कविता - वह मुझसे प्यार नहीं करती


नमस्कार !

आज पुनः एक लंबे समय अंतराल के बाद अपनी एक कृति आपके समक्ष लाया हूं । अपने इस पोस्ट के बारे में कहूं तो ये एक कविता मात्र देखने में लगती हैं लेकिन इस कविता को लिखने का एक महत्वपूर्ण उद्देश्य हैं । इससे पहले कि कविता के आधार में जाऊं, एक बात जो आपसे मैं खुले दिल से स्वीकार करता हूं कि , गद्य भाग में मेरा हाथ ज़रा तंग हैं लेकिन फ़िर भी भावनाएं इतनी प्रबल है कि हर बार कुछ लिखने कीआजमाइश जरूर होती हैं ।

और एक महत्वपूर्ण जानकारी जो में आपसे साझा करना चाहता हूं, कि इस ब्लॉग को पढ़ रहे जितने भी मेरे दोस्त, मित्र से ये कहना चाहता हूं कि इस कविता का मेरे व्यक्तिगत जीवन से कोई लेना देना नहीं है । कविता में शब्द भले मेरे हैं लेकिन उनका कोई वास्तविक संबंध नहीं हूं । मेरी बस कोशिश यह हैं कि हर उस भावनाओं को शब्दों के माध्यम से आपके समक्ष प्रस्तुत करना हैं जिन्हें मैंने महसूस किया हैं ।

कविता के बारे में बात करूं तो अक्सर हम ऐसी भावनाओं पर बात नहीं करते... उन्हें समझते नहीं हैं...अक्सर अपना पहलू या वक्तव्य समझ कर उन बातों को अलग-अलग नजरिए से देखते हैं, और आज मैंने ऐसे ही एक विषय पर अपनी बात कही हैं ।


कविता पढ़ने से पहले कविता का मूल उद्देश्य जानना जरूरी है, हो सकता है कविता का कुछ हिस्सा सभी को अच्छा ना लगे इसीलिए मैंने कविता के हर एक अनुच्छेद को स्पष्ट करने की कोशिश की है, यह भी संभव हैं कि शब्दों की ज्यादा स्पष्टता बताने के चक्कर में शब्दों में तुक-बंदी ना बनी हो लेकिन जैसे की मैं कहता हूं की 
"जहां शब्द से शब्द मिल जाए उन्हें मैं कविता कह दिया करता हूं "

कविता कहने का मूल उद्देश्य कविता में कही गई बातों को सार्थकता से प्रस्तुत करना है। खैर ये तो आप पाठक ही बता पाएंगे कि मेरी यह कोशिश सफल हुई हैं या नहीं ।

आज के समय में प्यार, मोहब्बत के मायने ज़रा बदल से गए हैं । प्यार - तकरार एक हिस्से के दो पहलू से हो गए हैं । मिलना- बिछड़ना जैसी एक सामान्य सी बाते हो गई है । एक समय था जब एक रिश्ते को संभालने या समझने में पूरा जीवन व्यतीत हो जाता था । आजकल जैसे ये आम बात हैं । ख़ैर हर रिश्तों की चलने न चलने की अवस्था पर मैं कुछ कह नहीं सकता ।
लेकिन हर टूटते रिश्ते में ये देखा गया है कि हर बार बिगड़ते रिश्तों की दोष हम एक दूसरे पर डालते हैं । खैर कभी- कभार इसके कारण वाजिब भी होते है और कई बार नहीं । और आज मैं इसी पहलू का जिक्र करना चाहता हूं । हर रिश्ते के चलने न चलने की एक मुख्य कड़ी होती हैं कि "आपस में एक दूसरे को समझना" ,लेकिन जब रिश्ता बचता ही नहीं तो हम बस उसका दोष मढ़ देते हैं कभी ये नहीं समझते की सामने वाले कि क्या - ऐसी वजह रही होगी कि जिसके वज़ह से वह यह रिश्ता छोड़ रहे हैं । और आज इसी एक संदर्भ को एक भाव में मैंने प्रस्तुत किया है उम्मीद करता हूं कि आपको यह पसंद आएगा।

कविता मैं कही गई बातों को सही ढंग से समझने के लिए जरूरी है कि इसके पीछे की कहानी को जाना जाए ।

यह कहानी कोई नई कहानी नहीं है यह हर उस प्यार करने वाले की कहानी हैं जो अपने जीवन में किसी एक शक्स से बेइंतेहा मोहम्मत करते हैं लेकिन वक्त कि परिस्थिति और कुछ कारणों से वे जीवन भर साथ नहीं निभा पाते हैं । ऐसे में जो प्रेमी हैं वो अपनी प्रेमिका के बारे में चांद बातें कहता है ....



