मन की बात #4 – इंजीनियरिंग ( यात्रा 4 साल की )


मैं आज ये तब लिख रहा हूं, जबकि आज कॉलेज का आख़िरी दिन हैं । ऐसा नहीं है कि ऐसा दिन मेरी २२ साल के जीवन में पहली बार आ रहा हैं । दो बार और स्कूल में बिछड़ने वाला दिन मेरी ज़िन्दगी में आ चुका है । लेकिन उन दिनों में और आज के दिन में काफी कुछ अलग हैं । शायद अब उन बीते हुए लम्हों की कद्र होने लगी है ।

आख़िरी प्रैक्टिकल, आखिरी दिन और आख़िरी वो कुछ समय जो पूरे जीवन भर याद रहने वाला है । 10 अक्षरों का रोल नंबर और 6 अक्षर का एनरोलमेंट नंबर 4 पन्नों की कॉपी और अंदर सब बेफिजूल की बातें । 

आज जब आखरी दिन है तो सब कुछ यादगार सा लगता है । वो मुस्कुराते चेहरे, सेल्फी और तस्वीर लेते हुए लोग । एक- दूसरे के शर्ट पर लिखते हुए लोग
। वे इस लम्हों को याद रखना चाहते हैं , शायद आगे चलकर यहीं होंगे जिनको देखकर उनके चेहरे पे मुस्कान आएगी । मैं इस मामले में थोड़ा अलग सा हूं, किसी ने मुझसे पूछा कि तुम क्यों नहीं बाकियों की तरह इन दिनों को यादगार बनाने की कोशिश करते हो । वह शर्ट पर लिखवाना, गाड़ियों में घूमना, तो कहीं साथ में घूमना-फिरना, मौज मस्ती करना । मेरे लिए ये थोड़ी अलग बात है, मेरे जीवन में जब भी कोई ऐसी बात आती है तो अक्सर मैं इन चीजों से दूर भागता हूं पता नहीं इसका वजह क्या है लेकिन सच कहूं तो मैं ऐसा ही हूं । 

और इन्हीं सब बातों को मैं Introvert कहता हूं पता नहीं मैं सच में ऐसा हूं या नहीं लेकिन मुझे लगता है कि मैं बाकियों की तुलना में अपने emotion या feel जल्दी किसी को समझा नहीं पाता, कह नहीं पाता । फिर भी एक बात कहूंगा कि इन 4 सालों में बहुत कुछ बदला है । 4 साल वाले पुराने प्रेम और आज वाले प्रेम में काफी कुछ बदला है थोड़ा Introvert से Extrovert तो जरूर हुआ हूं ।

इन 4 सालों में कभी भी आज का दिन का ख्याल नहीं आया, कभी इसके बारे में सोचा भी नहीं की कैसे होगा वो दिन, लेकिन जब आज यह हैं तो बहुत कुछ महसूस हो रहा है ।

ऐसा नहीं है कि इन चार सालों में बहुत कुछ हो गया, ज़िंदगी अपनी रफ्तार पे हैं, सब चीजें वैसी ही है लेकिन उनके मायने जरूर बदले हैं । इन चार सालों में इंजीनियरिंग पर कभी गुरूर नहीं हुआ हमेशा सोचता था कि इससे बेहतर भी किया जा सकता था लेकिन जब इसका अंत नजदीक हैं तो लगता है कि शायद जो भी था वह सब कुछ ठीक ही था, वो इंजीनियरिंग की पढ़ाई करना, ब्रांच न बदलना...सब कुछ । एक चीज जो मुझे इंजीनियरिंग से महसूस होती है वह हैं की भले ही मैं इंजीनियरिंग के पढ़ाई के काबिल बना हूं, या न बना हूं ये तो नहीं पता, लेकिन इंजीनियरिंग ने एक ही अच्छी सिखा दी, कि जीने का सलीका सिखा दिया । मैंने अपने लिखने की शुरुआत भी इंजीनियरिंग के दौरान ही की ।

