सपनों का सुख . . .





दो टूक आपसे – सबसे पहले मैं क्षमाप्रार्थी हूँ की लंबे समय से कुछ विशेष लिख न पाया , समय का संजोग ऐसा हैं की मुश्किल हैं जरा सा वक्त निकालना ।

आज जब आप लंबे समय के बाद कुछ मेरा कुछ लिखा हुआ आप पढ़ रहे होंगे तो, आपके मन में जरूर कुछ बाते होंगी की , आज कुछ अलग आपको पढ़ने मिलेगा । लेकिन मैं यहाँ आपकी सोंच को जरा रोकना चाहता हूँ । मैं नहीं चाहता किसी प्रकार का उलझन जैसा पैदा हो । हो सकता हैं , आज की कहानी आपको थोड़ा ऋणात्मक प्रभाव दें लेकिन ये जरूरी हैं की जीवन के हर उस तथ्य से रूबरू हुआ जाये जो आपको भले सुनने या समझने में अच्छा न लगे, लेकिन उनकी सच्चाई और गहराई को जाना जाये ।

इससे पहले की कहानी शुरू हो – कुछ बातें और, जैसे की –
1.    ये कहानी पूरी तरह से काल्पनिक हैं, जिसका वास्तविकता से संबंध एक संजोग मात्र हैं ।
2.    हो सकता हैं कहानी की बहुत सी बातेंआपको अच्छी न लगे लेकिन उनका वर्णन , कहानी को पारदर्शी बनाने हेतु हैं किया गया हैं ।
3.    कहानी में कही गयी सारी बातें केवल कहानी तक के लिए सीमित हैं , उन्हे किसी भी प्रचार–प्रसार हेतु नहीं सम्मिलित किया गया हैं।
4.    मेरा बस आपसे अनुरोध हैं की कहानी को उसी संदर्भ से पढ़ा जाये जैसे उसे शक्ल दी गयी हैं ।

भूल चूक के लिए पहले से माफी । कहानी के किसी भी संदर्भ से अगर आपको शिकायत हैं तो यहाँ संपर्क करें ।
नोट- कहानी को पुराने समय के परिवेश से सोंचे । आज के समय में पुराने संसाधनों से लीप्त कहानी आपको संदेह में डाल सकती हैं ।

सपनों का सुख . . .

आज की कहानी हर उस महिला सशक्तिकरण जैसों चीजों को झुठलाती हैं। जहाँ हम सोंचते हैं की, आज के समाज में महिलाओं ने एक अच्छा मान और वर्चस्व हासिल किया हैं । लेकिन सच्चाई तब आपको पता चलता हैं जब आप उनकी जमीनी हकीकत को जानना शुरू करते हैं । जब-जब हम एक अच्छी कहानी के बारे में सोंचते हैं तो हमारे मन में आता हैं, एक अच्छी शुरुआत और एक शानदार अंत ।

हुत समय पहले की बात हैं किसी छोटे से गाँव में मीता नाम की एक लड़की रहती थी । मीता के पिता उसी गाँव में साहूकार थे । पुरखों की धन संपत्ति से ही मीता के पिता , गाँव में अन्य लोगो को कर्ज देते थे । ब्याज की रकम से घर चल जाया करता था और खेती और अन्य व्यवसायों के कारण परिवार पूरी तरह से संपन्न था ।
मीता घर में सबसे छोटी हैं , उसकी तीन और भी बहनें हैं लेकिन उनकी शादी पहले ही हो चुकी थी। मीता बचपन से ही एक ऐसे परिवेश में रही जहां पढ़ना- लिखना जैसे चीजों का कोई महत्व नहीं हैं । एक लड़के के लिए परिवार में हिरासत में मिली चीजें उसके भविष्य में काम आती और एक लड़की के लिए शादी ही सब कुछ । बचपन से ही लड़कियों के मन में ये बात डाल दी जाती हैं की अच्छे से परिवार में शादी करके एक अच्छा जीवन व्यतीत किया जाये । मीता का मन भी अलग न था , बचपन से जिस गुड्डे-गुड्डी को उसे खेल-खिलौना देकर समझा गया वो उसे ही अपना जीवन समझने लगी । जहां बाकी लड़कियां ये सोंचती फिरती की उनका मिलने वाला पति जैसा भी हो बस पैसे, रुतबे और "नाम में कम" न हों । लेकिन जहां मीता एकदम विपरीत सोंच रखने वाली थी, वो आज भी गुड्डे-गुड्डी की तरह जीवन को बड़ा सादा समझती थी । उसके लिए परियों की कहानी का राजकुमार , एक सचमुच का पति था , जो उसे रानी की तरह रखे । मीता का ऐसा भोले-पन पर उनकी बहने अक्सर उसे ताना  कसती थी।

