हमारी ज़िंदगी और कोरोना



नमस्कार !

ब्लॉग क्रमांक - 45

दिन - 100, आज लगभग 3 महीने हो गए, जब से कोरोना भाई साहब ने यहां पधारा हैैं । आज फिर 54 दिन बाद दोबारा उसी विषय पर लिख रहा हूं ख़ैर ये जरूरी भी हो गया था चूकिं मैंने इस पूरे विषय को वहीं पर आधा छोड़ दिया था । लॉकडाउन 1,2 और 3 के बाद अनलॉक 1 और 2 भी आ गए लेकिन दैनिक दिनचर्या में कुछ खास नहीं बदला इसलिए मैंने भी 3 मई के बाद अपनी इस श्रृंखला पे पूरी तरीके से ब्रेक लगा दिया । अब बस ये ब्लॉग उसी विषय का अंतिम स्वरूप हैं क्यूंकि ये बात मुझे भी समझ आ गई हैं कि इस कोरोना काल का आंतिम स्वरूप अनिश्चित हैं , जब मैंने ये शृंखला शुरू की थी, तब सोचा था कि ये विषय उस दिन अंत होगा जिस दिन कोरोना पूरी तरीके से समाप्त हो जाएगा । ख़ैर ये उस समय ऐसा लगता था की कुछ महीनों में ये ठीक हो जायेगा । लेकिन अब ऐसी तस्वीर, कल्पना (imagine) भी नहीं होती । 19 मार्च को हमारे प्रदेश का पहला मरीज सामने आया था और आज 26 जून को -

 

हमारे प्रदेश में कुल 2456 केस आ गए, जिसमें 715 एक्टिव केस है बाकी 1729 लोग ठीक हो चुके हैं और 12 लोगों की जान जा चुकी है। देश में कुल 4,96,538 मरीज हैं जिसमें 1,93,146 एक्टिव केस है बाकी 2,87,960 लोग ठीक हो चुके हैं, और 15,377 लोगों की जान जा चुकी है।

 

आज के लिखने का विषय भी यही हैं कि भले कोरोना बीमारी की तरह हमारे जीवन में आया था, लेकिन इसने हमारी दैनिक दिनचर्या पर भी गहरा असर डाला है । भले कोरोना की पहुंच सब तक न रही हो लेकिन उसका व्यावहारिक असर हर किसी पे दिखाई पड़ता है । आज जिस विषय पे, मैं प्रकाश डालना चाहता हूं कि वो भी इस तर्क पे आधारित है । आपने भी शायद यह गौर किया होगा कि कोरोना काल ने हम सभी को अकेलापन और एकांत मन की ओर धकेला हैं ।

इस पूरे संदर्भ को समझाने के लिए मुझे थोड़ा पीछे जाना पड़ेगा ।

 

मुझे आज भी याद है जब हमारे प्रदेश में पहला कोरोना पॉजिटिव मरीज सामने आया था, लोगो ने घर से निकलना बंद कर दिया था और आज जब ये हमारे करीब तक पहुंच गया है तब पहले से भी ज्यादा हम बेबाक हैं । पहले ये एक हमारे शहर में एक या दो हुआ करता था आज हमारे आस-पास के हाठ, बाज़ार और गलियों तक पहुंच गया है । वैसे इसमें आश्चर्य का कुछ भी नहीं हैं ये तो होना ही था और लोगो का इस तरह निश्चिंत होना भी लाज़मी हैं आखिर कोई कब तक घर में बैठेगा । लोगों में खौफ़ जरूर हैं चेहरे पे मास्क इसका सबूत हैं लेकिन फिर भी अब बाजारों में अच्छी खासी भीड़ लगती हैं । लेकिन ये सब मेरे लिए अचरज भरा नहीं हैं । जब पहले सरकार ने लॉकडॉउन की घोषणा की, उस वक़्त भले लोगो के मन में डर था लेकिन फिर भी लोग घरों में सुकून से रहते थे, सबका एक साथ होना सबकुछ ठीक सा लगता था । हर दूसरे दिन नए पकवान, मनोरंजन का नया कोई समान होता था । बढ़ते दिनों में भले बाहर माहौल असामान्य होता था, पर घर में सब सुख शांति से रहते थे । आपदा जरूर थी, लेकिन सब के लिए एक अच्छा वक्त बिताने का मौका था । वक्त बदला, समय के साथ सब इस दिनचर्या से बोर होना शुरू हो गए, कोरोना न केवल बीमारी लेकर आया हम सब के लिए अभिशाप भी लाया । हम आलसी हो गए, कल तक हम ज्यादा समय तक एक्टिव रहते थे अब हमें ज्यादा से ज्यादा नींद कि आवश्यकता हैं । मोबाइल और अन्य मनोरंजन साधन पहले भी थी और हम उनसे परेशान भी थे । लेकिन अब और ज्यादा वक्त हमारा इन सब में बीतने लगा । हम दुनिया से, अपने जानने सुनने वाले से और दूर हो गए, बेशक टेक्नोलॉजी के फायदे हैं पर अब उनका दुष्परिणाम भी अब दिखने लगा । पहले लोग अपने काम से बाहर जाते थे, बचा वक्त परिवार और दोस्तों को देते थे । लेकिन कोरोना ने हमें एकांतता की ओर धकेला हैं । काम से लेकर मनोरंजन के लिए हमें अब ऐसी गजेट्स पर निर्भर रहने लगे हैं ।