बहुत कुछ इन चार सालों में बदला हैं, स्कूल के दिनों से ही इंजीनियरिंग करने का सोंचा था.... शुरू से ही मैं सिविल से इंजीनियरिंग करने का सोंचा था, जैसे मार्क्स आए और जैसा पढ़ा वैसा ही कॉलेज मिला । पापा मुझे मैकेनिकल करना चाहते थे, नामांकन (काउंसलिंग) के समय मैंने बहुत से ब्रांच में भरा, मिला
मैकेनिकल ही, सोचता था कि पहले साल पढ़ने के बाद ब्रांच बदलवा लूंगा ।

शुरू से इंजीनियरिंग मेरे लिए सपने जैसे था । अपने मन में शुरू से ही इंजीनियरिंग बनने का सोचा था, ऐसा कुछ नहीं था कि कोई जोर-जबरदस्ती हैं या बेमन से कर रहा था । सब कुछ मर्जी के हिसाब से च रहा था । कॉलेज मिलने के बाद बहुत सी बनी बनाई उम्मीदें थीं । हम अक्सर स्कूल को बोरिंग समझते हैं वहां की पढ़ाई बस मुझे जबरदस्ती लगती थी मतलब बहुत से चीजे पढ़ने में ऐसे थी कि मुझे लगता था कि बेवजह पढ़ रहा हूं । ऐसे में इंजीनियरिंग मुझे अपने मन की पढ़ाई लगती थी....यह बिल्कुल बचपन में परियों की कहानी की तरह हैं... जिसमें हम बहुत सी चीजों को अतिशयोक्ति में सोचते हैं । मैंने भी इंजीनियरिंग से ऐसा ही सोचा.... खैर जैसे इंजीनियरिंग को सोचा वैसे नहीं निकली, और इसमें गलती हमारे सोच की हैं हमें जब मूल बातें पता नहीं होती हैं तो हम ऐसा ही सोचते हैं ।


इंजीनियरिंग में एडमिशन का मैंने सोचा नहीं था की मुझे कॉलेज मिल भी पायेगा कि नहीं... 
PET के नंबर जरा कम थे, कॉलेज मिलने के बाद खुश था । नये लोग, नई जगह, नया परिवेश सब कुछ नया था । शुरुआत फिर से करनी थी पर फिर भी खुश था, एक बात की कमी जरूर थी की पुराना कोई स्कुल के समय का दोस्त या जान-पहचान वाला नहीं था । जैसे तैसे शुरुआत की, शुरू के 
1-2 दिन थोड़े मुश्किल थे लेकिन बाद में सब धीरे- धीरे ठीक होने लगा ।

सच कहूं तो नहीं पता जो आज चुने अच्छे दोस्त बने वो पाता नहीं कैसे बने ....जिनके बारे में सोचा नहीं वैसे दोस्त मिले... क्या करें
, स्वभाव ही ऐसा है - मेरी ज्यादा आदत नहीं की खुद से बात-चीत शुरू करूं, यही वजह है कि मैं खुद किसी से बात नहीं कर पाता हूं ।

शुरू में कुछ दिन बीतने के बाद कुछ एक दोस्त मिले, Physics प्रैक्टिकल में , नाम नहीं लूंगा वो खुद ब खुद समझ जायेगा 😉 ये वही दोस्त थे जो इंजीनियरिंग के अंत तक बने तक रहे फर्स्ट ईयर एकदम खुशनुमा ढंग से निकला पाता ही नहीं चला पहला सेमसेस्टर पहला पेपर थोड़ा कठिन गुज़रा... जाहिर सी बात है उस पैटर्न को पकड़ पाना कठिन था शुरू से ही मैं पढ़ने में एकदम होशियार नहीं था, न ही एकदम शून्य, आप मध्यम कह सकते हैं । रिज़ल्ट आया और 1 सब्जेक्ट में बैक(Backlog)😭। मुझे याद नहीं है कि मैं उससे ज्यादा किसी और दिन डरा था । इतनी ज्यादा घबराहट आज तक कभी नहीं हुई । घर में अपना रिजल्ट बता पाना मेरे लिए बहुत मुश्किल था । कहीं ना कहीं मन में डर बैठ गया था कि साथ जब पहले सेमेस्टर में यह हाल है तो आने वाले और 7 सेमेस्टर में क्या होगा । खैर जो भी था वह समय निकल गया, मैं अब उसके बारे में ज्यादा बात नहीं करना चाहता, पहले ही अटेम्प्ट में मैंने बैक का पेपर निकाल लिया और मैं पास हो गया । शायद यह ठीक ही था, एक बार ठोकर लगना जरूरी था आगे बढ़ने के लिए ।

