अंक 6 : किस्मत का फैसला
मेरी किताब छपने के बाद सब कुछ बदल गया
था, भले ही किताब को लोगों तक पहुंचने और प्रसिद्ध होने में वक़्त लगा लेकिन जब-जब लोग किताब पढ़ते और उन्हें पसंद
करते तो बधाई जरूर प्रेषित करते । यह वही किताब थी जिसका जिक्र मैंने कहानी की
शुरुआत में किया था । एक वक्त था जब चुनिंदा लोग जानते थे, सोशल नेटवर्क मे भी गिने चुने लोग ही थे,
लेकिन किताब के बाद धीरे धीरे लोग मुझे जानने और पहचानने लगे । किताब के आने से
लोगों में पूछ-परख, मिलना जुलना सब बढ़ गया था । किताब
ने मुझे वो सब दिया जिसकी चाहत मुझे हमेशा से थी । प्रकाशक ने मेरी किताब की 4000 प्रतियां छापी थी तो मेरे लिए यह जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि थी ।
किताब के प्रसिद्धि का असर और भी अन्य
चीजों पर भी पढ़ने लगा, मेरी कंपनी वालों को अब मैं ज्यादा मेहनती लगने लगा था, किताब के छपने के बाद ही मुझे प्रमोशन दे दिया गया । और तो और मुझे पुणे की
विख्यात मैगज़ीन पे एक अलग से कॉलम दे दिया था । जिस पर हर 15 दिन में मुझे एक हिंदी का लेख लिखना होता था । जिस तलाश में में पुणे आया था
वो सब कुछ में मिलने लगा । अपनी जरूरत का ज्ञान और रुचि का काम पाकर खुश था ।
माता-पिता, भी मेरी तरक्की से खुश थे ।
किताब की प्रसिद्धि और अपनी ख्याति मे इतना
व्यस्त हो गया था कि इस चक्कर में अपनी ज़िंदगी में किसी "विषेश"
को महसूस ही नहीं कर पा रहा था । संजना के विचार लेकर ज़िंदगी तो सवांर ली थी
लेकिन उसकी शादी की बात नज़र अंदाज़ कर गया था ।
खैर नजर अंदाज़ नहीं भी किया होता तो
क्या ही कर लेता । संजना खुद, मुझसे दूरी बनाना
चाहती थीं। और शायद मुझे याद न रहने की एक और वजह रही होगी कि....बीते 6-7 सालों में संजना कई बार मेरे जीवन में आती जाती रही हैं, ऐसे में जब वह साथ होती तो महसूस होता कि सब कुछ अच्छा-अच्छा
है, लेकिन जब वो पास नहीं होती थी तो ऐसा लगता था कि आज नहीं
तो कल वह मेरी जिंदगी में वापस आ जाएगी । तो शायद यही वजह रही होगी कि इन बीते 2 सालों में, मैं संजना को ज्यादा याद नहीं कर
पाया ।
वो कहते हैं न सुख के दिन छोटे और दुख के दिन बड़े लगते हैं ।
माता-पिता चाहते थे कि मैं जल्द से जल्द
शादी कर लूं । अब शादी करने में कोई खास दिलचस्पी तो थी नहीं और जिससे करना चाहता
था वह आसपास भी नहीं थी तो ऐसे में बड़े भाई होने के नाते अपने से पहले छोटी बहन
की शादी हो जाए, ऐसा मैंने सोंचा । अपने मां-पिताजी
से मैंने यह बात साझा की तो उन्होंने भी इसके लिए हां कर दी और शुरू हो गया छोटी
के लिए रिश्ता देखने का सिलसिला ।
पिताजी अक्सर कहते थे कि तुम भी यहां आ
जाओ छोटी के लिए रिश्ते आने शुरू हो गए हैं, भाई
होने के नाते तुम्हें भी यहां होना जरूरी है । लेकिन काम की वजह से मैं जा नहीं
पाता था । 6 दिन कंपनी में और एक बचा हुआ एक