जैसे जैसे मीता बड़ी होती गयी, उसके लिए अपने इस भोलेपन और सपनों की दुनिया से निकलना बेहद जरूरी हो गया था । बहनों की शादी के बाद माता- पिता उसे ससुराल की सीख देने में लगे रहते, लेकिन मीता के संदर्भ में एक अच्छी बात थी की उसकी शादी बचपन या कम उम्र में नहीं हुई । पिता अपनी बाकी बेटियों के शादी में इतना दहेज दे चुके थे, की ऐसे में मीता की तुरंत शादी वो नहीं करना चाहते थे । ऐसे में मीता के पास समय था की वो कुछ थोड़ा-बहुत पढ़ लिख सके लेकिन मीता भी समय से अंजान अपनी दुनिया में अलग ही खोई रहती थी । ज्यादातर समय में वह घर के काम करना पसंद करती, पढ़ाई–लिखाई में कभी मन न लगाया , उसके भोलेपन पे परिवार वालों का सख्त प्रवृति उसे अकसर खटकता । अब मीता के जीवन में आस के नाम पे यही रह गया था की वो एक ऐसे पति की अपेक्षा करें, जो उसे इन सब दुख-तकलीफ से उसे दूर रखे और बस एक आदर्श जीवन व्यतीत करें, जहां सब कुछ अच्छा-अच्छा हों ।



समय गुजरा , मीता बड़ी हुई और आखिर वो समय आ ही गया की मीता ब्याह रचा दिया जाये, एक साहूकार के हैसियत से मीता के पिता अच्छी ख़ासी दावत देना चाहते थे और शायद "मीता की कमी" और उसकी "असक्षमता" की ढकता "दहेज" । ऐसा नहीं हैं की मीता किसी तरह से असक्ष्म हैं या उसमें किसी प्रकार की कमी हैं लेकिन परिवार वालों को उसका भोलापन और सपनों की दुनिया बचकाना लगता हैं । जिससे उसे ऐसा समझा जाता हैं की वो मानसिक रूप से पीड़ित हैं । इसीलिए मीता के पिता एक ऐसे परिवार को चुनते हैं जिसे वो ज्यादा दहेज देकर चुप-छाप अपनी बेटी सौप दें । सपने सजाय मीता के लिए उसके पिता अपने जैसे ही किसी अन्य साहूकार के बेटे से रिश्ता तय करते हैं । मीता आंख-बंद कर अपने होने वाली पति को उस तरह से देखती हैं जैसा उसने बचपन से अभी तक अपने सपने में देखा हैं- एक राजकुमार ।

मीता की शादी कर दी जाती हैं , अपने परिवार से विदा लेते ही मीता अपना सब-कुछ ससुराल को समझने लगती हैं और समझे भी क्यूँ न, जहां जीवन भर जिस शादी को अपना जीवन देखने वाली मीता के लिए अब यही सब कुछ था । अपने ससुराल को आदर्श समझने वाली मीता, शादी के बाद बहुत खुश रहने लगी । ससुर और सास के हर बातों को मानती और घर का सारा काम करती । मीता के पिता ने इतना धन दहेज में दे दिया था की कुछ दिन तो ससुराल वाले शक्कर से भी ज्यादा मीठे बन रहे थे । हर बात में "हाँ बहू", "हाँ बेटी" करके उसका दिल लगाये रखते , भोली मीता जैसा सपने में सोंचा वैसा परिवार पाकर वो फूली न समा रही थी । पति देव भी खुश रहते थे ।

