अंक - 4 : जिम्मेदारी या बोझ - सुधीर
अब तक आपने मेरी बचपन वाली फ्लैशबैक की कहानी
पढ़ी, अब वक्त हैं कहानी में आगे बढ़ा जाए....
दोस्तों यारों कि मदद से मेरी पहली किताब
की 100
प्रतियाँ बिकने में सफल रही.... ज़िन्दगी की पहली कमाई के रूप
में 5000
₹ मिलें । मन
में एक अजीब सी खुशी थी, मेरे घर वाले भी मेरे
लेखन-कला से खुश थे । कुछ साल ज़िंदगी के ऐसे ही बीते, भले
कोई नौकरी ना लगी लेकिन थोड़ी बहुत लिखाई से जेब-खर्च निकल जाता था । वैसे भी
स्टेशन के किनारे हर तरह की किताबें बिकती हैं, अब कहानी के अलावा चुटकुले, शायरी, सूडोको , पहेली जैसी किताबें लिखने लगा ।
जीवन ऐसे ही बढ़ने लगा, 2-3 सालों की मेहनत मशक्कत के बाद, 10 जगह हाथ-पांव
मारने के बाद, भोपाल से ही थोड़ी दूर पर ही एक छोटी सी
स्टार्टअप कंपनी में मुझे नौकरी मिल गई । हालांकि ये मेरे पढ़ाई के अनुरूप तो नहीं
था लेकिन फिर भी इंजीनियरिंग के 2 साल बाद जॉब लगना बेहद जरूरी हो गया था । कभी
कोई घर में कहता नहीं लेकिन हालतों से सब वाकिब थे । पिताजी की रिटायरमेंट नजदीक
थी और छोटी की शादी भी । इतने साल सरकारी मकान में रहने के बाद पिताजी रिटारमेंट के
पैसे से अपना खुद का घर बना लेना चाहते थे । तो ऐसे में जरूरी हो गया था कि मैं भी
अब घर की जिम्मेदरियाँ समझूं ।
शुरुआत के कुछ एक दिन थोड़े मुश्किल से
कटे, पर बाद में सब सामान्य सा लगने लगा । सुबह के 8 से रात के 8, अब जीवन का दिनचर्या बनने लगा था । हालांकि काम का काफी दबाव था लेकिन फिर भी
जब शाम को घर लौटता, तो घर में आने की एक अलग
ही खुशी थी । ज़िंदगी का रुख ज़रा बदल सा गया था मानो यही ज़िंदगी का perfect समय हो ।
जीवन में कमाई का अलग ही महत्व होता है
और यह उस दिन पता चला जब पहली कमाई बैंक के खाते पर पर आई । 30,000 प्रति माह में
शायद सब कुछ ठीक ही था । मैं अपने आप से काफी खुश था, सप्ताह के 6 दिन तो ऐसे ही निकल जाते थे और बचे का 1 दिन में, अपनी कविता-कहानी कर लिया करता था । खैर यह तो सामान्य से
जिंदगी थी उथल-पुथल की संभावना जरूर थी तो
..... लो आ ही गई ।
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ऐसे में मेरी बचपन की लड़की मित्र मीता
की शादी तय हुई, दोस्ती के नाते मैंने भी उसकी शादी में
जाने का निर्णय लिया । मीता की शादी में, मैं
उसके घर की तरह काम कर रहा था और करना लाजमी भी था मेरी इकलौती लड़की मित्र थी वो
। घर-गृहस्थी बसाने से पहले मीता चाहती थी की मैं भी अपने जीवन के बारे में सोंचू
। शादी के दौरान अक्सर मुझसे वो कहती थी कि, अब तो तुम कमाने भी लगे हो, अपने बारे में सोंचों, किसी और को अपने जीवन में आने का
मौका दो । लेकिन खुद ये बात मीता भी समझती थी कि मैंने कभी संजना के अलावा किसी को
पसंद नहीं किया । इसलिए कभी-कभी वो मजाक-मजाक में कहती थी कि क्यों न तुम भी संजना
के घर जाके उसका हाथ मांगो । लेकिन 3 महीने बस कि नौकरी………… इतना आत्मविश्वास नहीं देती थी । शादी का दिन आया, और हल्की परेशानी वाली बात होने लगी ।
मैं इस बात से तो परिचित था कि मीता......