 

समाज ने भी खाली वक्त का कोई खास बेहतर इस्तेमाल नहीं किया, टी.वी. पर पूरा वक्त कोरोना की समाचार और अगर वो उससे उबर गए तो कोई पुराना गड़ा मुर्दा उखाड़ अपनी डिबेट आदि करते हैं । इंटरनेट जगत में भी कंट्रोवर्सी का दौर सा हैं, कोई किसी पे लांछन लगा रहा तो कोई किसी और पे । निजी ज़िंदगी में सभी के अपने मसले है । कोई किसी चीज से परेशान हैं तो कोई किसी और चीज से, सभी के पास अपनी व्यथा हैं सुनाने को ।

हो सकता है शायद ये बदलाव ये सारी चीजे मैंने बस महसूस किए हो लेकिन शायद मेरा ये आकलन सही भी हो ।  जितने लोगों को मैंने जाना और समझा उनका भी इस पर यही राय रहा हैं ।

 

इस पूरे के एक निष्कर्ष पर आऊं तो यही कहूंगा कि कोरोना ने हमारी व्यावहारिक ज़िन्दगी पे भी प्रहार किया हैं, भले कोरोना हर एक की पहुंच तक ना आया हो, लेकिन उसका व्यापक असर हमारी ज़िन्दगी पे भी हुआ हैं । आज के दौर पे वहीं इंसान खुश हैं, वहीं ज़िन्दगी को आशा के नजर से देखता है जो कोरोना से ग्रसित था और अब इससे  ठीक होकर आ चुका हैं क्यूंकि वैसे लोग अब जीवन को आशावादी नज़रों से देखते हैं । बाकी सब को या तो बीमारी का खौफ हैं या उसकी अनिश्चितता से डर ।

 

इस पर काफी देर बाद सोचने समझने के बाद मैं यह जान पाया कि आखिर ऐसा क्यों है । दरसअल हमारा देश, हमारे लोग और हम सामान्य से लोग हैं, हम खुशियों को छोटी छोटी चीजों में ढूंढ़ते हैं । दोस्तों के साथ मुलाकात की वो चाय की चुस्की सब को भाती हैं, परिवारों का वो छोटा मोटा जलसा भले हमें पसंद हो ना हो लेकिन उसका आकर्षण फिर भी हमें अच्छा लगता है । रिश्तेदारों की मेल-मुलाकाते हमारी आदतों में शुमार हैं ।