दिन मैगजीन के लिए लेख ढूंढने में निकल जाता था । अब जिम्मेदारी ऐसी थी कि, भले ही घर तो पिताजी ने खुद के पैसे से बना लिया हो लेकिन मैं चाहता था कि
छोटी की शादी का खर्च मैं खुद वहन करूं ।
वक्त बदलते देर नहीं लगती आखिर वही दिन आ
गया जब छोटी का रिश्ता तय हो गया । घर में जब भी बात होती तो पता चलता की छोटी को
तो काफी लोग पसंद कर लेते थे लेकिन हमारी छोटी उर्फ मेरी बहन काफी नटखट है तो उसे
कोई लड़का पसंद नहीं आता था । काफी देखने-दिखाने के बाद आख़िरकार उसे एक लड़का
पसंद आ ही गया जो कि उसी के जैसा एक रेस्टोरेंट चलाता हो । हालांकि रेस्टोरेंट
छोटा सा था लेकिन लड़का काफी पढ़ा-लिखा और मेहनती हैं । शुरू शुरू में माता-पिता
थोड़ा घबरा रहे थे क्योंकि अभी छोटी अपनी खुशी के लिए कैफे चलाती थी लेकिन उम्र भर
इसी से ही जीवन काट ले, यह थोड़ा मां-पिताजी को सही नहीं लग रहा था । हर मां-बाप
अपनी बेटी के लिए यही चाहते हैं कि वह उसे एक ऐसे घर में बिहाये जहां पर लड़कियों को
कभी भी आर्थिक तंगी में ना हो । शायद मां पिताजी भी इसी बात से ज़रा सोच में थे ।
खैर जब मैं लड़के से मिला तो यह सब चीजें
दूर हो गई । मैं यह भी जानता था कि मेरी बहन भी काफी काबिल है और इन सब चीजों में तो
वह माहिर हैं, तो आगे चलकर अगर वह दोनों इस
रेस्टोरेंट को साथ में चलाते हैं तो वह उसे काफी ऊंचाई तक ले जा सकते हैं ।
कुछ दिनों बाद छोटी की शादी तय हो गई, रिश्तेदार चाहते थे कि रिश्ते के पक्का होने के साथ-साथ ही लगे हाथ सगाई भी कर
दी जाए क्योंकि अभी शादी में वक्त था तो हमारे परिवार ने भी सहमति दे दी । सगाई के
लिए पुणे से भोपाल की ओर जाते वक़्त मन में काफी सारी भावनाएं थी जैसे उत्सुकता,खुशी और बहन की शादी के बाद ससुराल जाने का गम भी । उस समय के एहसास शायद आपको
शब्दों में बयां ना कर पाऊं । मैं इस शादी से बहुत खुश था ।
घर गया तो, काफी दौड़ भाग मची हुई थी । सगाई में कुछ ही दिन बचे हुए थे । मेरे जाते ही
मुझे भी काफी सारा काम सौंप दिया गया अब बहना की सगाई थी तो काम होना स्वाभाविक ही
है । अंततः सगाई कार्यक्रम काफी थकान के बाद अच्छे से संपन्न हुआ ।
अक्सर कार्यक्रम में कोई ना कोई ऐसी चीज़
बच ही जाती है जो आवश्यकता से ज्यादा मंगा लिया गया हो । हमारे यहां पर भी सगाई
कार्यक्रम के लिए आनन-फानन में बहुत से सगाई कार्डों का ऑर्डर हमने दे दिया था, जो की बच गए थे । सगाई खत्म होने के बाद मैंने एक मेज़ की दराज
पर देखा ढेरों कार्ड पड़े हुए थे । मैं जानता था इनका अब कोई उपयोग नहीं है तो
इसलिए मैं उन्हें समेट कर रखने लगा । उनमें देखा तो पता चला की एक कार्ड हमारे घर
के कार्ड से बिल्कुल अलग है ।
वह पल मुझे अच्छे से याद हैं कि जब मैं उन
सभी कार्ड को छांट रहा था तो मैंने उनमें से एक अलग कार्ड को उठाकर देखा । जैसे ही
मैंने कार्ड पर नाम पढ़ा, मानो एक पल के लिए सब कुछ थम सा गया
था, ना कोई शोर-शराबा.... ना कोई आवाज..... बिल्कुल शांति ... अब तो आप भी यह
