काली – एक नाट्य कथा







नोट – उपयुक्त कहनी का प्रस्तुतिकरण एक नाटकीय मंचन के आधार पर किया गया हैं ।


खचाखच भरे पूरे सभा-भवन (हाल) मे सबकी निगाहें स्टेज की तरफ, सब पर्दे के उठने का इंतज़ार करते हुये । सभी के हाथों मे एक समान पर्चियाँ हैं  हैं जिस पर नाटक का चित्रण और आमंत्रण संबंधी बातें हैं । आस-पास की गुसफुसाहट से लोगो को लग रहा था की कोई देवकीय संबंधी नाटक होने वाला हैं । प्रवेश पर्ची पर भी एक लड़की की तस्वीर हैं जिसे काली का स्वरूप बताया गया हैं ।


काफी शोरगुल के बीच पर्दा उठता हैं, एकाएक सबकी आवाज़ थम सी जाती हैं ।

नाटक प्रारंभ –

एक गाँव परिवेश के दोपहर का दृश्य , जहां एक छोटे से कच्चे मकान के अंदर का दृश्य प्रतीत होता हैं । जहां 2- 3 महिलायें चावल चुनने का काम करती नज़र आ रही हैं और साथ ही साथ वो अपनी कथा-कहानी, हसीं-ठिठोली तो कुछ तंजों का पिटारा एक दूसरे के साथ साझा कर रही हैं ।

तभी एक छोटी बच्ची की आवाज़ - माँ....... माँ ,

तभी उनमे से एक महिला उस बच्ची की आवाज़ पर प्रतिकृया देती हैं – हां, नीरू क्या हुआ ?

नीरू (छोटी बच्ची) - माँ, जरा मुझे तैयार कर देना !

महिला- हाँ, आती हूँ !

उस बच्चे की माँ के आने पर बाकी अन्य महिलायें ऐसी प्रतिकृया देती हैं मानो बच्ची का तैयार होना कोई बड़ा अभिशाप हो गया ।
बच्ची की माँ उठ कर चली जाती हैं ।

पहली महिला – ना जाने कहाँ जाने को तैयार कर रही !
दूसरी महिला – क्या पता ! अब गाँव के हालत से तो हर कोई वाकिब हैं ।
पहली महिला – सब कुछ जान कर भी ऐसा कर रही , तो अब कोई क्या कर सकते हैं ।

 महिलाओं के इस वार्तालाप के बीच बच्ची की माँ कमरे से बाहर निकलती हैं और अपना हाथ धोने को जाती हैं ।
और फिर वापस वह चावल चुनने को आ जाती हैं ।

थोड़ी देर की चुप्पी के बाद ,

पहली महिला – क्यों री, तू तो गाँव के हालत से अनजान नहीं हैं, फिर भी नीरू को तैयार कर रही ?

इससे पहले की नीरू की माँ कुछ बोल पाती नीरू बाहर आती हैं ।

नीरू का प्रवेश -
नीरू एक छोटी 10-12 साल की बच्ची हैं । उसका पहनवा कुछ अजीब सा होता हैं । बच्ची सर से पाँव तक काले रंग के लिबास में होती हैं । काले रंग का सलवार-सूट और उसमे भी हाथो पर काले रंग का कपड़ा और पैरों पर काले रंग का मोजा आदि । उसने बाकी अन्य शरीर जैसे माथे और हाथों की हथेली पर किसी प्रकार का काला रंग लगाया हुआ प्रतीत होता हैं ।
बच्ची वास्तविकता मे एक साफ और गोरे रंग की दिखाई पड़ती हैं लेकिन नाट्य ने कहीं न कहीं ऐसा दिखाने का प्रस्तुत किया हैं मानो उस बच्ची के शरीर पर कोई काला रंग ऊपर से लगाया हुआ हैं ।

बच्ची के ऐसे अवतार पर बाकी अन्य महिलायें आवाक सी दिखाई पड़ती हैं । महिलाओं की जिज्ञासा इस कदर हैं की उसमें से एक महिला तपाक से कह पड़ती हैं ।

दूसरी महिला - कहाँ जा रही नीरू ?
नीरू – मौसी, मैं अपनी एक सहेली के घर खेलने जा रही हूँ ।
पहली महिला – तो बेटा, ............ ऐसे कैसे ?

इस सब मे नीरू की माँ को मौका मिल जाता हैं कहने का –

नीरू की माँ – अब दुनिया के डर से क्या मेरी बेटी बाहर निकलना छोड़ देगी !!!