उसके बाद तो सब ठीक ही था, ऐसे ही देखते देखते फर्स्ट ईयर निकल गया, इस साल कुछ और दोस्त बने, कोई अनजाने से तो कोई अचानक हुई बातचीत से । किसी से पेपर में पूछने के बहाने तो किसी से नोट्स के बहाने बातचीत हुई, फिर से वहीं कहूंगा.... नाम नहीं लूंगा, जिनके बारे में लिखा है वे खुद ही समझ जाएंगे ।

कॉलेज बस 🚌 से जुड़ी एक और बात जो हमेशा मुझे याद रहेगी कि अक्सर जब क्लास वाले, क्लास बंक कर देते तो शाम के 5:00 बजे तक मुझे बस के इंतजार में रुकना पड़ता था, जिसके लिए बॉयज हॉस्टल ही काम आता था, दरअसल वहां का Wi-Fi काफी अच्छा चलता था 😂

मेरा एक दोस्त अक्सर मुझे बस स्टैंड तक छोड़ने जाया करता था, कभी- कभार लेट हो जाऊं तो वहीं होता था जो बस तक पहुंचाने वाला....खूब स्कूटी तेज चलता हैं 🚴 

मेरे लिए उस समय कॉलेज जाने में एक और मुख्य मजे की बात थी और वह कॉलेज बस 🚌 से आना-जाना मेरी आदत हैं कि मैं काफी सोचता हूं 🤔, तो मुझे सोचने के लिए कॉलेज का बस एक सही जगह लगती थी । आते-जाते खिड़की से बाहर सड़को, रास्तों, उड़ते पत्तों को देखना, वो हल्की-हल्की बहती हवा सुकून देने के लिए काफी होती है । हालांकि यह सुनने में थोड़ा बचकाना जरूर लगता है, लेकिन हम सब ऐसी चीजों को मन ही मन पसंद करते हैं  😇

एक और दोस्त जिसके बारे में बताना चाहूंगा, जिससे घनिष्ठता होने में जरा वक्त लग गया हालांकि सबसे पहले उसी से कॉलेज में मुलाकात हुई थी । उसके साथ मेरी बातचीत का टॉपिक कुछ अलग हुआ करता था ।

खैर ऐसे ही करते-करते फर्स्ट ईयर के 2 सेमेस्टर निकल गये । अब वक्त था पनी-अपनी ब्रांच में जाने का ....सच कहूं तो 1 साल पहले मैं यही सोचता था कि ब्रांच चेंज कराना ही है, लेकिन 1 साल खत्म होने तक ब्रांच के बारे में, मैंने सोचना ही बंद कर दिया । शायद दोस्त यार ही मैकेनिकल के मिल गए थे और अब शायद मन भी नहीं था तो मैंने मैकेनिकल को ही चुना ।

मैकेनिकल में आते ही कुछ चीजें और बदली और बहुत से दोस्त बने, अलग-अलग व्यक्तित्व के लोग मिले । फर्स्ट ईयर के बाद सोचने समझने का तरीका भी बदला .... शुरू शुरू में मैं निष्पक्ष तौर पर हर किसी से बात करना, जल्दी से घुलने मिलने की कोशिश करना, ऐसा वास्तव में मैं ऐसा नहीं हूँ लेकिन मुझे लगता था कि ज्यादा मिलनसार होना, ज्यादा बेहतर होगा...लेकिन फर्स्ट ईयर के बाद यह समझने में देर नहीं लगी, सभी के प्रति ज्यादा मिलन व्यवहार रखना भी ठीक नहीं है, ऐसे में लोग आपकी कद्र करना छोड़ देते हैं । खैर मैकेनिकल में ऐसा नहीं था, लडको-लड़को में बातें एकदम पारदर्शित रहती हैं । फर्स्ट ईयर के बाद कुछ चीजें सीखने को मिली, काभी हद तक व्यावहारिक ज्ञान भी मिला  पढ़ाई लिखाई भी सब ठीक थी था, पहले सेमेस्टर के बाद अपने पढ़ने-लिखने के शैली में परिवर्तन किया और दोबारा back न आए ये सुनिश्चित किया.... दूसरे सेमेस्टर में अच्छे नंबर आने से पढ़ाई के गाड़ी ट्रैक पर आ गई ।