समझ गए होंगे कि उस कार्ड पर किसका नाम होगा......जी हां संजना का ।
संजना किसी ध्रुव नाम के व्यक्ति से सगाई
कर रही थी । थोड़ी देर तो मुझे समझने में लगेगी है आसपास हो क्या रहा है, उस एक पल में बस मुझे संजना की वह दो साल पहले वाली तस्वीर
यादें आ रही थी जब हम आखरी बार पार्टी में मिले थे, और वह सारी बातें याद आने लगी जिसमें उसने अपनी शादी की बात कही थी । उस एक थोड़े से समय अंतराल में बहुत सी
भावनाएं महसूस कर पा रहा था । सच कहूं तो बहुत अजीब सा वो एहसास था,और उसकी वजहें भी वाजिब थी क्यूंकि बीते 6-7 सालों में
संजना मेरे जीवन से आते जाते रही हैं तो मैं ये कभी महसूस ही नहीं कर पाया कि
वास्तव में मुझसे वो दूर चले गई है । हमेशा लगता था कि आज नहीं तो कल वापस मुलाकात
होगी और वही बातें, मुलाकातें लौट आएगी।
पहली दफा में तो खुद को समझाना मुश्किल
हो रहा था, बार-बार कार्ड के लिखे
हर एक शब्दों को ध्यान से पढ़ता... लगता कि शायद कुछ गलत लिखा है... शायद कोई
दूसरे का कार्ड हैं, लेकिन हर बार गलत साबित
हो रहा था ।
थोड़ी देर बाद बाद जब सब चीजों से उबरा
तो पता नहीं एक अजीब सी गुस्से की भावना थी तभी ख्याल आया कि पता लगाया जाए कि आखिर किसने यह कार्ड पहुंचाया हैं । सगाई के
कार्यक्रम में सब इतना व्यस्त थे कि किसी को भी ढंग से पता नहीं था कि आखिर ये
कार्ड लाया कौन था चूंकि सगाई में केवल घर-परिवार के लोग सम्मिलित हुए थे तो
मुश्किल था कि कोई बाहर का आया हो ।
बेचैनी बढ़ते ही जा रही थी मुझे कैसे न
कैसे पता करना था कि यह सब कैसे, क्या हो रहा । तभी मन
में लग रहा था की भगवान करें यह सब झूठ हो और शायद यह सगाई न हो लेकिन जब कार्ड पर
देखा तो पता चला की सगाई केवल 3 दिन में हैं । कुछ देर
बाद जब आखिर मेरे सब्र का बांध टूटा तो मैंने सीधा संजना को पूछ कर के बात करने की
सोची, उस समय में ना जाने ये कैसा आत्मविश्वास था
की मैंने सीधा संजना से बात करना सही समझा ।
मैंने संजना को फोन किया -
हैलो संजना !
संजना - हां, आप कौन ?
सुधीर - सुधीर बोल रहा हूं ।
संजना - अच्छा.... हां सुधीर, तुम ...
(बात काटते हुए)
सुधीर - तुम्हारे सगाई का निमंत्रण मिला ...सुना हैं शादी कर रहीं हो ।
संजना - हां.....ये सच हैं ।
सुधीर – तुमने मुझे बताना भी जरूरी नहीं समझा कि तुम शादी कर रही ।
संजना – कैसे बताती...! तुमसे बात करने का कोई जरिया
ही नहीं था..तुमने शहर बदल दिया था, अपना फोन
नंबर बदल दिया था, घर भी बदल दिया था... .... बात करती भी तो
कैसे.... (बात को काटते हुये)
सुधीर- मुझे लगा हम बहुत करीब से एक दूसरे को जानते हैं.... अच्छे दोस्त हैं लेकिन
संजना – तुम क्या कह रहे हो सुधीर ऐसा कुछ भी नहीं हैं, तुम क्या बोल रहे मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा… ये सब छोड़ो मुझे तुमसे अभी मिलना हैं क्या हम मिल सकते हैं ???