महिलाओं के कौतूहल से चहेरे मे से दूसरी महिला का एक और सवाल –

दूसरी महिला – वो सब तो ठीक हैं, लेकिन तुम (नीरू की माँ) तो जानती हों की अब तो हमारी ये छोटी-छोटी बच्चियाँ भी सुरक्षित नहीं हैं और पिछले हफ्ते जो हमारे गाँव मे हुआ उसके बाद तो अब आस-पास वालों से भी उम्मीद नहीं की जा सकती । ऐसे मे भरी दोपहरी को तुम नीरू को एक अनजान के घर वो भी अकेले कैसे भेज सकती हो । चलो मान लिया की नीरू की सहेली के घर तो वो सुरक्षित हैं, लेकिन गली-रास्तों का क्या !

पहली महिला – हाँ, ये सही कह रही हैं, पहले तो सब ठीक था, लेकिन पिछले हफ्ते जब हमारे गाँव मे भी ये सब हुआ , तब से आस-पास जाने में भी डर लगता हैं । मीधा भी ऐसे ही शाम को घर से लौट रही थी और उसके साथ उन बदमाशों लड़कों ने ज़ोर- जबर्दस्ती करने की कोशिश की उसके बाद तो….. अपने गाँव के लोगो से भी अब भरोसा उठ गया हैं।

नीरू की माँ – हाँ मैं सब जानती हूँ । मीधा के साथ जो हुआ उससे मैं भी भली भांति परिचित हूँ, लेकिन ये सब कारण काफी नहीं हैं मेरी बेटी को घर में रोकने के लिए । जानती हूँ की नीरू जैसे अब छोटी लड़कियां भी अब सुरक्षित नहीं हैं आए दिन टी॰वी॰ पर आसिफा जैसी कई बच्चियों की खबर आती हैं और मीधा तो हमारे सामने का एक बहुत बड़ा उदाहरण हैं , लेकिन फिर भी ये बातें मेरी बेटी को बाहर निकालने से नही रोक सकती ।
बेटा नीरू जरा मौसी को दिखाओ –

इतना सुन वह छोटी बच्ची नीरू झुककर अपने मोजे से एक छोटा चाकू निकलती हैं – अगले पल में वो अपनी जेब से एक पावडर निकालती हैं और बताती हैं की ये मिर्ची-पाउडर हैं । अपने पीछे वो अपनी चुन्नी मे कुछ पत्थर रखी होती हैं वो दिखाती हैं । बालों मे सूजे छुपा के रखी होती हैं वो भी दिखाती हैं । और साथ ही साथ ये भी बताती हैं की वह उसका इस्तेमाल कैसे करेगी ।

इतना कहने के बाद नीरू को उसकी माँ उसे जाने को कहती हैं । और वह नीरू के जाने के बाद कहती हैं –

जानती हूँ, जमाना खराब हैं आस-पास इतना कुछ हो रहा की अब हर बातों से डर लगने लगा हैं, लेकिन इसके बावजूद नीरू खेलने न जाये तो इसमे उसका बचपन भी नहीं बच पायेगा । ऐसे मे जरूरी हैं की नीरू को मैं आत्मनिर्भर बनाऊँ । उसका ये काला रंग उसे हौसला देगा लड़ने को और उसके ये हथियार उसे बचने मे मदद करेंगें । अब नीरू को अपना बचाव खुद ही करना होगा ....

तभी तपाक से दूसरी महिला कह पड़ती हैं – तो फिर ये काला रंग ,

नीरू की माँ- काला रंग उसकी शक्ति और प्रबलता को दिखाएगा, कहीं न कहीं मुझे डर हैं की उसका गोरा रंग लोगो को उसे मासूम और बेसहारा लगने पे मजबूर कर सकता हैं पर उसका यही काला रंग उसे अपना रौद्र रूप अपना प्रबल रूप दिखाने मे मदद करेगा ।

अचानक से सारी स्टेज पर जल रही लाइटें बंद हो जाती हैं और नीरू की माँ पर एकाएक रोशनी से वह मुख्य आकर्षण बनती हैं ... और नीरू की माँ कहती हैं –

जानती हूँ ये काला रंग उसका ये बचाव के तरीके सहीं नहीं हैं लेकिन क्या करूँ अब जमाना ही ऐसा हो गया हैं की नीरू को अपने लिए खुद ही लड़ना होगा, अब बुरे नज़र और लोगों का संहार उसे खुद ही करना होगा । 
 पर्दा गिरता हैं और एक लड़की की आवाज़ मे –