पहली मुलाकात

पहली मुलाकात हमारी कुछ यूं हुई थी
पलट कर मैंने उन्हें देखा था,
सहसा मुस्कुराई तो वो भी थी

रिश्ते की हामी तो उसी दिन ही हो गई
जब मैं एक टक देखता रहा ,फिर भी वह कुछ न कहती रही
न जाने ये कैसी दिल - लगी हैं उसकी
कि सारे इशारों के बाद भी वह कहती हैं कि
वह मुझसे प्यार नहीं करती ।

मेरे इकरार में भी उसका रुझान जरूर है
भले ऐतबार न हो.... लेकिन उसे विश्वास जरूर हैं !
लफ़्ज़ों से बेशक " न " हो उसकी
पर आखों से उसकी " हां " जरूर हैं...

अहमियत

मेरे होने न होने का जिक्र भी उसे है...
मुझे खोने की फिक्र भी उसे है...
न जाने ये कैसी दिल - लगी हैं उसकी
सपने संजोने के बाद भी वह कहती हैं कि
वह मुझसे प्यार नहीं करती...

रिश्तों के पड़ाव

मेरी शरारतों में भी उसकी अदाएं शामिल है...
उसके हर नखरे में मेरी आजमाइश जोरदार हैं....
भले माने या न माने वह ....
मेरी हर अधूरी कहानी का हिस्सा भी वह हैं और पूरी कहानी का किस्सा भी वह हैं
फिर भी वह कहती हैं कि वह मुझसे प्यार नहीं करती ।

मेरी बेरुखी की वजह भी वही हैं,
मेरे खुश होने की वजह भी...
मेरी नाराजगी तो उससे भी सही नहीं जाती...
मनाने की वजह तो.... वो भी तलाशती हैं ...
फिर भी कमबख्त कहती हैं....प्यार नहीं करती...

मेरे हजार शब्दों में भी उसके चंद लफ्ज़ ही काफी हैं ...
मेरे बेमतलब की बातों में भी उसके मतलब की बातें ज्यादा स्पृहणीय (बेहतर) हैं
लेकिन फिर भी तुम मेरा बढ़-बोलापन आसानी से सुन लेती हों...
फिर भी वह कहती हैं कि वह मुझसे प्यार नहीं करती...

मेरी हर किस्से कहानियों में तुम्हारा जिक्र जरूरी है
मेरी हर बातों में तुम्हारा होना जरूरी है...
यूं तो तुम भी... मेरी कहानी में अपना किरदार तलाश्ती हो
फिर भी कहती हो कि वह मुझसे प्यार नहीं करती...

अनजान महफिलों में ढूंढ़ती निगाहें भी उसकी पहली हैं,
मेरा हुजूम (भीड़) में होना भी उसकी सहजता के लिए जरूरी है
छुपकर देखना- दिखाना तो उसे भी पसंद है
फिर भी वह कहती हैं कि वह मुझसे प्यार नहीं करती...

मेरी नराजगी को सर पे चड़ाया हैं उसने
मेंरी हर कड़वी- बातों को सहा है उसने
उसे बेवफ़ा बता कर तो मैंने भी महफ़िल बना लिये
फिर भी वह कुछ नहीं कहती हैं
बस मुझसे कहती हैं कि वह मुझसे प्यार नहीं करती...

उसके एक इनकार पे हजार बुरे शब्द कहे थे मैंने
उसे बेवफ़ा और खुद को वफादार समझा था मैंने
उनकी मुस्कुराहट के पीछे का मैं दर्द न समझा पाया
और वो खुद को ही खुदगर्ज बता कर चली गई ।

अपनी खुशियों से ज्यादा, मेरे गम की परवाह करती हैं
खुद डोली चड़ी हैं दूसरे के संग, लेकिन मेरे खुश रहने की हिमाकत वो करती हैं
जानती है उसके बिना मेरा हश्र क्या होगा
इसलिए अपने बिना जीने की गुहार वो मुझसे करती हैं ।

ज़िन्दगी के हर बीते लम्हों में वो याद आएगी
बातों से ज्यादा, उनकी शख्सियत याद आयेगी
भले ही खुद कितना भी सही क्यूं न होगा मैं
लेकिन उम्र भर उनकी छवि याद आएगी....

समझने- समझाने में वो विश्वास नहीं करती
कम कहती हैं और सब कुछ सहती जाती हैं
प्यार तो उसे भी बहुत था ....मुझसे
लेकिन अपने से पहले दूसरों कि सोची थी उसने
.
..
...
न जाने ये कैसी दिल - लगी हैं उसकी
कि सारी सच्चाई के बाद भी वह कहती हैं कि
वह मुझसे प्यार नहीं करती ।


आपको कविता कैसी लगी, मुझे जरूर बताएं, आपकी प्रतिक्रिया और सुझावों का इंतज़ार रहेगा ।

धन्यवाद आपका, आपने ब्लॉग को और मुझे समय दिया । 


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