सुधीर - तुम खुश हो ना, शादी से.....
संजना – हां, लेकिन....पर मुझे तुमसे बात करनी हैं, तुम आखिर इतने साल कहां थे फोन नं. भी बदल दिया ।
मुझे तुमसे बात करनी है क्या हम मिल सकते
हैं ???............
(मैंने फोन रख दिया)
नाराजगी मेरी इस कदर थी कि मैंने उसके
बाद संजना से दोबारा बात करना भी सही नहीं समझा । पूरा दिन उदासी और बेबसी में
खत्म हुआ । दिन भर सारी 2 साल पुरानी बातें याद आने लगी, कहीं न कहीं खुद से भी नाराज़गी थी कि इन दो सालों में अगर शायद संजना से
मिलने जुलने का प्रयास भी किया होता तो शायद हालात कुछ और ही होते । संजना से भी
नाराज़गी ज्यादा ही थी क्योंकि शादी की बात संजना तो शुरू से करती आ रही थी… लेकिन सीधा कार्ड मिलना, किसी सदमे से कम नहीं था ।
खैर संजना का कार्ड देखने के बाद मेरा मन
ही टूट गया ....चाहते न चाहते हुये भी मैं उसी के बारे में सोंच रहा था । दिनभर घर
में चुप बैठा रहा .... कितना भी छुपाने कि कोशिश करता लेकिन घर-वालों को तो पता
चलना ही था । छोटी ने मेरी उदासी को सबसे पहले भांपा लेकिन मैं उस समय इस अवस्था
में नहीं था कि मैं किसी और को भी, कुछ बता सकूँ ।
पिछली बार जब संजना की बातों का असर हुआ था तो हिमाचल और लेह की वादियों मे घुमने निकल गया था । इस बार सोचा कि सब कुछ भुलाने और वापस से इन सब परेशानियों को दूर करने के लिए वापस से कहीं चला जाऊं । सुबह उठते ही ऑफिस का बहाना देकर घर से निकल गया । स्टेशन पर जो पहली ट्रेन मिली उसी के रास्ते में भोपाल से दूर जाने लगा । सोंच रहा था की मेरी यात्रा से सब बदल जाएगा लेकिन ऐसा नहीं था । पिछली बार की परिस्थिति कुछ और थी और इस बार की कुछ और.... । भोपाल की ट्रेन मुझे गुजरात तक खींच ले आई। कोशिश तो थी लेकिन ज्यादा दूर न जा सका । 3-4 दिन गुजरात के होटल में रहने के बाद मेरा मन नहीं लगा जीवन में एक अलग से शांति थी ना जाने मैं कौन से सवाल का जवाब ढूंढ रहा था ।
थक हारकर वापस पुणा लौट गया । लगा था की
वापस लौटने के बाद सामान्य हो जाऊंगा लेकिन कहां कुछ होने वाला था । संजना की याद
बार-बार आ रही थी । लग रहा था मानव जीवन में सबसे बड़ी भूल हो गई हो । खैर पछताने
से कोई फायदा नहीं होने वाला था लेकिन मन को सुकून देने वाले भी कोई बात नहीं थी ।
अब मैं संजना की कमी से इतना आहत हो गया था कि मेरे लिए मुश्किल था वापस उस हंसी
खुशी वाले जीवन में लौट पाऊँ ।
जब मन अच्छा नहीं होता तो कैसे हो सकता
था कि मेरा स्वास्थ्य अच्छा हो, लगातार काम करने का असर
और बढ़ते तनाव ने मुझे बीमार कर दिया । काफी दिनों तक अपनी तकलीफ नजर अंदाज करता
रहा और इस चक्कर में मेरे स्वास्थ्य काफी कुछ बिगड़ गया । बात तो यहां तक पहुंच गई
थी कि मेरे ऑफिस के दोस्तों को घर में फोन करके बताना पड़ा कि मेरी तबीयत नासाज़ है
। घर वाले भी थोड़े अचंभित में थे कि उन्हें मेरी तबीयत के बारे में कुछ भी नहीं
पता था ।
आखिरकार मुझे अपना सेहत बचाने के लिए घर यानी
भोपाल जाना ही पड़ा, मुझे लेने के लिए सुरेश (छोटी का