इंजीनियरिंग की एक अच्छी बात थी, की पढ़ाई इतनी ज्यादा तंग महसूस नहीं कराती थी ... सेमेस्टर के अंत में भले ऐसा होता रहा होगा...लेकिन मध्य में ऐसा नहीं होता था जिसके वजह से अपनी बाकी ज़िन्दगी पर फोकस करने का समय मिल जाता था । दूसरा साल इंजीनियरिंग का बेहतर था, बहुत सी दबी बातें खत्म हुई, मौका मिला कि अपने आप पर काम किया जाए । ऐसे में मैं काफी सोचा करता था, बहुत कुछ बातें ऐसे थी जो लोगो के समक्ष कहनी थी । ऐसा में क्या शुरू किया जाए जिसे मैं अपनी बात सही ढंग से बयां कर पाऊं....

अपना ब्लॉग बनाया - ज़िन्दगी Unplugged....(blog-आधुनिक तरीका लिखने का) ज़िन्दगी
Unplugged का मतलब कुछ नहीं था, सच कहूं तो उस वक्त मैं अपने आप को ज़िन्दगी के प्रति ज्ञान देने वाला समझता था, लगा की कुछ सकारत्मक पहलू को लिखने की शुरआत की जाए । बहुत सी कहानी-कविता पर जोर आजमाइश करने लगा । कुछ लोगों को पसंद आए और कुछ नहीं । ये लोग और कोई नहीं मेरे आस-पास के दोस्त और परिवार वाले हुआ करते थे 😌 शुरू-शुरू में बड़ी नकारत्मकता आती थी क्योंकि लिखने में बड़ी मेहनत जाया होती थीलेकिन पढ़ने वाले बहुत कम होते थे । खैर वक्त के साथ मैंने इसके बारे में सोचना छोड़ दिया । 

जब लिखने कि शुरुआत की तो मन हुआ कि इंजीनियरिंग के बाद इसे ही भविष्य बनाया जाए...Mass communication का भूत चढ़ा रहा.... फिर समझ आया कि शायद ये मेरे उन शौक में से हैं जिनमें में शायद मैं लिखते- लिखते बेहतर तो हो सकता हूं लेकिन उस पर पूरी ज़िंदगी निर्भर करना ऐसा सोचना कठिन लगता है । एक मध्यम-वर्गीय परिवार के नाते भी बहुत सी चीजें ऐसी होती है जो आप चाह के नहीं कर सकते हैं 😔

लिखने से बहुत हद तक आत्मविश्वास बढ़ा, अपने नाम के आगे लेखक लिखना पाता नहीं कितना सही था कि नहीं... ये तो नहीं पता ! लेकिन जब आपको लोग उसी स्वरूप से पुकारे तो वह गौरवान्वित कर देने वाला होता है । दोस्तों-यारों का खूब समर्थन रहा जैसा भी लिखता, उसे वो वैसे ही सराहते थे । खैर चकाचौंध भरी दुनिया में हम अपेक्षा करते हैं कि हम हमेशा चर्चा का पात्र बने रहे, मैं भी सोचता था कि थोड़ी बहुत लेखन कला से कॉलेज में फेमस हो जाऊं, इसी चक्कर में आते-जाते मिलते  हुए लोगों को अपने ब्लॉग के बारे में जिक्र करता, उनसे पूछता है कि क्या आप को पढ़ना पसंद है???
खैर कुछ दिनों के बाद मैंने ऐसा करना बंद कर दिया, बहुत से ऐसे लोग मिले जिन्हें शायद पढ़ने के इच्छुक भी नहीं थे लेकिन मेरे जोर से उनके और मेरे रिश्ते खराब होने लगे, लोगों को मेरा ऐसा बात करना पसंद नहीं आता रहा होगा 🙁 उस दिन निश्चय किया की अपने लेखन को स्वयं प्रचार नहीं करूंगा जिन्हें पढ़ना होगा वह खुद--खुद मुझे ढूंढ लेंगे 😌 भले मैं कितना भी कहूं, लेकिन इन बातों का असर तो पढ़ा ही कुछ दिन तक में ज्यादा बेहतर ढंग से लिख नहीं पाया ।

