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एक खत माँ के नाम ....

आज का ये ब्लॉग एक खत के रूप मे हैं  जिसमे एक बेटी अपने माँ को अपने नए शहर के , अपने काम-काज के अनुभव बताती हैं , और वो एक तुलनात्मक संबंध बनती हैं अपने पुराने घर और आज के अपने घर (फ्लैट) मे.... भले इस ब्लॉग के लिखे शब्द मेरे हैं पर मैंने कोशिश किए हैं की एक लड़की के मन की बात को लिख पाऊँ....उम्मीद करता हूँ आपको पसंद आएगी... एक खत माँ के नाम .... प्रणाम माँ तुम्हारी चिट्ठी मिली , पढ़कर बहुत अच्छा लगा , आज के जमाने मे कौन आखिर चिट्ठियाँ लिखता हैं , पर हमेशा तुम्हारी जिद और अपने आप की यूं फोन से दूरी मेरी तो समझ से परे हैं..... मैंने इस महीने थोड़े ज्यादा पैसे बैंक मे डाले हैं ... हो सके तो इस महीने पास की दुकान से मोबाइल ले लेना जिससे मैं तुमसे रोज बात कर सकूँ ... तुमने मेरे ऑफिस के बारे मे पूछा था... वह नजदीक मे ही हैं... पर मुझे फिर भी वहाँ जाने के लिए बस या मेट्रो लेनी पड़ती है... ऑफिस की तरफ से मुझे एक फ्लैट दिया गया हैं । हालांकि एक कमरे वाला ही हैं पर वहाँ के घर से बड़ा हैं । सुबह से शाम आफिस , और रात को गाड़ियों के शोर मे पूरा समय निकल जाता हैं , रविवार की छुट्ट