मंगेतर) पुणे आया । इतना तो तय था कि सब मेरी हालत की वजह सब जानना चाहेंगे क्योंकि
कुछ ना कुछ मेरे जीवन में छोटी की सगाई के बाद बदला था जिसका असर मेरी सेहत पर नजर
आ रहा था । मैं किसी के भी सवालों के जवाब देना नहीं चाहता था....... बस मौन रहना
चाहता था ।
घर पहुंचा तो घर की एक अलग ही तस्वीर थी, शायद घर परिवार वाले मेरी हालत से अनजान थे । घर में भी किसी ने भी ज्यादा कुछ
मुझसे पूछा नहीं, सब ने आराम करने की सलाह दी । बस
मां थोड़ी नाराज थी क्योंकि मैंने अपनी सेहत के बारे में उससे झूठ कहा था ।
कुछ दिन तो बस ऐसे ही लाचारी में गुजरा
सुबह से शाम अपने बिस्तर पर ही मैं लेटा रहता था । और फिर.... कुछ दिनों के आराम
और दवाइयों से मैं कुछ हद तक ठीक होने लगा शायद छोटी मेरी बहन मेरे ठीक होने का
इंतजार कर रही थी ताकि वह मुझसे खुलकर बात कर सके ।
एक छोटी ही थी जिसे सबसे ज्यादा मेरी
समस्या नजर आ रही थी क्यूकी वह मेरे शरीर से ज्यादा मन के तकलीफ़ को समझ रही थी, पता नहीं इन बीते 15 दिनों में
(सगाई के बाद) छोटी ने मेरे बारे में क्या पता लगाया था, सब कुछ जान चुकी थी । और एक दिन मौका पाते ही छोटी ने मुझसे
आकर बात की -
छोटी ने बताया कि
सगाई का कार्ड देने खुद संजना हमारे घर
आई थी, लेकिन संजना को उस समय तक हमारे परिवार में
कोई नहीं जानता था इसलिए किसी को याद भी नहीं था कि वह कौन है । संजना की सगाई के 3 दिन पहले जब मैं भोपाल से गुजरात चला गया तो मेरे जाने के बाद छोटी ने मेरे
बहुत से दोस्तों से बात करके संजना के बारे में जानने की कोशिश की । मुझे लगता है
कि मीता ही रही होगी जिसने सारी जानकारी छोटी को दी ।
छोटी को सब पता चल चुका था है कि आखिर
मेरे लिए संजना क्या मायने रखती है और मैं उसके प्रति कैसी भावना रखता हूं, लेकिन वह इस बात से भी परिचित थी की संजना की शादी हो चुकी है । छोटी ने बहन होने के नाते ने मुझे काफी
कुछ समझाया । हालांकि वह मुझसे उम्र मे छोटी थी लेकिन बात वह आज बड़ों की तरह कर रहीं
थी । परिवार की चिंता छोटी के शब्दों में साफ़ झलक रही थी सब मेरी ऐसी अवस्था से
परेशान थे सब चाहते थे कि मैं पहले जैसा हो जाऊं,
चाहे जो भी तकलीफ़ हो उसे छोड़ कर आगे बढ़
जाऊं । घंटों की बातचीत के बाद छोटी ने मुझे समझाया की इन सब चीजों से पार लगाने का एक ही तरीका
है कि मैं संजना को जाकर उसके नवजीवन की बधाई दे दूँ और अपनी जीवन को नए ढंग से
शुरू करूँ क्योंकि अब जो हो चुका था उसे
तो कोई बदल नहीं सकता था ।
उस दिन लग रहा था कि भले ही मैं दिखाने
को एक लेखक हूँ, लेकिन मुझसे ज्यादा कहीं विचारों में
धनी मेरी बहन है उसने मुझे नई राह दिखाई कि जीवन में आगे बढ़ना अब इस समय में मेरे लिए
बहुत जरूरी हो चुका हैं । मैंने निर्णय लिया कि मैं शाम को ही संजना के घर उससे
मिलने जाऊंगा और पुरानी सारी बातों को भुला दूंगा ।
ख्याल आया कि क्यों ना अपने साथ मीता को
भी ले लिया जाए वैसे भी मैंने आज तक संजना का घर नहीं देखा था, तो मेरे लिए वह, मिलने का एक जरिया थी
जो मुझे संजना से मिलवा सकती थी मैंने मीता को फोन किया -
हैलो !