जब इन सब से ध्यान हटा तो फिल्म निर्माण में दिल लगा लिया, ये बहुत आम बात हैं कि जब एक चीज़ से मन हटने लगे तो खुद ब खुद दूसरी चीज पसंद आने लगती हैं । ये बात चौथे सेमेस्टर कि हैं जब कॉलेज का तक फेस्ट (कार्यक्रम) (संविद) आयोजित हुआ तो फिल्म मेकिंग ने मुझे आकर्षित किया । पहला साल था तो कुछ समझ ही नहीं आया कि क्या बनाया जाए और क्या नहीं....।
सच कहूंगा..... झूट नहीं....😉
YouTube पर पहले ही एक वीडियो ऐसा देखा था जिन्होंने भिलाई पर डॉक्यूमेंटरी बनाई थी तो मुझे वह थोड़ी अधूरी लगी तो पूरा करने फिल्म मेकिंग में मैंने उसी विषय पर फिल्म अपने ढंग से बनाने की सोंची । अब सोचने का वक्त भी नहीं था, न ही कोई तजुर्बा.....पहली बार बना रहा था तो वहीं बना दी । 3 दिन के भारी प्रयास के बाद और लगातार 2 दिन के एडिट के बाद फिल्म तैयार । पहली बार थी तो हम दो लोगों ने ही इसे बना लिया । मैं शुरू से ही घर के छोटे-मोटे कार्यक्रम के वीडियो एडिट(Edit) किया करता था तो एडिट में ठीक-ठाक ही था । कभी ये सब चीजें सीखी नहीं लेकिन घर पे रखे लैपटॉप का भरपूर इस्तेमाल किया ।  
सच कहूं तो जिस दिन वीडियो का प्रदर्शन था उससे बुरा दिन कोई नहीं रहा होगा....😣 हालांकि किसी ने कहा नहीं लेकिन वहां पर बाकी वीडियो को देखकर खुद में अच्छा नहीं लगा लोगो के वीडियो में बेहतरीन आदाकरी, कला और चित्रण भरपूर था जबकि हमरे वीडियो में खाली सड़कों, स्थानों और हाथ हिलाते लोगों के अलावा कोई भी नहीं केवल दृश्य ही दृश्य था । हालांकि यह डॉक्यूमेंट्री की दृष्टि से सही था अगर कुछ गलतियों को नजरअंदाज कर दिया जाए तो... । बेशक हम हार गये थे हमसे ज्यादा बेहतर लोगों ने प्रदर्शन किया था लेकिन मैंने उसे सोच लिया था कि शायद अगले साल कुछ बेहतर वीडियो बनाऊंगा । कुछ दिनों बाद उस वीडियो को YouTube में अपलोड कर दिया वहां पर भी तुरंत ही मुझे व्यूज नहीं मिले तो मन में था कि जरूर एक ना एक दिन अच्छी वीडियो बनाऊंगा जो सबको पसंद आएगी लेकिन उस साल के अंत तक तो कोई ऐसी परियोजना बन ही नहीं पाई ।