शादी के कुछ साल तो अच्छे से गुजरे लेकिन जैसे-जैसे दहेज के पैसा का अभाव कम सा होने लगा, मीता के लिए हर बात अब कड़वी खीर जैसी होने लगी दिन-भर उससे किसी नौकर की तरह घर के सारे काम कराये जाते थे और परिवार के कार्यक्रमों में भी उसे सम्मिलित नहीं किया जाता था । मीता के लिए सब कुछ सदमें सा था । ख़यालों में रहने वाली मीता अब धीरे-धीरे टूटने लगी थी । वो कहते हैं न की अक्सर सच्चाई का पता तब चलता हैं जब आप गड्ढे में गिरते हों। सपने संजोने वाली मीता का दर्द "बद से बदतर" होने लगा, और आखिर वो दिन आ ही गया जब मीता के लिए सब कुछ असहनीय हो गया । 3 साल के शादी के रिश्ते में पति ने कभी पत्नी का दर्जा न दिया और सास- ससुर ने जब तक पैसों का दम चला तब तक सही रहे । इन सब बातों से मीता में एक बहुत अच्छी बातें होने लगी की वह अब अपने सपनों से बाहर आने लगी थी , अब वो समझने लगी थी की जैसा उसने बचपन में सोंचा था वैसा कुछ भी नहीं होता , प्यार की मारी मीता ने हर वो भर-सक प्रयास किये की उसका रिश्ता बच जाये। उसके ससुराल वाले और उसका पति उसे चाहने लगे । पुजा–पाठ, सेवा, सब धर्म निभा लिए  लेकिन कुछ बात न बनी । थक-हारकर मीता ने अपने पिता से अपने दर्द बांटे , पिता का दिल बेटी के लिए आखिर पसीज ही गया । बेटी की रिश्ते के खातिर पिता ने एक आखिरी गुहार लगाई , लेकिन पिता की कोशिश भी उल्टी साबित हुई , मीता के खिलाफ उसकी पुजा- अर्चना को भूत-प्रेत , पिसाज का नाम दे दिया गया । सब कुछ बिखरते देख मीता और उसके पिता ने रिश्ता बिना किसी शर्त के खत्म कर दिया । बिना दहेज और बिना किसी कोठ-कचेरी के रिश्ता खत्म हो गया ।  मीता अपने माता- पिता के साथ आकर रहने लगी । बेशक माँ-बाप संतान से कोई शिकायत नहीं रखते लेकिन मीता का घर में रहना उसकी बहनों का सहीं न लगा । जिस परिस्थिति को उसने बचपन में देखा आज उसके सामने दोबारा वही दृश्य था ।  बस फर्क इतना सा था की कल तक लोग उसके बचकाने सोंच को कोसते रहे और आज उसके अधर्मी होने को, जो सही से पत्नी-धर्म नहीं निभा पाई । आज मीता के बहनें भी उसे ही दोष देती थी की वह ही नादान हैं जो अपने भोलेपन और बचकाने हरकतों के कारण रिश्तों को संभाल न सकी ।

भले मीता के साथ जो भी हुआ वो गलत हुआ लेकिन मैं इन चीजों को एक अच्छी नज़र से देखता हूँ की भले बुरा हुआ तो हुआ लेकिन मीता अब वास्तविकता को समझने लगी थी । 
तो क्या अब मीता की ज़िंदगी बेहतर हो गयी ???
तो मेरा जवाब हैं – ना ”

मीता के पिता अब दोबारा सक्षम नहीं थे की उसी मान-सम्मान से दोबारा मीता की शादी कर पाये और न ही उतना दहेज दे पाये । हर बार जब-जब मीता के पिता उससे बात करते तो कहते – बेटी , जो कर सकता था कर दिया बस अब जो तू कर सकती हैं अपने भविष्य को बनाने के लिए वो तू कर लें । मैं अब तेरे लिए और कुछ नहीं कर सकता ।

पिता के कथन से शांत मीता क्या ही कहती । जीवन का एक पड़ाव वो देखकर आ चुकी थी जहां सपने, आकांक्षा और अभिलाषा को टूटते देख चुकी थी । अब ज़िंदगी से थकी-हारी मीता किसी ऐसे के इंतज़ार में थी जो उसकी बस ज़िंदगी के इस दर्द को दूर कर दें , बेशक वो पहले की तरह एक राजकुमार के बारे में नहीं सोंच रही थी । अब तो उसे हर कोई जचने लगा था, एक समय वो अपने पति में एक आदर्श पति को देखती थी लेकिन आज वो बस एक ऐसा पति चाहती हैं जो उसे स्वीकार कर लें। हमेशा सपने देखने वाली मीता अब ये सोंचने लगी थी अब जैसे-तैसे वो वापस उस शादी-शुदा जीवन में लौट जाये , भले ही उसे कैसे भी क्यूँ न रहना पड़े ।

दिन- बीते और काफी सालों के बाद एक शक्स मीता के जीवन में आया, उसकी भी एक दफा शादी हो चुकी थी । सब-कुछ जान- समझकर पिता ने उस व्यक्ति से मीता का रिश्ता तय किया । लड़का इस बार सामान्य से घर से था, न ज्यादा धन संपदा थी और न ही कोई पारिवारिक परिवेश । लेकिन पिता एक बार संपन्न घर में रिश्ता देकर देख चुके थे इस बार शायद बेटी एक गरीब परिवार में ही खुश रहेगी ऐसा सोच रिश्ता तय कर दिया । माता-पिता और मीता खुद भी ये चाहती थी की थोड़ी बहुत ही जगह अगर वो अपने जीवन में दे देता हैं तो दोनों का घर बस सकता हैं ।

