहा था जैसे संजना कोई बात करना चाहती हो लेकिन कह नहीं पा रही हो । मैंने भी संजना की परिस्थिति को भाप लिया और कहा हम शायद यहां पार्किंग लॉट पर आइसक्रीम खाने या मेरी और तुम्हारी ऑफिस से संबंधी बातें तो करने नहीं आए हैं तो तुम कुछ कहना चाहती हो तो बेझिझक कहो-

गहरी सांस भरते हुए संजना ने कहा ........हां

हम बात करते-करते पार्किंग लॉट तक आ गए थे । शायद हम दोनों के अलावा यहाँ और कोई भी नहीं था और यह सही जगह थी जहां हम अकेले में बात कर सके कुछ देर की चुप्पी के बाद संजना ने आंखें बंद करके कहा -

और उसने जो कहा वो अचंभित कर देने वाला था ।

संजना - मैं नहीं जानती सुधीर आप मेरे बारे में क्या सोचते हैं, जब आपसे पहली बार मुलाकात हुई थी तो कभी सोचा नहीं था की आप और मैं इस तरह इतने करीब के दोस्त बन जाएंगे । अगर आप मेरी सही समय पर  मदद नहीं करते तो आज मेरी शादी हो चुकी होती और आज मैं जहां कहीं पर भी हूं आप की वजह से हूं और खुश हूं । मैं जानती हूं कि भले आप कितना भी मुझसे छुपाते हो लेकिन यह बात आपकी आंखों में स्पष्ट दिखाई देता है कि आप आज भी मुझे पसंद करते हैं । इस बात से मुझे कोई एतराज भी नहीं है लेकिन ये तो आप भी जानते हैं कि ऐसा हो नहीं सकता । हम दोनों के रास्ते अलग-अलग है । मंजिलें भी अलग-अलग हैं ।
मैंने कभी सोचा भी नहीं था कि हमारी दोस्ती इस कदर आ जाएगी कि हमें यह सब बात करनी पड़ेगी ।
मैं जानती हूं कि मेरे दिल्ली जाने के बाद आपने कैसा महसूस किया होगा । मीता ने मुझे सब कुछ बता दिया आपका जॉब छोड़ना, अपनी किताब लेखन से बाहर जाना और भी सब कुछ .....खैर मैं समझती हूँ कि आप पर क्या बीती होगी लेकिन मैं भी अपनी जिम्मेदारियां और अपनी सीमाओं से बंधी हूं । मेरी ऑफिस में मेरे ही कास्ट के हैं जिन्हें मैं पसंद आ गई हूं और जल्दी से वह मेरे घर में रिश्ता लेकर आने वाले है । मम्मी पापा भी कहते हैं कि - अब तो तुम सेटल हो गई है शादी क्यों नहीं कर लेती ?
शायद कुछ महीने और फिर, मेरी शादी हो जाएगी । मैं चाहती हूं कि मेरी शादी से पहले आप भी अपनी शादी कर ले । मैंने देखा है कि आप मुझसे कहीं ज्यादा अच्छे खुशदिल और खुशमिजाज इंसान है और मुझसे कहीं ज्यादा प्रतिभावान भी.... मैं चाहती हूं कि आप अपने जीवन में सेटल हो जाए । आप तो अच्छी खासी कविता-कहानी भी कर लेते है तो मैं चाहती हूं कि आप अपनी उसी दुनिया में वापस लौट जाए वैसे पुराने सुधीर बन जाए जैसा पहले हुआ करते थे । मैं चाहती हूं कि मेरे होने ना होने का आप के जीवन में कोई असर नहीं पड़ना चाहिए । आप बहुत अच्छे हैं आप बहुत आगे तक जाएंगे...... शायद इसके बाद मैं आपसे दोबारा ना मिल पाऊं इसलिए यह मेरे पास अपनी बात कहने का यह आखिरी मौका हैं। आप जैसे एक अच्छे व्यक्तित्व को ऐसे देख अच्छा नहीं लगता, मैं चाहती हूं कि आप अपनी उसी जीवन में वापस लौट जाएं और हो सके तो के अच्छे से जीवन साथी ढूंढ कर आप भी शादी कर लीजिए, ताकि मैं भी खुशी-खुशी बेफिक्र होकर अपना घर बसा सकूं ।
कुछ चीजों को आप जीवन भर नहीं ले जा सकते और शायद आपके जीवन में - मैं, मेरी याद और मेरी उपस्थिति जो हैं वो आपके लिए आपकी तकलीफ का कारण है  । भले ही आप दुनिया से कितना भी छुपा लें, लेकिन मैं जानती हूं कि मेरा होना ना होना आपके लिए कितना मायने रखता है ।
तो बस मैं यह चाहती हूं कि आप अपनी एक अलग दुनिया बना लें जिसमें मेरे लिए कोई जगह ना हो और मैं जानती हूं कि वह दुनिया बहुत खूबसूरत होगी । (भारी आवाज में उसने कहां और वह चले गए गई)

