सयानी बन्नो


शादी हमारे जीवन मे एक बड़ा अंतर लाता हैं, एक लड़के और लड़की दोनों के जीवन मे बहुत सी चीजे बदलती हैं , लेकिन कहीं न कहीं एक लड़की का जीवन बहुत हद तक बदल जाता हैं, शुरुआत आपने आप को बदलने से ही होती हैं , पूरा परिवर्तन लड़के के परिवार के हिसाब से हो जाता हैं । ऐसे मे जब एक पिता अपनी बेटी को पहली बार उसके ससुराल मिलने जाता हैं तो वो उसके बदलाव को देखकर दंग रह जाता हैं । उसके उस भाव को शब्दों मे दिखाने का एक छोटा सा प्रयास हैं ।उम्मीद करता हूँ की आपको पसंद आएगा ।



उपयुक्त कहानी पूरी तरह से रचित एवं काल्पनिक हैं । इसका वास्तविकता से कोई संबंध नहीं हैं । ये पूरी कहानी पिता के संदर्भ से की गयी हैं, की आखिर एक पिता क्या महसूस करता हैं, जब वह अपनी बेटी को ससुराल मे देखता हैं ।


ज दिन रविवार, मन हुआ बन्नो से मिल आऊँ, वैसे तो हफ्ते-दर पहले से मेरी योजना थी की मैं बन्नो के घर से हो आऊँ । आज उसकी शादी को 3 महीने हो गए , मैंने निश्चय किया की मैं अकेले ही उसके ससुराल जा कर मिल आऊंगा । बन्नो की माँ ने आज, बन्नो की मनपसंद चीजे, मावे सुबह से ही बनाकर झोले मे रखने शुरू कर दिये थे, शायद उस 3 महीने की कसर को पूरा करने का उद्देश्य जो था । बहुत से साजो-समान और झोले-तमोले के साथ मैं स्कूटर पर सवार होकर निकल पड़ा । मन मे एक अजीब सी कपकपी थी , और एक ही बात को लेकर मन मे चिंतन था की बन्नो से मिलकर मैं भाव-विभोर न हो जाऊं । कोशिश थी की मंजिल थोड़ी देरी से कटे , लेकिन मैं जल्दी गंतव्य पर पहुँच गया । स्कूटर से झोले निकालने के बाद बिखरे-बालों को सवारने मैंने डिक्की से एक छोटी कंघी निकली और बाल संवार कर दरवाजे की और बढ़ा |

दरवाजे की डोरबेल की आवाज़ – टिंग-टौंग

दरवाजा बन्नो ने खोला , पापा आप कहकर पाव छुवे और मुझे अंदर बुलाया । मुझे नर्म सोफ़े पर बैठाया गया , थोड़े देर बाद चाय – काफी के लिए पूछा गया । शुरू मे तो बन्नो मुझे पिता कम और मेहमान की नज़र से ज्यादा देख रही थी फिर शायद उसकी सास के कहने पर वह वहाँ आकर बैठी और फिर मेरा हाल-चाल आकर पूछने लगीं । अपनी माँ के ना आने पर थोड़ी उदास थी, लेकिन फिर जल्दी ठीक हो गयी । कुछ देर बाद उसकी नज़र झोले पर पड़ी, और वो कहने लगी ये क्या लेकर आए पापा, मावे देखकर मुस्कुराया जरूर और फिर कुछ खाया भी और फिर फॉर्मेलिटी के शब्दों मे कहने लगी पापा इन सब की क्या जरूरत थी, वैसे भी ये सब मैं आज कल कम ही खाती हूँ , अब मैं क्या कहता ये तो बन्नो की माँ का प्यार हैं जो उसकी मनपसंद चीजे भेज दी ।

उसके ससुराल वालों और बन्नो से बातचीत के बाद मुझे पता चला की रमेश(बन्नो का पति) काम के सिलसिले मे बाहर गए हुए हैं । पता चला की उसकी जेठानी और जेठ परिवार से दूर अलग जगह रहते हैं लेकिन उनके बच्चे यहीं पर रहते हैं ।
परिवार मे बन्नो से ज्यादा पढ़े लिखे न होने क कारण घर की खर्चे की ज़िम्मेदारी उसे ही दी जाती हैं । मैने उससे केवल अपनी जिज्ञासा के लिए पूछ लिया की बेटा खरीद-दारी कर लेती हों , कुछ जरूरत रहती हैं तो बता दिया करो, मैं समान पहुंचा दिया करूंगा ।
बन्नो ने मुस्कुराकर कहा नहीं पापा उसकी जरुरत नहीं , वहाँ से सस्ते समान तो यहाँ मिल जाते हैं । मैं थोड़ा हक्का-बक्का सा था, कल तक जो लड़की अपनी एक क्रीम के लिए मुझे दौड़ाती थी और आज ये अपने घर के आटे-दाल के भाव किसी रट्टू-पोपट दुकानदार की तरह बता रही हैं  ।