उसी साल मेरे ही क्लास के एक दोस्त ने YouTube पर अपना एक गाने का वीडियो डाला और उस वीडियो को देखकर मुझे खुशी हुई कि चलो मेरे आस-पास, जान-पहचान में भी कोई तो ऐसी चीजों में दिलचस्पी रखता है । हालांकि मैं उसे पहले से जानता था लेकिन बातचीत का दौर इस वीडियो के बाद से ही शुरू हुआ । साल के अंत में एक और प्रतियोगिता के बारे में पता चला जिसमें हमें रैगिंग से संबंधित वीडियो को बनाने कहा गया और यही समय था जब हमने मिलकर एक वीडियो बनाया । 
वीडियो के बारे में ज्यादा कुछ नहीं कहूंगा जैसा भी था पहले प्रयास में ठीक ही था और हमने उसे यूट्यूब पर भी डाला, मिला-जुली  प्रतिक्रिया मिली ।  दोस्तों ने समर्थन किया, बाहर वालों ने नापसंद किया । अगले साल हम दोबारा से संविद का कार्यक्रम आयोजित हुआ जिसमें फिल्म मेकिंग में हमने हमारी पहली सफल फिल्म "एहमियत" बनाई और पहली बार मैंने अपने आप को एक कहानी-वार्ता के रूप में प्रस्तुत किया । अब ZU फिल्म्स, Zindagi unplugged film's 📽के के रूप में उभरा । तकरीबन छह सात और वीडियो बनाएं जो अपने प्रसिद्धि के हिसाब से प्रसिद्ध हुए । कुछ वीडियो गाने के भी थे, दोस्ती खूब जमी…. एक का संगीत 🎵 तो दूसरे का निर्देशन 📷 काम आने लगा मेरे लिए यह इंजीनियरिंग के सबसे प्रमुख चीजों में से एक था । पता नहीं में इन चीजों को आगे रख पाऊं या न रख पाऊं लेकिन यह मुझे ताउम्र याद रहेंगे कि मैंने कॉलेज के समय में ऐसा कुछ किया था और प्रयास तो ऐसा है कि आगे भी ये सब चलती रहे।

इंजीनियरिंग की एक और बात जो मुझे हमेशा याद रहेगी, अक्सर दूसरे और तीसरे वर्ष में वोकेशनल ट्रेनिंग होती है, जो सबके लिए अनिवार्य होती है । हालांकि वोकेशनल ट्रेनिंग कहां से करनी है इसका चयन हम खुद कर सकते हैं । लेकिन सच बताऊं तो वोकेशनल ट्रेनिंग में ट्रेनिंग जैसा कुछ नहीं होता है लेकिन इसी बहाने किसी भी औद्योगिक संयंत्र या कोई भी अन्य विषय संबंधी कोर्स को देखने या सीखने का मौका मिल जाता है । मैंने अपने दोनो वर्षों में भिलाई स्टील प्लांट को ही चुना । उसकी केवल एक वजह थी कि बी•एस•पी• में पिताजी कार्यरत हैं जिसके कारण मेरे लिए बी•एस•पी• में ट्रेनिंग करना आसान हो जाता है । जिनके माता-पिता या अभिभावक बी•एस•पी• के होते हैं उन्हें यहां आने या ट्रेनिंग करने में आसानी पड़ती है हमें आसानी से अनुमति मिल जाती है । जो भी वजह रही होगी मुझे तो दो बार जाने का मौका मिला । उन ट्रेनिंग के 10 दिनों में हम कोशिश करते हैं कि प्लांट को पूरी तरीके से देख पाए, लेकिन एशिया का सबसे बड़ा प्लांट होने के कारण इसे आप 10 महीने में भी ढंग से जान नहीं पाएंगे । 
5-56-610-10 कि•मी• तक रोज चलना, मस्ती- मजाक, ट्रकों में लिफ्ट लेना, वो बी•एस•पी• के कैंटीनों में खाना । सबकुछ एक मजेद्दार अनुभव हैं । खैर ये सब पुरानी बातें है लेकिन फिर भी यह मेरी इंजीनियरिंग से बहुत हद तक जुड़ी हैं।

इन बीते दूसरे और तीसरे ईयर पढ़ाई के दृष्टिकोण से भी ठीक ही थे, कुछ विषय में अच्छा तो कुछ में 28 नंबर वाला प्रदर्शन रहा । बुरा लगता है कहते हुए पर thermal वाले विषय सरर्दद का कारण बनते रहे हैं । ख़ैर अगर इंजिनियरिंग पढ़ाई बस होती हैं, तो आज बात सब्जेक्ट और किताबों पर बात होती । बीते इन सालों में, हर साल कुछ न कुछ कारण खास रहा और वही खास बातें आने वाले सालों में याद रहेंगी। 

