A Day- एक दिन






प्रिय पाठक

आज पुनः एक लंबे अंतराल के बाद आज मैं एक नए अनुभूति के साथ आपके समक्ष अपने विचार प्रकट करने जा रहा हूँ, उम्मीद करता हूँ की आप को पसंद आएगा...


बात दरअसल कुछ दिन पहले की है... मैं अपने किसी काम से बाहर गया हुआ था.... और मुझे आधे रास्ते मे ही अपने किसी काम के कारण रुकना पड़ा, मैंने देखा उस जगह पर एक बहुमंजिला भवन का निर्माण हो रहा था.... तप्ती धुप की, तप्ती दोपहर का समय था, उस बहुमंज़िला भवन पर काम रुका हुआ था, सारे मजदूर विश्राम कर रहे थे । तभी मेरी नज़र रेत पर खेल रहे एक बच्ची पर पड़ी, शायद वह बच्ची उस बहुमंजिला मे काम करने वाले मजदूरो मे से किसी एक की बच्ची रही होगी.....


वह बच्ची रेत के टीले पर वृक्ष की छांव के आड़ मे कुछ खेल कर रही थी, इस तप्ती धूप मे भी शायद पेड़ की छाव उसे ठंडक भरे सुकून की मनोरम एहसास दिला रही थी..... इस बीच मे एक व्यक्ति उस बच्ची के करीब आकार बैठता है, शायद वह व्यक्ति उस बच्ची का पिता होंगे....काम के बाद अपनी थकान मिटाने वह उस रेत के टीले पर आते हैं, बच्ची अपने पिता को अपने उस खेल मे शामिल करने लगती हैं, वह अपने पिता के हाथो को रेतों मे दबाने लगती हैं थोड़ी देर तक पिता उसे ऐसा करने देते हैं फिर वे भी उसके इस खेल मे भाग लेने लगते है और उसके साथ खेल करने लगते हैं....कभी रेत मे मंदिर बनाना हो या कभी बच्ची के पावो को रेत मे दबाना...

                       बच्ची और उसके पिता का यह खेल एक मनोरम सा दृश्य देता है और एक न चाहने वाला व्यक्ति भी उनकी इस खिलखिलाहट पर एक दफा जरूर गौर करता हैं ।

हालांकि देखने मे यह एक समान्य सा पिता और बेटी का एक संवाद लगता हैं लेकिन एक नजरिये से देखा जाए तो ये कुछ बात हमे बता जाता हैं....

हो सकता है उस बच्ची के परिवार की परिस्थिति खराब रही हो........ या जैसे भी वो वह बच्ची स्कूल न जा पाई हो पर कहीं न कहीं उसने अपनी ज़िंदगी को ऐसे ही Accept ( समायोजीत ) किया हैं.....

वो पिता भी 50-50,100-100 किलो की बोरियाँ को अपने कंधे मे रख कर बहुमंज़िला मकान पर पहुचाते हैं लेकिन फिर भी उनकी थकावट बेटी के सामने कुछ भी नहीं है वो बच्ची मे खेल मे बराबर का प्रतिस्धात्मक व्यवहार रखते हैं और उसके साथ खेल करते हैं ।



इस कहीं न कहीं एक छोटे से दृश्य से बहुत कुछ कहा जा सकता हैं पर मैं इन सब मे एक सकारात्मक पहलू ये देखता हूँ की भले ही उस परिवार के पास पैसे न हो....चाहे परिस्थिति जैसे भी हो लेकिन पिता और बेटी ने एक छोटे से समय अंतराल मे वो खुशी के एक छोटा सा पल चुरा लेते हैं। 
मैं समझता हूँ की ये परिवार शायद सब से ज्यादा सुखी परिवार होगा जो जीवन मे तमाम असुविधाओं को पीछे छोड़ते हुए ये कहता है की खुशियाँ अपनों से आती हैं पैसे और घर के सुविधाओं से नहीं....

हम अक्सर इस बात पर पछतावा करते हैं, की हमारे पास जितना हैं वो बहुत कम है और हमेशा इस सोच मे रहते की कैसे हम अपनी सुविधाओं को बड़ा सकते हैं लेकिन कभी ये नहीं महसूस कर पाते हैं की हमारे पास जीतना है उतना ही बहुत हैं... मैं समझता हूँ की आप दुनिया के उन भाग्यशाली लोगों मे एक है क्योंकि आपके पास एक परिवार हैं ।


और बस अंत मे इतना कहना चाहूँगा की जीवन मे खुश रहिए और अपनों को अहमियत दीजिये, सुविधाओं मे कुछ नहीं रखा है बस आप उनमे कैसे अपने आप को समायोजीत करते हैं ये आप के ऊपर निर्भर करता हैं।


उम्मीद करता हूँ की आप को मेरा आज का विषय पसंद आया होगा ।


अगर पसंद आया हो तो शेयर करना न भूले ।



धन्यवाद !!




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