मीता - हां कौन
सुधीर - हां मीता, मैं सुधीर बोल रहा हूं, तुम कैसी हो ?
मीता - आखिर तुम्हें फुर्सत मिल ही गई ।
सुधीर - क्या मतलब है तुम्हारा !
मीता - मुझे तुमसे बात नहीं करनी है ।
सुधीर - लेकिन ऐसा क्यों आखिर क्या हो गया.....
मीता - प्लीज इतने नादान मत बनो ! तुम सब जानते हो !
मेरे लिए थोड़े समय में समझना नामुमकिन था कि चीनी जैसे मीठी मीता आज इतना
कड़वा क्यों कह रही हैं ।
सुधीर – मीता! तुम ऐसा क्यों कह रही हो!
मैंने क्या किया है?
मीता- छोड़ो,
मुझे तुमसे कोई बात नहीं करनी है ! बताओ क्यों कॉल किया ।
(मुझे मैंने थोड़ा अपने आप को शांत करते हुए कहा की)
सुधीर - मुझे संजना से मिलना हैं ! क्या तुम मुझे उसके घर ले जा सकती हो !
मीता - तो आखिरकार तुम्हें उसकी याद आ ही गई ।
सुधीर - क्या मतलब है तुम्हारा !
मीता - तुम सब लड़के एक जैसे ही होते हो, जब तक
खुद किसी को चाहते हो तब तो उसकी बहुत इज्जत करते हो और जब वह तुम्हें ना कह दे तो
सबसे बुरी हो जाती है ।
सुधीर - तुम क्या कह रही हो... मुझे तो
मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा है ।
मीता - प्लीज सुबह इतने भोले मत बनो ! तुम बताओ
आखिर इतने दिन तक कहां थे ।
सुधीर - छोटी की सगाई थी और फिर मैं ........
मीता - और फिर मैं क्या......... संजना की सगाई सुनते ही तुम्हें लगा होगा की
संजना तो अब मेरी नहीं हो सकती तो क्या फायदा ! तुम सब के चक्कर में वो बिचारी सब सह
रही ।
सुधीर- तुम क्या कह रही हो, मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा
है ................और संजना को क्या हुआ उसकी तो शादी होने वाली थी न !!!!
मेरे इस सवाल के बाद मीता बहुत देर तक
चुप रही मैं उससे कई बार पूछता रहा लेकिन मीता जवाब नहीं देती है ।
सुधीर – मीता मैं कुछ तुमसे पूछ रहा हूं...... तुम कुछ बताओ तो..... मुझे कुछ भी
नहीं पता हैं..... छोटी की सगाई के बाद मैं बीमार हो गया था ।
.
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.
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सगाई से 1 दिन पहले संजना का रिश्ता टूट गया (मीता ने कहा)
बाकी के लिए अगला और आखिरी अंक जरूर
पढ़ें ।
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