लग रहा था वो मेरी बेटी नहीं कोई और ही हैं, उसमे अचानक से आई हुई इतनी समझदारी तो मेरे दिमाग से परे हैं, कल तक जो थेड़ी-मेड़ी शक्ले बनाकर फोटो खिचाती थी, आज उसके सर से पल्लू भी नहीं गिर रहा, कहती हैं - मम्मी जी(सास) बुरा मान जाती हैं ।एक समय था जब वह अपनी मां का एक भी कहना भी नहीं मानती थी, पर आज उसकी इतनी अदब देख कर मैं तो चौंक सा गया हूं ।

बातों का सिलसिला आगे बढ़ा, मुलाक़ात हुई बन्नो की जेठानी के बच्चो से, बच्चे ढिखने मे तो शांत प्रतीत होते हैं लेकिन चंद समय मे ही पता चल गया की उनकी इस शांतमयता के पीछे उनकी शरारती हरकतें छुपी हुई है ।बातों ही बात मे पता चला की बन्नो ने अपना फोन उपयोग करना बंद कर दिया हैं, अपने आधुनिक उपकरण जैसे लैपटाप और कम्प्युटर भी, बाद मे पता चला उसका कारण जेठानी के बच्चे ही हैं । कल तक जिसका हर वक्त कंप्यूटर के सामने बीतता था, आज इन सबसे ऐसी दूरी दातों तले उंगली दबाने वाली बात जैसी है। कुछ समय बाद मुझे बन्नो ने अपने कमरे में बुलाया और अपनी सी चींजें दिखाने लगी, मैं तो केवल हाँ-हाँ मे उसकी बातें सुना जा रहा था, उससे हुई हर बातों मे कहीं न कहीं परिवार को संभालने क गुण और एक सयानापन झलक रहा था ।

बातों का कारवां आगे पहुंचे हम डाइनिंग टेबल की और लपके , मैं डर रहा था कहीं आज बन्नो के खाने में नमक कम को लेकर या उसकी किसी भी कमी को लेकर उसके सास व ससुर मुझे कुछ ना कहें  ।
खाने से पहले मैंने एक चुटकी भी ली कहा -  बेटा आज तो तूने नमक सहीं से डाला है ना वो मुस्कुरा कर बोली- क्या पापा आप भी । उसकी सास और ससुर का जवाब भी पीछे-पीछे आ गया, अरे यह तो हमारे घर में सबसे अच्छा खाना बनाती है। मैं इस बात से थोड़ा आवाक था लेकिन मुस्कुराकर खाने की प्लेट पर नजर डालने लगा । आज बन्नो ने मेरा मनपसंद खाना जो बनाया था पहले ही कौर के साथ मन में एक जिज्ञासा का भाव था की बन्नो ने खाना कैसे बनाया हैंबन्नो ने खाना एकदम सही बनाया था ।

खाने-पीने और सैर-सपाटे के बाद वक्त था घर की ओर जाने का , जब आया था तो लग रहा था जैसे किसी अजनबी के घर पर हूँ, लेकिन बन्नो के ससुराल मे कुछ समय रहने के पश्चात लगने लगा की शायद यह परिवार भी मेरा एक हिस्सा हैं । पहले मैं उस परिवार को बन्नो का ससुराल कहता था, लेकिन आज के बाद उसे बन्नो का घर कहूँगा ।

चलते चलते घर का वक्त हो गया मैं अपनी पुरानी स्कूटर की और बढ़ा पर बन्नो ने दौड़-कर गले लगा लिया और अपनी माँ के लिए थोड़ी खीर मुझे डब्बे मे दी । शायद जीवन भर की अभिलाषा उस वक्तभर मे बंध गयी, झलके हुए आँसू से मुझे बन्नो ने विदाई दी – मैंने भी कहा – आऊँगा न पगली , तेरी हाथ की खीर खाने को । और मैं चल पड़ा, चलते-चलते मुसकुराते हुए यही सोंच रहा था की बदलाव आखिर हमे कितना बदल देता हैं ।

उसके इस बदलाव को देखकर मैं थोड़ा अचंभित तो था, लेकिन खुश भी हूँ । शादी से पहले मुझे और बन्नो की मां को डर सताया रहता था की ये अपने ससुराल में कैसे रहेगी । मुझे आज भी याद है वह शादी से पहले एकदम नटखट और मजाकिया थी, उसे कोई फर्क नहीं पड़ता था की वह कैसी हैं, बस अपनी मनमानी करती थी । उसकी माँ उसे हर वक्त कहती की जब ससुराल जाएगी तब तुझे समझ आएगा । उसकी माँ और बन्नो की लड़ाई मे, मैं हमेशा फँसता था । आज उसके ऐसे व्यवहार से मन मे एक शांति और खुशी भी हैं, उसका सयानापन, बोली-बातें और समझ से उसने अपने परिवार मे एक अच्छी भूमिका बनाई हुई हैं । शायद यही जीवन की सार्थकता हैं ।

उम्मीद करता हूँ, की आज का ब्लॉग पसंद आयेगा आपको ।
ब्लॉग पढ़ने के लिए आपका धन्यवाद ।

-         प्रेम नारायण साहू  


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