मेरे आलवा संजना की भी काफी घनिष्ट थी । तो इससे यह तो तय था कि संजना भी मीता की
शादी में आए । खैर जीवन में जब खुशियां हो तो आदमी किसी से नहीं डरता है, लेकिन फिर भी जिसके लिए कभी कुछ मन में भावनाएं बसी हो उनसे रूबरू होने में
हिचक तो रहती हैं किं कही घाव हरे न हो जाये । संजना के बारे में सुनने आया था कि
अभी वह किसी सरकारी बड़े परीक्षा की तैयारी कर रही है ।
आखिरकार मेरी मुलाकात संजना से मीता के रिसेप्शन
पर हो ही गई । खैर काफी दिन बाद उसे मिला था तो यह सबकुछ अजीब सा था क्योंकि अभी
तक जितनी भी मुलाकातें हुई वो बिल्कुल न के बराबर थी । कभी-कभार फेसबुक में भी हाय-हैलो से ज्यादा कुछ
नहीं हुआ । शायद मीता के शादी ही थी जो
शायद मेरे और संजना दोनों के लिए रिश्तों के नये आयाम खोल दे ।
शादी में मीता ने भी स्टेज में चुटकी
लेते हुए कहा कि अब तो अगली शादी सुधीर की ही है, वो भी संजना के सामने । खैर उससे तो शिकायत भी नहीं हैं वो तो बस मेरा भला
सोंच के कह देती हैं । शादी में और भी मेरे दोस्तों की यही राय थी कि कि अब मैं
शायद कमाऊ हूं तो संजना से दोबारा एक बार जाकर अपने लिये बात करूं या उसके परिवार
से बात करूँ । लेकिन सच बताऊं तो मेरा मन नहीं माना था जीवन में बड़े सपने देखे थे
और अभी तो बस शुरुआत ही थी ।और मुख्य रूप से मैं ही संजना को पसंद करता था वो नहीं
। हल्की-फुल्की गुस-फुस-आहट को शायद..... संजना ने सुन लिया....अब इतनी बातें हो
रही थीं,
और तो और जिसकी शादी हैं वो खुद हमारे बारे मे कह रही हो तब
तो संजना का सुनना तो लाजमी था ।
शादी की व्यस्तता के कारण....मेरी और
संजना की ज्यादा बात चीत न हो सकी, शायद वह कुछ
परेशान थी । अगले दिन शायद मै अपने काम-काज़ पर वापस जाता उससे पहले एक मैसेज आया -
Can we Meet ?
जी हां ! ये मेसेज संजना का ही था ।
मेरे लिए तो मानो वो सब एक सपने कि तरह
था । जिससे आज तक ढंग से बात न हुई हो वो आज खुद से मिलने को कह रही हैं....कुछ
बात हज़म नहीं हो रही थी । उनसे मिलने के पहले हजार खयाल सोच चुका था कि आखिर उनके
मिलने कि वजह क्या रही होगी ।
एक पल के लिए तो ऐसा लगा कि शायद कल शादी
पर दोस्तों कि चुटकी को तो उसने seriously तो नहीं ले लिया था । पर
ऐसा नहीं था.....
हमारी मुलाकात एक कॉफी शॉप पर हुई....।
काफी परेशान था मैं कि आखिर क्या बात करनी होगी.... संजना को मुझसे । जब मिलकर
उसने अपनी व्यथा सुनाई तो मैं अपनी बचकानी सोच पर पछता रहा था । आज की मुलाकात से
ये बात तो तय हो गई थी कि लोग अक्सर मुझे मुसीबत मे ही याद करते हैं। कॉलेज के बाद
हर कोई अपनी अलग अलग मंजिले चुनता है कोई किसी कंपनी, तो कोई किसी सरकारी दफ्तर में काम करने का निर्णय लेता है ।
संजना ने भी कलेक्टर बनने का सपना देखा । कॉलेज के बाद उसने इसके लिए काफी
तैयारियां की । बेशक वह होशियार थी लेकिन जैसा रास्ता उसने चुना था उसके लिए थोड़ा
वक्त और तैयारी की आवश्यकता थी । मीता कि शादी के बाद अब उस पर भी यहीं भार था कि
वह शादी कर लें हालांकि संजना के घर-परिवार का पूरा सहयोग था लेकिन रिश्तेदारों कि
अवज में माता पिता भी कभी कभी रिश्ते कि बात कर देते थे ।
मीता मुझ पर काफी भरोसा करती थीं इसलिए
उसने शायद संजना को भी मुझसे मिलने की सलाह दी होगी । संजना का ऐसे मिलने आने से