मीता के पिता के पास कोई खास धन-संपत्ति नहीं थी , लेकिन तब भी जो कुछ भी मीता के लिए कर पाते उन्होने किया । दोबारा मीता की शादी रचाई गई और उसे ससुराल भेज दिया किया । मीता ने इस बार शायद किसी लाड़-प्यार और किसी खास लगाव की अपेक्षा न की थी । हर रिश्ते की तरह शुरू में सब कुछ अच्छा था । लेकिन बाद में चीजे वैसी ही होती चली गयी , बेशक पहले के मुकाबले ये परिवार ने मीता को ज्यादा हद तक अपना माना , लेकिन जिस मान-सम्मान और किसी खास दर्जे की मीता ने कल्पना की थी, वो उसे कभी नहीं मिली । मीता का पति, बेशक उसे अपनी पत्नी मानता हों लेकिन अपने माहौल में कभी सम्मिलित नहीं करता उसके लिए पत्नी यानि घर और बच्चे संभालने वाली ।  मीना की कभी-कभी तो अवस्था ऐसी भी आई की उसे खुद के खर्चे के लिए भी उसके पास पैसे न हों , लेकिन मीता सब कुछ कड़वे सच की तरह सब सहन कर लेती । छोटे परिवार के कारण मीता को पहले की तरह बहुत काम करना पड़ता हैं । पति से भी उतना मान-सम्मान नहीं मिला जितना वो सोंचती थी लेकिन फिर भी आज मीता खुश हैं । मीता की अब एक बच्ची भी हैं , अब बस वो उसके खातिर ही रिश्तों में रहना चाहती हैं । भले ही उसके पास पैसे क्यूँ न हों , पर शायद ये बच्ची ही हैं जिसके कारण मीता के पति,  मीता से जुड़े रहते हैं । इन सबमें एक अच्छी बात हैं की मीता की छोटी-मोटी जरूरतें उसकी सास पूरी कर देती हैं , बेशक वो ज्यादा न कर सके लेकिन थोड़ी  बहुत जो खुशियाँ आ रही हैं उसमें मीता खुश हैं । लेकिन आज भी जब वो अपने बचपन के बारे में सोंचती हैं तो वो उदास हो जाती हैं की जैसा उसने कल्पना किया उसे वैसा जीवन उसे कभी नसीब नहीं हुआ । आज परेशानियाँ कम नहीं हैं लेकिन फिर भी पहले से कम हैं और ये बड़ी बात हैं । जीवन मे हर दुखों का दौर देखने के बाद मीता आखिरकार उस थोड़े बहुत से ही जीवन को संतुष्ट कर लेती हैं ।


सार (मेरी नज़र में) – जैसा की आप सोंच रहे होंगे की कहानी का शीर्षक सपनों का सुख आखिर क्यूँ तो मैं आपको बता दूँ की यहाँ कहानी का शीर्षक मैंने अधूरा लिखा हैं, वास्तव मे कहानी का शीर्षक – सपनों का सुख आखिर कहाँ हैं ? । मैं नहीं चाहता था की शुरू से ही आप कहानी के प्रति संवेदना रखे, कहानी को पढ़ने के बाद उसके बारे मे विचार करें । खैर चाहे जो भी हो, आप क्या सोंचते हैं , मीता के जीवन के प्रति, मुझे जरूर बताएं। ऐसा नहीं हैं की मीता की इसमे गलती हैं या उसके परिवार वालों की , मुझे लगता हैं हर लड़की शादी को लेकर हज़ार सपने बुनती हैं ऐसे में मीता का पति एक सपने वाला राजकुमार ! इसमें क्या गलत हैं  समझता हूँ की वास्तविकता भी एक चीज होती लेकिन जैसे परिवेश में वो रही उसमें उसका क्या दोष ? रही बात माता-पिता की तो उन्होने भी शायद वैसा ही किया जैसे परिवेश में वे रहते थे ।

तो आखिर गलती किसकी थी ?

ऐसा नहीं हैं की मीता हमारे समाज मे एक अकेले लड़की हैं जिसके साथ ऐसा हुआ हो , ऐसी कई लड़कियां हैं जिनके साथ ऐसा होता हैं । और ऐसा भी नहीं हैं की केवल मीता जैसी लड़कियों के साथ ऐसे होता हैं , हम में से भी बहुत से लोग होते हैं जिनके सपने इसी तरह से खत्म होते हैं ।

आपको कहानी कैसी लगी, मुझे जरूर बताएं, आपकी प्रतिक्रिया और सुझावों का इंतज़ार रहेगा ।

अपना कीमती समय निकालकर इस कहानी को पढ़ने के लिये धन्यवाद !

Comments

  1. Bilkul sahi hai.... Truth. .. Hamare sapney.. . Sapney his rah jate hai dear

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  2. Sach me kash Hume bhi koi puchhte ki humara sapna kya h.............
    Sayd aise spne kismat se hi sach hote hai.

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