इंजीनियरिंग का अंतिम साल इम्तिहान लेकर आया । बाकी के 3 वर्ष  हमने पढ़ाई लिखाई मौज मस्ती और अन्य चीजों में निकाल दिये लेकिन चौथा उन सबसे अलग निकला। पूरे 3 साल की अग्नि परीक्षा इस चौथे वर्ष में देनी थी तो सबसे पहले सामना होगा गेट के एग्जाम का.....सच कहूं तो रटे ज्ञान से सेमेस्टर निकले ऐसे में कैसे अपेक्षा की जा सकती हैं कि इंजीनियरिंग के सबसे पड़े एग्जाम को बिना अच्छे से पढ़े कैसे निकला जाए, सच का पता तो उसी समय लग गया जब गेट का पेपर दिखा । 
इंजीनियरिंग की एक और खास बात की ये शायद हमें परिपक्व बना देता है हम अपने जीवन के प्रति सोचने समझने के लिए तैयार कर देता है । चौथे साल में जब यह अपने अंत के नजदीक होता हैं तो हमें अपने आने वाली ज़िन्दगी के प्रति चिंता होने लगी हैं 

गेट के एग्जाम के बाद यह समझने में देर न लगी कि जितना आसान हम चीजों को समझते हैं उतनी यह होती नहीं । इंजीनियरिंग के बाद मुख्यत: दो ही रास्ते होते हैं या तो टेक्निकल या नॉन- टेक्निकल । और भी रास्ते होते हैं लेकिन मुख्यत : इंजीनियरिंग के बच्चे इन्हीं में सही किसी एक को चुनते हैं । अब टेक्निकल तो इतना अच्छा हैं नहीं जो आगे बढ़ा जाए तो नॉन- टेक्निकल ही सही । लेकिन बस रास्ता चुन लेने से मुश्किलें आसान हो जाती तो बात क्या थी । कुछ सरकारी नौकरी के पेपर भी दिए । लेकिन उनसे भी बात न बनी । देश की बेरोजगारी उसी दिन नजर आ गई, जिस दिन मैंने पेपर दिए ।
2000 पदों की भर्ती के लिए आवेदन आमंत्रित किए गए थे लेकिन में जिस जगह परीक्षा देने गए था वहां ही करीबन 2000 लोगो पेपर देने आए थे । जब एक छोटे से शहर में इतने लोग पेपर देने आए थे तो पूरे देश में.....🥺। ऐसा भी नहीं हैं कि ऐसे पेपर आसन होते हैं । भले ही पेपर क्लर्क के पद का ही क्यूं न हो पर पेपर किसी यूपीएससी परीक्षा से कम नहीं लगता । एक बार में तो पेपर निकालना मेरे लिए तो लगभग नामुमकिन लग रहा था । शायद कई सालों की मेहनत इसे आसान बना दें ।अक्सर सच्चाई का आभास होने पर बुरा लगता है । अपनी जमीनी हकीकत जान के अच्छा तो महसूस नहीं हो रहा था । लेकिन क्या करें .... यही सच्चाई है 🤐

थोड़ी बहुत जो कसर बची थी उसे कॉलेज के कैंपस (प्लेसमेंट) ने पूरी कर दी। कुछ कंपनी में तो मैंने भी किस्मत आजमाई । शुरू-शुरू के कुछ कंपनी में न चुने जाने पर उतना अफसोस नहीं होता था क्यूंकि कंपनी आती ही थी 
2-4 को लेने और यहां भीड़ 200-400 वाली होती थी । खैर बेहतर होते तो वो 2-4 में भी आ सकते थे । मैं इन सब के लिए पूरी तरीके से किस्मत को दोष नहीं देता कुछ गलती हमारी भी रही होगी कि हम शायद उस काबिल नहीं बन पाए । आखिर -आखिर की कंपनियों ने तो उत्साह के साथ-साथ धैर्य भी छीन लिया । वो रोज की असफलता या यूं कहे तो रोज-रोज कैंपस में बैठना और सिलेक्ट न होना, निराशा का कारण बनता जा रहा था आजकल के बच्चे इसे डिप्रेशन कहते हैं । आख़िरी महीने के आते-आते मैंने ऐसे प्लेसमेंट्स में मैंने जाना बंद कर दिया । अब इतना कुछ होने के बाद मन भी नहीं करता कि ऐसे चीजों में बात किया जाए । 