एक बात तो तय थी कि वह भी मुझ पर भरोसा करती थी । और शायद इसकी वजह यह भी रही
होंगी को मैंने इन 3 सालों में जितना परिश्रम अपनी नौकरी पाने में किया हैं उसी
सारे एक्सपीरियंस की वजह से आज संजना मुझसे मिलने आई हैं ।
हमने निर्णय लिया कि आस-पास जितने भी
छोटे मोटी कंपनियां में काम होंगे जो संजना के अनुरूप है वैसी जॉब तालश करना ।
अगले दिन से ही मैंने संजना के लिए उसके अनुरूप काम ढूंढना शुरू कर दिया ।
मेरी और संजना के लिए ये मेल-मिलापों का
दौर बढ़ गया । काम के सिलसिले में हम काफी बार आसपास ट्रैवल करते, घूमते इंटरव्यू के लिए आते जाते रहते थे । भले संजना के लिए ये नौकरी कि
भाग-दौड़ थी लेकिन मेरे लिए किसी यादगार
लम्हों से कम न थी । रोज का घूमना फिरना आदतों में बसने लगा था । सुबह की चाय से
लेकर शाम के नाश्ते तक, पूरा दिन संजना के इर्द-गिर्द ही
गुजरता था । हालांकि मैं तो अपनी चल रही नौकरी से खुश था लेकिन संजना का साथ पाकर , मैंने भी कई परीक्षाओं और नौकरियों के इंटरव्यू दे दिया करता था ।
संजना भी मुझे अब अपना करीबी दोस्त
समझने लगी थी हर बात वह मुझसे साझा करती थी। हालांकि उसके सपने बहुत बड़े थे लेकिन
घर कि आर्थिक जिम्मेदारी को समझकर वो नौकरी करने को भी तैयार थी । शायद कोई भी
बच्चा नहीं होगा जो अपने माता-पिता को अपनी कमाई न खिलाना चाहता हो । हर किसी कि
ख्वाहिश होती है कि वो एक दिन अपने मां- पिताजी के सपने पूरे करें और संजाना भी इन
मे से एक थीं । बेटी होने के नाते वह अपने घर के आर्थिक खर्च वहन करना चाहती थी, अपनी छोटी बहन को मेडिकल कि पढ़ाई करवाना चाहती थी । सच मे इतना सब जान कर, मेरे मन मे संजना के लिए इज्जत कई गुणा और बड़ गई थी ।
रोज की दिनचर्या से एक फायदा तो जरूर हो
गया था संजना को करीब से जानने का मौका मिल गया था। अभी तक तो मैं उसे केवल पसंद
करता था लेकिन अब उसे करीब से जानकार एक अलग ही सुकून और खुशी महसूस होती रही, लगता था कि शायद इसकी खुशी में ही मेरी खुशी है । मैं सारी दुनिया संजना के आस-पास
ही बसाना चाहता था। लेकिन............ किस्मत में कुछ और ही था ।
अभी संजना के साथ वक्त गुजारना अच्छा भी
लग रहा था कि बस यह समाप्ती की ओर आ गया । इस बात में तो कोई शक नहीं था कि संजना
मुझसे कहीं ज्यादा प्रतिभावान थी, ऐसे में उन्हें
आखिर उनके परिश्रम का फल मिल ही गया । एक प्राइवेट कंपनी में मुझसे कहीं ज्यादा
पैकेज में उन्हें नौकरी मिल गई । संजना की उस नौकरी कि वजह से उन्हें भोपाल छोड़कर
दिल्ली जाना पड़ा ।
और वह चली गई ।
खैर संजना के लिए भी आसान नहीं रहा होगा, यहां से दूर परिवार को छोड़ दूर जाना और मेरे लिए तो संजना कि कमी खलना ।
संजना के जाने के बाद मैं अक्सर उदास रहने लगा था । शायद संजना से लगी यादें अब
खटकने लगी थी । शुरुआत में संजना अक्सर मुझे फोन,
मेसेज किया करती थी और शायद उससे बात करके दिल हल्का भी हो जाता करता था । लेकिन प्यार तो मुझे था तो तकलीफ़ भी मुझे ही ज्यादा होती
था । वो तो कहते हैं न कि खाली दिमाग शैतान का घर..... कुछ दिन के बाद कहीं ना
कहीं………मैं ही संजना को हमारी दूरियों का जिम्मेदार मानने
लगा था हालांकि ऐसा वास्तविक में नहीं था । बस मन का अहम या मेरा अहंकार भी आप कह
सकते हैं । संजना काफी प्रयास करती कि मैं उससे बात करूं लेकिन मेरी बेरुखी आखिर