भले जुलूस किसी भी धर्म का हो, हर व्यक्ति चौक चौराहों पे जा के उनकी भव्यता को मापता हैं। भले बारात किसी भी की हो, लेकिन अगर वो मोहल्ले से गुज़रे तो मोहल्ले का बच्चा बच्चा घर से निकल कर उसे देखता है । ये देश ही मिलनसार का हैं, सूनी सड़कों की आदत नहीं है हमें। वो बाज़ार की भीड़ में ही मजा हैं हमारे लिए, वो बच्चों से भरी गालियां ही अच्छी लगती हैं । उस मंदिर मस्जिद की धक्का मुक्की की आदत है हमें । हम हैं ही ऐसे की हमें वो भीड़ भरे चीजों की आदत है और शायद यही कारण है कि आज लोग शांत हैं । अपने जरूरी काम काज के लिए हर कोई निकलता हैं, लेकिन बिमारी के प्रकोप से अपने दोस्त यारों से मिलने से डरता हैं । शादियों की अनुमति हैं लेकिन सीमित संख्या में लोग आना जाना कर रहे । बच्चों को घर पे ही रहना है, बड़ी मुश्किल से वो आंगन तक निकल कर खेल ले यही बहुत हैं नहीं तो घर में अभिभावक भी बच्चों को टी.वी. आदि पर मनोरंजन करा रहे ।

 

ऐसा नहीं है कि हम बीमारी से अवगत नहीं हैं या उनका भय नहीं, हमें भय हैं तो इसकी अनिश्चितता से, इसके वजह से जो हमने खोया हैं उससे । हमारी मजबूरी हैं कि हमें जिन छोटी छोटी चीजों से खुशी मिलती थी अब उन पर बीमारी का अंकुश हैं । ऐसा नहीं है कि हम इससे निराश हैं या दुखी हैं, लेकिन हमारे मन में कसक जरूर हैं उन चीज़ों की । और शायद यही सब कारण हैं जो हमें संकीर्णता, अकेलापन जैसे चीजों के क़रीब ले जाता है ।

 

भले मन न लग रहा हो, छोटी मोटी परेशानी हो, वो सब करने की इच्छा हो जो हम नहीं कर पा रहे फिर भी हम तत्पर हैं । घर के बड़े अपनी भूमिका निभा रहे, देश के जवान अपना कर्तव्य निभा रहे, डॉक्टर- नर्स अपनी सेवा में समर्पित हैं । देश के लिए काम करने वाले राजनेता भी काम कर रहे, बेशक उनमें सियासत जरूर हैं पर परवाह हर कोई करता है और उबरने की कोशिश हर कोई कर रहा । और यही हमारी सकारात्मकता हमारे अभी तक डटे रहने की वजह हैं और यही हमारे आगे बढ़ने के लिए प्रेरणा स्रोत भी हैं ।

 

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उम्मीद करता हूं कि आज का विषय आपको पसंद आया होगा और आप भी उन्हीं भाव को महसूस कर पा रहे होंगे, फिर भी मैं यह नहीं कहता कि शत प्रतिशत लोग मुझसे सहमत होंगे, इस पर सबकी अपनी राय हो सकती हैं ।

और इसी के साथ मेरे इस श्रृंखला का भी अंत होता है, बहुत से लोग जो इस श्रृंखला से जुड़ नहीं पाए उन्हें बताना चाहता हूं कि यह श्रृंखला मैंने 43 दिनों तक जारी रखी, हालंकि बहुत से दिनों में मैंने पोस्ट नहीं किया फिर भी इसे कहानी-वार तौर पे जारी रखी । और इसी विषय पर आज यह अंतिम पोस्ट, हालंकि इसका विषय कुछ अलग रखा है । इस पर एक और पोस्ट भविष्य में जरूर लिखूंगा जब यह कोरोना काल समाप्त हो जायेगा, जिसमें पूरे कोरोना काल की आपसी व्यथा और कुछ महत्वपूर्ण तथ्य एक डॉक्यूमेंट्री की तरह आपसे जरूर साझा करूंगा ।

 

इस श्रृंखला के चक्कर में काफी कहानी वाले पोस्ट रुक गए हैं, अब उन्हें पुनः शुरू करने की आवश्यकता है । इस छोटे वार्ताकार को आपके ध्यान और अभिज्ञान (Recognition) की आवश्यकता है । और यही मेरे लिए लिखने का एक मात्र प्रेरणा स्रोत हैं । कुछ अच्छे पोस्ट के साथ पुनः प्रकट होगा, तब तक के लिए सुरक्षित रहे, खुश रहे ।

 

धन्यवाद !

 

प्रेम नारायण साहू


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