खैर जो भी था, जैसे भी था इंजीनियरिंग अपने अंत पर हैं । आख़िरी सेमेस्टर, आख़िरी बार वो रात तक जग कर पढ़ाई, आख़िरी बार पेपर देना, दोस्तों से लड़ना । सब कुछ आख़िरी बार किसी पिक्चर में स्लो मोशन की तरह बीत रहा ।

और जब यह समाप्त हो रहा तो मुझे भय हैं कि मैं वापस वहां न पहुंच जाऊं जहां से मैंने शुरुआत की थी । इसकी वजह शायद यह हैं कि जब मैंने शुरुआत की थी तब मुझे अपना भविष्य बिल्कुल धुंधला नजर आता था यूं तो शायद इंजीनियरिंग मिलने पर इन सब बातों को भूल गया था या यूं कहां जाए तो मैंने और भी चीजों में मन लगा दिया था । और अब जब इंजीनियरिंग अपने अंत पर है तो फिर से वही छवि नजर आती है भविष्य बिल्कुल धुंधला सा नजर आता है मन में बहुत से सवाल है, अपने जीवन के प्रति, अपने कर्तव्यों के प्रति, अपने लक्ष्य के प्रति....न जाने आगे सब कैसा होगा ... भय सताता है। खुशी की बात तो ये है कि सपने तो बहुत से है बस अब उन रास्तों में चलना ज़रा कठिन सा लगता है ।


इन बीते 4 सालों में बहुत कुछ बदला है अपने आप को समझने लगा हूं, जानने लगा हूं, थोड़ा बहुत लिख भी लेता हूं, यूट्यूब पर वीडियो बनाने के बारे में भी जानता हूं । लेकिन मुझे खुद नहीं पता कि मैं अब इन चीजों को आगे जारी रख पाऊंगा कि नहीं । बहुत सी चीजें ऐसी है जो शायद इंजीनियरिंग के बाद खत्म हो जाएगी और लगता है कि यह वही चीजें होंगी जो मुझे दूसरों से अलग करती है । ऐसा नहीं है कि मैं हार मान रहा हूं लेकिन इन सब चीजों का अब भरोसा नहीं कि मैं इसे कब तक जारी रख पाऊं, कुछ कठिन फैसले लेने पड़ते हैं और ये शायद उन्हीं में से एक हों । और भी बहुत कुछ है जो की बदलने वाला है लेकिन क्या होंगे वो.... ये तो वक्त ही बताएगा कि कब, क्या चीजें बदलती है और क्या नहीं ।😔


बहुत कुछ चीजे ऐसी हैं जिनपर अब कॉलेज के बाद विचार- विमर्श करना हैं कि क्या गलतियां हुई और क्या नहीं । क्या फैसले सही लिए और क्या ग़लत । और शायद आज मेरे लिखने की वजह भी यही है । मुझे नहीं पता की इस ब्लॉग को कोई पढ़ने वाला भी है या नहीं लेकिन कुछ चीजें मेरे लिए भी जरूरी है कि उन्हें संस्मरण के तौर पर यादों के अलावा लेखन-कला की पोटली में संभाल कर रखूं । क्या पता ये आगे चलकर मेरे लिए काम आ जाए 🙃

यूं कहा जाए तो मैंने अपने 4 साल के इंजीनियरिंग को संक्षिप्त रूप में अक्षरों में गढ़ा है, हालांकि यह संक्षिप्त भी अब 
4000 शब्दों के ऊपर है । लेकिन क्या करें लिखने की आदत भी तो इंजीनियरिंग से ही पड़ी है ।😉

धन्यवाद आपका आपने ब्लॉग को और मुझे समय दिया । 😌



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