कब तक सहती । काम के बढ़ने के साथ-साथ संजना के फोन आने भी कम हो गए और एक दिन ऐसा
भी आया कि फोन आने ही बंद हो गए ।
कल तक जो नौकरी मुझे अच्छी लगती थी मेरी
पसंद का काम लगती थी, अब वह 12 घंटे की थका देने वाली मेहनत
लगने लगी । शायद मुझे लगता था कि जीवन में अब कुछ नया बचा ही नहीं है । लगता था
मानो दोबारा खुशियां आएंगी ही नही । खैर कब तक सहता मैंने भी अपनी भोपाल की नौकरी
छोड़ दी और मैं भी निकल पड़ा सपनों के शहरों की ओर.....लेकिन मुझे जगह पुणे में
मिली । वहां की एक कंपनी ने मुझे ऑफर किया था और मैं केवल भोपाल से इसलिए जाना
चाहता था कि संजना की याद को खत्म कर पाऊं । इसलिए मैंने पुणे जाने का ठाना । भोपाल
छोड़कर जाना और कंपनी को ज्वाइन करना मेरे लिए मुश्किल था क्योंकि जो बच्चा आज तक
अपने मां बाप से 10 दिन भी दूर न रहा हो उसके लिए तो यह बहुत मुश्किल ही था ।
मुझे लगता था कि पुणे आने से मेरी सारी
समस्या खत्म हो जाएगी लेकिन शायद मैं गलत था परेशानियां कम की बजाए, बढ़ती चले गयी । बेशक भोपाल की नौकरी
से काम कम ही था । 12 घंटे की जगह केवल 8 घंटे लेकिन पुणे के ट्रैफिक और गाड़ियों के
शोर में सुबह और शाम का 2 घंटा अतिरिक्त लग जाता था । आखिरकार 8 से 8 की नौकरी
पुणे में भी हो ही गई थी । जिस समय और काम का बहाना देकर मैं भोपाल से पुणे आया था
वह भी अभी वाजिब ना लगने लगा ।
खैर क्या करता अब फैसला ले लिया था तो
भुगतना ही था । परिवार से दूर आकर मैं ज्यादा खुश तो नहीं था । भले शायद 12 घंटे
की नौकरी अब 8 घंटे में बदल गई थी, सैलरी में एकाद
शून्य कम ही लगे लेकिन अपने आप को सुकून देने के चक्कर में सब कुछ सह रहा था ।
कहने को तो कुछ महीने ही बीते लेकिन मेरे
लिए ये दिन किसी वर्षों से कम नहीं थे ।
कुछ और वक्त गुजरा पुणे की आदत सी लग गई
हल्की-फुल्की मराठी भी सीखने लगा था । अब नई नौकरी ढूंढने का भी मन नहीं था । इधर
पिताजी की रिटायरमेंट भी करीब थी, पिताजी ने फैसला लिया
कि वह अपनी जमा पूंजी से घर बना दे । मेरी भी बड़ी तमन्ना थी कि कुछ पैसे अपनी तरफ
से देकर घर के निर्माण में भागीदार बन जाऊं । लेकिन क्या करता पुणे में तो अपनी
तनख्वाह से दिन काटना मुश्किल था । किराए और आने जाने में ही पूरी तनख्वाह निकाल
जाती थी ऐसे में पिता जी ने अपनी जमा पूंजी से घर बनाना शुरू कर दिया।
घर के सिलसिले में मुझे पिताजी कई बार
भोपाल बुलाते लेकिन समय के आभव में घर नहीं जा पाता था । कुछ दिनों बाद आखिरकार
मौका मिल ही गया कि घर से होकर आऊं लेकिन नहीं पता था कि यह 4 दिन की यात्रा वापस
से जिंदगी में एक नया मोड़ लाने वाली है । और अब तो आप भी समझ ही गए होंगे कि नया
मोड़ आखिरकार क्या होने वाला है ।
जी हां संजना…....... संजना जब भी मेरे
जीवन में आती है हमेशा बदलाव का कारण बनती रही है । 4 दिनों की छुट्टी में आया तो
घर के काम से था, लेकिन आने पर पता चला कि मेरी एक
स्कूल में साथ पड़ने वाले दोस्त की शादी है । हालांकि मन तो नहीं था लेकिन फिर भी
घर वालों के जोर में, पार्टी में जाने को राज़ी हो गया ।
खैर इस बार उम्मीद तो नहीं थी कि वापस संजना से मुलाकात हो लेकिन अब तो वह मेरी
कहानी की जरूरत बन चुकी है तो उसे कहानी में वापस आना ही था ।
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