उस एक चंद समय पश्चात में मेरे लिए यह दुनिया एक दम थम सी गई थी । मैंने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि संजना मुझसे ऐसी बातें आकर कहेगी । हमेशा अपने दिल के दर्द को मैं छुपाता रहा लेकिन नहीं पता था इसे सीधा-सीधा संजना ही नहीं पढ़ रही है । शायद मैं सोचता था कि वह तो नादान है वह मेरे हर भाव से अनजान है लेकिन ऐसा नहीं था । वो लड़की मेरे लिए काफी कुछ पहले ही सोंच चुकी थी । भले ही हम साथ नहीं हो सकते, लेकिन ना साथ होते हुए भी मेरे लिए मेरा अच्छा सोचना...  ऐसा कर उसने मेरे मन में उच्चतम मान पा लिया था ।
मैं उसकी अच्छी नौकरी और उसके दूर जाने से असंतुष्ट था लेकिन वो लड़की मेरी जिंदगी के बारे में इतना कुछ सोच कर चले गई । वह जानती थी कि उसके जाने के बाद मैं शायद खुश ना रह पाऊँ तो शायद समझाने के तौर पर उसने यह सारी बातें कह कर गई ।
उस रात में, मैं ढंग से सो नहीं पाया, नींद भी कहां आती संजना के शब्द कानों में गूंज रहे थे । काफी समय लग गया, सारी भावनाओं को एक निष्कर्ष निकालने में, समझ नहीं आ रहा था कि ये कैसे जज्बात है जो आज संजना मुझसे कह कर गई है । एक तरफ तो वो मेरी खुशी सोचती है और दूसरी तरफ दूर जाने का फैसला भी लेती है। मैं हमेशा सोचता रहा कि संजना मतलबी है कभी मेरे जज्बात और भावनाओं को नहीं समझती लेकिन मैं गलत था । अपनी शादी के बाद भी वह, मुझे भी खुशी देखना चाहती थी । वह चाहती थी कि मैं उसके बिना खुश रहना सीख जाऊं लेकिन वह इस बात से अनजान थी कि कि उसके दूर जाने से .....मैं कैसे खुश रह सकता हूं ।

उसकी बातों का प्रभाव मेरे जीवन में काफी पड़ा । बहुत दिनों तक मैं उसकी बातों से मन से निकाल नहीं पाया । दोस्तों ने सुझाव दिया कि मन बहलाने के लिए कही बाहर चला जाऊं । उसी वक़्त ऑफिस का एक ग्रुप लेह, जम्मू कश्मीर और हिमाचल की यात्रा पे जा रहा था । मैं भी शायद इन सब ख्यालों से बहार आने के लिए यात्रा को सही साथी समझा । 15 दिन की होने वाली ये यात्रा मेरे जीवन का अलग रुख मोड़ देने वाली थी । यात्रा के पहले मन मे हजार सवाल थे लेकिन वापस लौटा तो कई जवाब थे। संजना के कहे गए शब्द, जीवन में मेरी प्रेरणा का करण बने ।

उस पार्टी के बाद मेरी संजना से दोबारा बात-चित न हो सकी । यात्रा से लौटा तो संजना के विचार से प्रेरणा लेकर उसे एक कहानी का रूप दे चुका था । बस कमी थी तो एक किरदार कि वह भी मुझे हिमाचल की वादियों में मिल गई। लौटने के बाद मैंने दो कहानियां लिखी एक मेरी यात्रा के ऊपर और दूसरी संजना के विचार को हिमाचल के उस महिला के किरदार में जो सबको चाय-बिस्कुट बेचती हैं। (ये ऐसी महिलाएं हैं जिनमें परोपकारिता का गुण कुट-कुट कर भरा है ।
भले ही कहानी का रुख कैसा भी हो की भी लेकिन उसके पीछे प्रेरणा संजना से ही थी । यात्रा से वापस लौटने के बाद मुझमे काफी बदलाव आया था ।
कभी-कभी जिंदगी में जरूरी होता है कि हम जिंदगी की छोटी-छोटी जंग को जीते.... अच्छा महसूस करने के लिए यह काफी होता है ।

