मन की बात #3 – ज़िंदगी एवं जीवन पर चिंतन (व्यंग्य)

अंग्रेजी का एक शब्द #RIP - किसी व्यक्ति को श्रद्धांजलि में कहे गये शब्द । यहाँ हिंदी में अगर किसी अपने के प्रति दो शब्द श्रद्धांजलि के कहने हो तो, जैसे शब्दों की बाढ़ सी आ जाये, भले आदमी भाव-विभूर ही क्यूं न हो जाये, पर शब्द कम नही पड़ते । और यहाँ अंग्रेजी में 3 अक्षर में पूरी बात खत्म । खैर ये तो फिर अंग्रेजी और हिंदी में द्वंद वाली बात हो जाएगी । अंग्रेजी के इस शब्द से अनजान काफी दिनों तक मैं सोंचता था कि आख़िर इसका मतलब क्या होता होगा । बाद में पता चला RIP = Rest in Peace.

तो इसका मतलब हम जो जी रहे हैं क्या वह शांति नहीं है, अक्सर भागवत, प्रवचन और बड़ों से कहते सुना हैं की इस ज़िंदगी से पार हो जाये, और दोबारा इस जीवन चंगुल में ना फसे ।

तो क्या हम एक ऐसी ज़िंदगी जी रहे हैं जिसमे शांति या सुकून नहीं हैं, क्यों आखिर ये ज़िंदगी जीना इतना मुश्किल हैं ! कोशिश करते हैं की इस ब्लॉग मे इसका जवाब हमें जरूर मिलें ।

इस सवाल की खोज मैंने अपनी ज़िंदगी से की और सोंचने लगा की क्या मैं अपने इस ज़िंदगी से नाखुश हूँ , जवाब बेशक ना मिला हों, लेकिन ये तो समझ गया की ज़िंदगी मे Peace यानि शांति तो नहीं हैं, हम ज़िंदगी भर अंजान सी चीजों के पीछे भागते रहते हैं ।

जैसे की मैं - 
मेरे जैसे व्यक्ति के लिए स्कूल के मासिक परीक्षा पास करना भी मुश्किल था , लेकिन जैसे-तैसे स्कूल खत्म की और सोंचा अब शायद कुछ अपना कुछ खास कर पाऊँगा । पर लोगो ने कहा ये तो सब करते हैं कुछ और पढ़ाई करो लोगो के अभाव में आकर इंजीन्यरिंग कर ली, फिर कहा लोगो ने ये भी सब करते हैं कुछ नया करो , फिल्म बनाना शुरू कर दिया फिर लोगो ने कहा तुमसे अच्छा तो और भी लोग बनाते हैं । यानि की दुनिया के बेतुके कॉम्पटिशन मे मैं बिचारा पीस गया, कभी किसी चीज को सहीं ढंग से कर ही नहीं  पाया और जिसे किया भी उसकी मोल नही समझ पाया । जो मेरे पास था, उस पर कभी गुरूर न किया ! हमेशा आगे और जो मेरे हाथ मे नहीं था, उसका हमेशा गम किया ।

यानि वो कथन Rest in peace वाली कथन सहीं साबित होती हैं, तो ऐसी भाग-दौड़ भरी ज़िंदगी जहां हम जीवन भर हम केवल भागते ही रहते हैं , या सीधे शब्दों मे कहा जाये तो अशांत सा जीवन ।  


तो आखिर भगवान ने ऐसा जीवन दिया ही क्यूँ – तो इसके लिए मेरे पास एक कहानी हैं ??  

एक बार एक व्यक्ति भगवान के पास गया - और उसने पूछा की भगवान आखिर ये जीवन किस लिए हमें मिला हैं, क्या हमें भी किसी दुसरे युग की तरह किसी राक्षस या दैत्य से लड़ना होगा, हम किस मकसद से इस धरती पर आयें हैं ?
भगवान ने उनकी पूरी बात सुनी और अंत में कुछ भी नहीं कहा, वह व्यक्ति ने काफी बार और प्रयास किए लेकिन हर सवाल में भगवान मौन ही रहते । थोड़ी देर बाद व्यक्ति झुँझलाते हुये बाहर निकला ।