आये दिन हम रोज ऐसी खबरों से हम रूबरू होते हैं, जहां किसी लड़की, महिला और अब तो बच्चियों के साथ कोई न कोई दुर्व्यवहार की घटना रोज़ आती रहती हैं । यहाँ ढंग से किसी के घाव भरे नहीं होते वहाँ किसी और के जख्म बन जाते हैं । आये दिन हो रही ऐसी घटना हमें दिन ब दिन कमजोर बनाती जा रही हैं , ऐसे मे जरूरी हैं जब अपराध करने वाले बढ़ रहे तो हमे भी सहने वालों की संख्या मे कमी लानी होगी , ज्यादा से ज्यादा लोगो को आत्मनिर्भर बनाना होगा ,अपना बचाव खुद करने वाला बनाना होगा । चाहे उसका स्वरूप काली या फिर चंडी ही क्यूँ न हों ।

नाटक खत्म !

सार – ये कहानी आये दिन हो रही घटना का दिखाते हुये माँ के एक ठोस कदम को प्रदर्शित करती हैं । नीरू के गाँव के एक छोटी बच्ची हैं जिसके आस-पास उसके ही हमउम्र जैसे लड़की के साथ दुर्व्यवहार होता हैं और ऐसे समाज जहां रोज ऐसी घटनाएँ अख़बार की पहली ख़बर बनती हैं , वहाँ उसी समाज में नीरू जैसी बच्ची के लिए घर से निकलना भी मुश्किल हो जाता हैं । ऐसे मे नीरू की माँ उसके लिए ठोस फैसले लेती हैं, वो उसे घर मे बैठने की बाजाय उसे बाहर खेलने जाने में अपना अच्छा समझती हैं । नीरू का माँ डरकर रहने की बजाय उसे आत्मनिर्भर बनाना सिखाती हैं, अपने बचाव के तरीके सिखाती हैं । बेशक नीरू की माँ डरती हैं की कहीं उस गोरा रंग लोगो को उसकी कमजोरी न लगे इसलिए वो काले रंग का सहारा लेती हैं जो उसे कठोर और दृड़ बनायेगा । नीरू की माँ अपनी बेटी नीरू को सारे लड़ने की तकनीक और अपनी सुरक्षा खुद करने का रास्ता सुझाती हैं ।

निर्देश – ये कहानी केवल एक काल्पनिक सोंच हैं, जहां मैं केवल ये दिखाना चाहता हूँ कि आज के समय में हो रहीं घटनाओं पर कैसे एक माँ अपने बेटी का बचाव सोंचती हैं, उस कड़ी में नीरू की माँ निरु को कठोर और अपने बचाव के लिए उसे काली जैसा रौद्र स्वरूप देती हैं । 

आज के समय में आये दिन ऐसी घटनायें सुनने को मिलती हैं, जिसमें लड़कियां, छोटी बच्चियाँ और महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार की घटना सामने आती हैं । जाहीर हैं समाज मे बुरी नज़र को बदलना जरूरी हैं, न की लड़कियां, महिलाओं और बच्चियों को, लेकिन अब साफ चेहरे के पीछे बैठे राक्षस मन को कोई भांप नहीं सकता । ऐसे मे जरूरी हैं की हम अपनी अपने आस-पास वाली महिलाओं, बहन, बेटी और बच्चियों को इतना साक्ष्य बनाए की कोई बुरी नज़र पड़े तो उसका वो खुद कठोरता से सामना करें । और इसके साथ-साथ हमें भी उतना ही भागीदार होकर ऐसी बुराइयों को जड़ से निकालकर बाहर फेकना होगा , तब कहीं जा कर एक बेहतर कल बनेगा ।



Comments

  1. भाई आज आपने सिद्ध कर दिया, बाप बाप होता है! जिस बेबाक़ी से आपने अपनी बात रखी, जिस अंदाज का उपयोग किया, वह काफी जुदा है! ऐसा ही लिखते रहें!

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    1. धन्यवाद भाई, आपके सराहनीय शब्दों के लिए, और आपका अनेक अनेक धन्यवाद की आपने अपना कीमती समय इस ब्लॉग को दिया ।
      बस आप से ही सीख रहे !!

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  2. Bahut hi achhi soch ke sath aapne isse likhaa hai sir..aap ek bahut hi achhe writer hn.is kahani ka saar aaj ke unn yuva ldko ki gandi soch ko badal skti hn..It is an eye opening message for boys..

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    1. धन्यवाद भाई, आपके सराहनीय शब्दों के लिए ! छोटी सी कोशिश हैं की एक अच्छे विचार समाज मे प्रेषित हों और हम अपने आस-पास को एक बेहतर वातावरण बना पाये !
      और आपका अनेक अनेक धन्यवाद की आपने अपना कीमती समय इस ब्लॉग को दिया ।

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