मैं भी अपने कमबैक से खुश था । पुणे कि नौकरी भी अब अच्छी लगने लगी थी । जीवन के सकारात्मकता की एक अलग ही लहर दौड़ चली थी ।
कुछ महीने बीते....मैंने अपनी कहनियां लिखकर.... उसे प्रकाशकों के पास भेजना शुरू किया और आखिरकार एक बड़े प्रकाशक ने मेरी दोनो कहानियों का एक मिला जुला रूप छापने की सोची । मैंने कुछ वक़्त लिया और अपने जज्बात को किरदार का रंग देकर मैंने कहानियां प्रकाशित करवा दी ।

मेरे लिए, मेरे भविष्य का ये सबसे बड़ा मोड़ था, किताबे तो पहली भी छपती थी लेकिन किसी बड़े प्रकाशक से किताब छपना, वास्वत में ये बड़ी बात थी ।
कुछ दिनों बाद किताब छपने का दिन आया तो माता-पिता भी  मेरी प्रदर्शनी देखने के लिए पुणे आये । यह सब मेरे लिए किसी सपने से कम नहीं था । कभी सोचा नहीं था कि, किसी के बोल मेरे जीवन में इतना कुछ बदल देंगे । माता पिता को मुझ पर गर्व था की मेरी खुद की किताब इतने बड़े मंच पर छपने जा रही थीं ।

शुरू शुरू में किताब की बिक्री जरा कम थी लेकिन फिर भी मैं उन सब से संतुष्ट था । बस मन को तसल्ली देने के लिए कभी-कभी बुक स्टोर पर जाकर अपनी किताब की shelf देखकर खुश हो जाता । अक्सर लोगों को किताबों को पकड़ते, छूते और प्रतिकृया देते... देख, सुन अच्छा लगता था ।
कुछ महीने बीते और संपादक की ओर से एक बुलावा आया । अक्सर लोगों को जब किताब पसंद आती है तो वह अपनी शुभकामनाएं प्रकाशक को ही भेज देते हैं । मेरी भी किताब के लिए कुछ बधाई संदेश और शुभकामनाएं आई थी जिसे मुझे एकत्रित करने के लिए बुलाया गया था । ये पल मेरे लिए बहुत खास था, लोगों की प्रतिक्रिया पढ़ना..... की आखिर मेरी किताब को पढ़कर वो कैसा महसूस करते हैं यह सब जानकर बहुत खुशी हुई । मन के साथ-साथ दिल को तसल्ली तब हुई जब संपादक जी ने अपने मेज से एक चेक निकाल कर दिया। सच कहूं तो इतने पैसे तो मैं एक साल में भी नहीं कमा पाता और यह बस शुरुआत थी । जब-जब खुश होता तो संजना को दिल से धन्यवाद करता, पता नहीं ये कैसा अजीब सा एहसास था कि वह दूर थी लेकिन मेरे लिए फिर भी एक सौभाग्यशाली बन गई ।


अभी सोच रहे होंगे कि मैं कितना अजीब हूं । संजना मुझसे दूर चली गई थी और फिर भी मैं खुश हुआ जा रहा था  । सच कहूं तो मैं भी नादान था मुझे लगता था कि भले विचार संजना से मिले है लेकिन यह सब मेरी उस यात्रा का कमाल है । मुझे लगता था कि अगर मैं बाहर नहीं निकलता, यात्रा पे नहीं जाता, तो शायद ऐसे अच्छी कहानी नहीं लिख पाता ।
खैर भ्रम तो भ्रम ही होता है।  मुझे साल लग गए इन सब चीजों को समझने में.... मैं तो बस अपनी ख्याति समेटने में व्यस्त था और वहां संजना अपनी डोली

आगे की कहानी के लिए अंक 6 जरूर पढ़ें ।

Comments

  1. 🤯🤯🤯🤯😇😇😇😇😇kitna sochta hai story ke liye 👌👌👌👌👌

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