चलते- चलते वह व्यक्ति मेरी पास आया , बेशक थोड़ा नाराज था लेकिन मैंने पानी, चाय, लस्सी पूछा और उसके बाद उसकी जिज्ञासा भरे सवालों को सुनने की जरूरत की, मैं जनता था हम कौन होते हैं उसे इसका जवाब देने वाले लेकिन मेरे पास से बैरंग लौटना भी तो सहीं नहीं था , मैंने उस व्यक्ति को एक कहानी सुनाने की सोंची

भगवान शुरू शुरू मे धरती पे ही रहते थे इन्सानों के साथ, उनकी छोटी-बड़ी हर समस्या को वो सुनते और उसका निपटारा करते , धीरे धीरे जनसंख्या बढ़ने लगी (अब पहले जनसंख्या नियंत्रण वाली कोई योजना नहीं थी तो आबादी जल्दी बढ़ गयी ) । वान के लिए अब मुश्किल हो गया की वो हर किसी की बात को सुनते और उसका निपटारा करते , तो भवान ने अपना डेरा बदल लिया , भगवान बादलों में जा के रहने लगे अब हम तो मनुष्य जाति ढीठ भले तो हमने ऊंची-ऊंची इमारतें बना कर भगवान तक फिर पहुँच गये, अब भगवान ने पाताल लोक में अपना घर बनाया, हम वहाँ भी पहुँच गये , फिर भगवान ने चाँद में गये हम वहाँ भी spacecraft ले के पहुँच गये । तो तंग आकार भगवान ने मसे दूरी बना ली ।

मेरी इस कहनी को सुन कर आदमी थोड़ा अपना सर खुजा रहा था, आप भी थोड़े अचंभे मे होगे की सवाल के पीछे ऐसा जवाब !

भगवान ने दिन ब दिन अपनी दूरियाँ  हमसे इसलिए बढ़ा ली क्योंकि हमने हर परेशानियों को ठीकरा भगवान पर मढ़ना शुरू कर दिया था ।


चलिये इस बात को समझने के लिए एक और कहानी की तरफ़ रुख करते हैं ,

एक व्यक्ति अपने जमा किए हुये पैसों का सदुपयोग करने के लिए एक जमीन खरीदता हैं , जमीन तो ले लेता हैं लेकिन उसमे हजारों लोगो की झुग्गियाँ होती है , पहले वो ऑर्डर देता हैं और बाद मे बुलडोजर चलवा देता हैं , हजारों लोगो की हाय ले के वो 15 मंजीला भवन बना लेता हैं , बन्ने से पहले ही बिल्डिंग का हर एक किनारा बिक जाता हैं और आदमी मुनाफा कमा लेता हैं । यहाँ हम किसी से दो बात क्या सुन लें – रात भर नींद नहीं आती उसे हजारों लोगो की गालियां सुनकर कैसे वो चैन की ज़िंदगी व्यतीत कर सकता हैं !

अब आप कहेंगे कि - भैया सफलता के लिए थोड़ा तो मतलबी बन्ना पड़ता है ।

तो मैं आपसे कहूंगा कि उसी निर्माणाधीन बिल्डिंग के नीचे में एक रिक्शावाला रहता है जब दिनभर रिक्शा चलाकर अपने खाने लायक धन इकट्ठा कर लेता है, उसकी कमाई से दो वक्त का खाना और शुक्रवार की फिल्म आसानी से वह वहन कर लेता है । और बचे खुचे पैसों को अपने जैसे किसी गरीब परिवार को दान में दे देता हैं । 

तब मैं आपसे पूछूंगा कि की कौन अपनी जिंदगी ज्यादा बेहतर तरीके से जी रहा है रिक्शावाला और अमीर आदमी ।

अमीर आदमी को अपने पैसों की हर दम चिंता सताए रहेगी,  उसे दोगुना, तिगुना और दस गुना कैसे करें, उसे बात-बात पर ये डर बना रहेगा उसके गले पर कोई चाकू आकर ना मार दे ।  सरकार उसके पैसे पर जीएसटी, टीडीएस और फलाना-ढिकाना टैक्स ना लगा दे । जिंदगी भर इस चिंता में रहकर अपनी किडनी,लीवर अपनी सेहत खराब करेगा और तकरीबन अपनी आधी उम्र अस्पताल के चक्कर काटने में व्यतीत करेगा । उससे कहीं बेहतर तो रिक्शा वाले की जिंदगी हैन किसी सरकार का, न किसी बीमारी का और न किसी लोगों का उसे डर होगा। जबकि उसके नम्र और सेवा भाव से उसके दो चार दोस्त भी बन जाए, और मरने पर कभी कंधे कम नहीं पड़ेंगे ।

