मेरे आँगन की गिलहरी


मय उस वक़्त का है जब मै अपने नए घर मे आया था, मेरे इस घर मे दो बड़े आम और नीम के वृक्ष थे | वृक्षो की छाव मन को माह लेती थी | आम के पेड़ मे एक प्यारी सी,नन्ही सी गिलहरी रहा करती थी | गिलहरी देखते ही सब के मन मे सुगबुगाहट सी आती है, मेरे भी मन मे आने लगी... | अब तो  यह मेरे यह रोज का कम हो गया था की उस गिलहरी को देखता | मै रोज ही उसे निहारता रहता |

वैसे तो गिलहरिया स्वभाव से शरमीली होती है, पर हमारी रोज की आहाट से अब उसने झिझीकना बंद कर दिया था कभी-कभी तो वह घर के भीतर भी आ जाती थी | मेरे लिए तो जैसे वह एक खिलौना मात्र था |

वह पेड़ से नीचे अपने खाने कि तलाश  के लिए आती फिर वापस पेड़ पर चली जाती | प्राय: उसका यह रोज का काम था | दिन बीतीं, महीने बीते परंतु जैसे जैसे दिन बीते गिलहरी ने अपना दायरा बड़ाया, अब वह आम के पेड़ से नीम के पेड़ तक जाने लगी अपने खाने की तलाश के लिए | अपनी जरूरत पूरा होते ही वह लौट जाती थी |

एक दिन की बात है मैने देखा की वह रोज की तरह आम पे पेड़ से उतर कर दुसरे किसी पेड़ मे जाया करती थी परंतु आज वह मेरे पड़ोसी के पेड़ मे जाते हुए उसे देखा जो की मेरे घर के ठीक सामने था ... हलाकी वह पास था, परंतु देखा जाय तो उस छोटे से जीव के लिए ये बड़ी बात थी, जो की वो पेड़ से उतर कर सड़क पार कर के दुसरे पेड़ मे जाए... परंतु आज उसने ऐसा किया था, उसने अपना एक नया दायरा(LIMITATION) बना लिया है जहां से अपने खाने-पीने का वह इंतज़ाम कर पाये |




गिलहरी का जीवन तो इसी तरह से चलता रहेगा परंतु इस कहानी को दुसरे नजरिये से देखा जाए तो ये जीवन के कुछ पाठ पढ़ा जाती है...देखने मे तो यह एक छोटी सी असहज कहानी लगती है परंतु......

मानाकी वह एक छोटी सी गिलहरी है परंतु फिर भी उसने अपने दायरे खोज लिए है  | हलाकी उसकी सीमिताए सिमित है परंतु वह अपने जरूरत के हिसाब से अपनी दूरियाँ बडाई है परंतु अपने केंद्र,अपने घर को नही भुला है ,चाहती तो वह अपने घर को बदल सकती थी लेकिन उसने ऐसा नहीं किया.....भले देर-सवेर हो लेकिन गिलहरी अपने घर, अपने पेड़ को लौट ही जाती है कही न कही यह छोटी सी गिलहरी हमे जीवन के उस अभिन्न अंग को समझती है  की हम इंसान भी अपनी जरूरतें के खातिर अपने सिमिताए बड़ाते तो है परंतु अपने केंद्र बिन्दु परिवार एवम मित्रो से दूरी बनाते जाते है....| कही ना कही हमरे जीवन मे हमारी सफलताओ, हमारी उपलबधियों का अलवा हमारे काम का जितना महत्व है.....उस से कही ज़्यादा महत्व हमारे रिस्तों, हमारे आपनों का हैं |

शायद हमे उस गिलहरी से कुछ सीखना चाहिए जो अपनी जररूरतों के लिए दूर तो जाती है परंतु भले ही उसे वक़्त लगे पर वो आखिर के आर लौट ले आ ही जाती है |

" यहाँ पर दूरियाँ का अर्थ मीलो से नही है बल्कि रिस्तों की उन दूरियाँ से है जो वक़्त के साथ आ जाती है | "


जीवन मे बहुत कुछ आपकेआस-पास घटित होता रहता है, परंतु आप उनमे से क्या पॉज़िटिव(सकारात्म) बातें आप अपने जीवन मे उतारते है ये आप पर निर्भर करता है |


आशा है की आपको यह ब्लॉग पसंद आया होगा | अगर यह ब्लॉक आपको थोड़ा भी पसंद आया हो तो अपने परिवार एवम मित्रो मे शेयर करना न भूले |



धन्यवाद !

Comments

  1. This is something which touched my heart.. :-)
    Lovely.. ;-)
    @https://tarunkumarsoni.blogspot.in/

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  2. It's my pleasure...;-)
    & Thank-You for Reading My Stories.

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