अगर आप मुझसे कहेंगे कि - उस रिक्शे वाले की जिंदगी क्या भरोसा है न आज का भरोसा है न कल की कोई उम्मीद।


तो मैं आपसे कहूंगा कि -  हमारी और आपकी ज़िंदगी का भी क्या भरोसा आज हैं और कल नहीं । हो सकता आप मे से बहुत लोग थोड़े असमंजस मे होगें की ये तो कोई बात नहीं  हुई, अब हर कोई रिक्शा वाला तो नहीं बन सकता करके ।


अगर आप ऐसा सोंच रहे तो बेशक आपको ये ब्लॉग दोबारा पढ़ना चाहिए ।
  
मुझे तकलीफ अमीरी या गरीबी से नहीं हैं , ये तो आप पर निर्भर करता हैं की आप इसे किस तरह से देखते हैं। बात यहाँ अमीरी और गरीबी की नहीं हैं, बात सिर्फ इतनी सी हैं की आप अपनी जरूरतों और संसाधन में अपने-आप को कितना खुश देखते है। वो रिक्शा-वाला 500 रु मे अपने आपको खुश और संतुष्ट देख लेता हैं और वहीं अमीर आदमी लाखो-करोड़ों रखकर भी खुश नहीं रहता । और यही कारण हैं हमारी अशांत सी जीवन-शैली का ।
हो सकता हैं की आप के पास जितना हैं आप उससे बहुत खुश हों और अगर ऐसा हैं तो आपकी ज़िंदगी अभी ही खुशहाल चल रहीं होगी । आपके लिए जीवन LIFE IN PEACE मे होगा ।


एक शब्द मे कहूँ तो  Satisfaction (संतोष) जीवन मे होना बहुत जरूरी हैं ।


तो यहाँ एक और सवाल उठता हैं की आखिर इस पूरे कथा-सार का क्या तात्पर्य ? ये ब्लॉग की शुरुआत कहीं और और अंत कहीं और क्यूँ ? आखिर इन सब का क्या मतलब !

मतलब बड़ा सीधा सा हैं की, हमें ज़िंदगी जीने के लिए बहुत कम ही संसाधन की आवश्यकता होती हैं वो कहते हैं न की - रोटी,कपड़ा और मकान लेकिन हमें KFC का बर्गर, denim की जींस और 4 BHK वाला घर की जरूरत में हम पूरी ज़िंदगी भागम भाग में हम बिता देते हैं। इसीलिए हमारे मरने के बाद लोग कहते हैं, RIP । शायद इस बात की आशा रखते हैं, की आगे की ज़िंदगी शांति और सुकून से बीते ।

अब एक और सवाल जो आपके मन में आ रहा होगा की आखिर उस व्यक्ति की बात का क्या जिसने भगवान से हमारी ऐसी ज़िंदगी क्यूँ करके सवाल पूछा था !

तब मेरा जवाब होगा अरे भई, जिसका जवाब भगवान न दे सके तो हम कौन होते हैं जो इसका जवाब देंगे ।

लेकिन बातें बड़ी सीधी सी हैं की भले देखने और पढ़ने में ये जलेबी की तरह टेढ़ी-मेढ़ी लग रही हों , लेकिन हर बातों एक से दूसरे मे कड़ी की तरह जुड़ाव हैं । कोशिश कीजिये की कुछ अनसुलझे सवालों को आप इसी ब्लॉग के कुछ कहनियों से सुलझा लें ।


आज का विषय आपको समझ आय हो तो तो कमेंट section 👍 में ये इमोजी जरूर लगा दें , और आपको अगर ब्लॉग पसंद आया तो आप इसे अपने Whatsapp और Facebook पर शेयर कर देवें ।

और अगर आप अभी भी ये ब्लॉग पढ़ रहे हैं तो आपकी हिम्मत और धैर्य की दाद देनी पड़ेगी । आपका बहुत बहुत धन्यवाद इस ब्लॉग को पढ़ने के लिए ।

धन्यवाद !!! 


लेखक – प्रेम नारायण साहू

Comments

  1. व्यंग्यात्मक शैली से भरपूर, दार्शनिक सम विचार और बातों ही बातों में चीजों को समझाने की कला में सिद्धहस्त हो आप! काफी दिनों बाद ही सही, पर आखिरकार इतनी अच्छी कृति पढ़ आनंदमय हो गया।

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