❤️ साइकिल वाला प्यार ❤️


उपरोक्त कहानी मे की गयी बातों का वास्तविकता से पूरा-पूरा संबंध हैं, ये कहानी किसी अन्य व्यक्ति से ली गयी हैं उसकी आत्मजीवनी के कुछ पलों को संकलित कर यहाँ कहानी मे प्रस्तुत किया गया हैं । कहानी को मनोरंजन की दृष्टि से थोड़ा घूमा-फिरा के पेश किया गया हैं, लेकिन कोशि की गयी हैं की कहानी की वास्तविकता पूर्ण रूप से कायम रहे ।
यह कहानी उस व्यक्ति विशेष से अनुमति लेकर लिखीयी हैं । कहानी पूरी तरीके से ऐसा लिखा गया हैं मानो उस व्यक्ति ने स्वयं लिखी हों ।

इस कहानी मे शब्द मेरे हैं, लेकिन भावनाए किसी और की हैं - लेखक (प्रेम नारायण साहू)


ज़िन्दगी में प्यार तो बहुत मिलता हैं, लेकिन आप उस प्यार की कितनी अहमियत देते हैं वो तो आप पर निर्भर करता हैं । मुझे आज भी याद हैं ,वो पुराने स्कूल के दिनों की बातें , जब मौज-मस्ती में दिन गुजर जाया कर जाते थे । मैं बहुत मस्त-मौला हुआ करता था, न कल की फिक्र होती थी न आज का डर । खेल-कूद, पढ़ाई, वाद-विवाद और बहुत सी चीजों मे, मैं बड़ा ही रुचि रखा करता था । स्कूल मे मेरी छवि एक पढ़ने वाले और मज़ाकिया किस्म की थी । लोगों को मेरा यही अंदाज़ पसंद आता था । स्कूल मे शिक्षक मुझे क्लास में तो पसंद कर लेते थे लेकिन बाहर मुझे वो बदमाश बच्चे की नज़र से देखा करते थे, पर फिर भी मुझे इस बात को कोई फिक्र न थी । दोस्तों की दोस्ती और टीचर की लाड़, अवहेलना दोनों मिल रही थी, ऐसे ही दिन कट रहे थे । तभी कुछ ऐसा हुआ जिसने आज तक मेरे जहन मे उस बात की यादें ताजा कर रखी हैं ।

कहते हैं की आपको अपना पहला प्यार स्कूल के दिनों में ही मिलता हैं  और तभी अचानक एक दिन वह भी आ गया जहां मुझे एहसास हो गया कि आखिर प्यार क्या होता हैं । ये उन दिनो की बात हैं जब हमारे स्कूल मे विषय चयन के चलते बहुत से नये लोगों(विद्यार्थी) ने दाखिला लिया हुआ था, मैंने उस साल गणित का विषय अपनी आगे आने वाली कक्षाओ के लिए चयन किया था । बहुत से नये लोगों ने कॉमर्स के विषय के कारण स्कूल मे आए थे ऐसे मे स्कूल मे एक नया-नयापन सा लग रहा था ।

मुझे वो दिन अच्छे से याद हैं, जब मैं बरामदे में अपने दोस्तों के साथ बैठा था, तभी मेरी नज़र कॉमर्स की एक लड़की पर पड़ी । भले गणित का विद्यार्थी था , लेकिन सुंदरता से तो मैं भी प्रभावित होता था .... उस दो टूक में मेरी आँखें बिना पलक झपकाए उसे देख रही थी, ऐसा नहीं था की उस लड़की को मैं पहली बार देख रहा था लेकिन आज कुछ बात अलग सी ही थी । न जाने कैसे मैं उस कुछ समय अंतराल के लिए उस लड़की से नज़र हटा ही नहीं पा रहा था ।

शायद पहली नजर का पहला प्यार ही सही,  मेरी इस आंख-मिचोली को मेरा उटपटांग मित्र बड़ी बेताबी से देख रहा था शायद उसे मुझे चिढ़ाने का एक और मौका मिल गया था इस आंखों देखा देखी के बाद मेरे बिना पूछे ही वो उस लड़की के बारे में सारी बातें बताने लगा की वह किस क्लास में पड़ती हैं, कहाँ रहती हैं वैगेरह-वैगेरह । दिन बीत-कर खत्म होने लगा ,और स्कूल की छुट्टी हुई - हालंकि इंतज़ार तो नहीं पर बेचैनी जरूर थी की उसकी एक झलक मिल जाये । और ये क्या, और वो मुझे दिख ही गयी- पिंक कलर की लेडी बर्ड साइकिल में । इतने में मेरा वो ऊटपटांग मित्र आकर मेरे इस भोलेपन पर ठहाके लगा के हसने लगा । मेरी कभी आदत नहीं थी की लोगो का बिना जवाब दिये जाऊँ लेकिन आज चुप्पी में ही अपनी भलाई समझ रहा था । वो मेरी इस दशा को कमजोरी समझ मुझे चिड़ाने लगा । चलते-चलते उसने मुझे कई दफा ये बात कह कर चिड़ाया होगा, मैं उसकी बातों को अनदेखा कर रहा था , कभी-कभी तो मुझे लगता था की पता नहीं मैंने कैसे उसे अपना दोस्त बना लिया, लेकिन दोस्त तो ऊटपटांग ही होते हैं । उसके ये चिड़ाने के सिलसिले से परेशान होकर मैंने भी थोड़ी बातें करनी शुरू की ।

मेरे दोस्त को इस बात से शक था की मैं उस लड़की से कभी बात नहीं कर पाऊँगा, क्यूकी मैं गणित लेकर पढ़ रहा था और मेरा दोस्त कॉमर्स ।  ऐसा नहीं था की मैं बात नहीं कर सकता था लेकिन मैं ऐसे इन चीजों को आगे नहीं बढ़ाना चाहता था , लेकिन उसकी इस चिढ़कपन को खत्म करने के लिए मैंने भी शर्त लगा ली की मैं उस लड़की से बात करके भी दिखाऊँगा और उसका मोबाइल नंबर भी मांग कर दिखा दूंगा ।  मेरे दोस्त को इस बात का गुरूर था की मेरे जैसा सामान्य लड़का ये सब नहीं कर सकता , उसके इस गुरूर को तोड़ने हम दोनों में सहमति बनी की हम मे से जो पहले उस लड़की से बात कर नंबर मांग कर दिखाएगा वो ही जीतेगा ।

और आखिरकार प्यार की बाजी लग ही गयी, मैंने भी ताव में आकर कह दिया कि- मैं उस लड़की से पहले नंबर मांग कर दिखा दूंगा, हालांकि दिल ऐसा करना तो नही चाहता था, क्योंकि कहीं न कहीं मैं इस छुप-छुपाओ के चीजो में आनंद लेने लगा था, लेकिन आज बात मेरी काबिलियत पर थी, मुझे सब पढ़ाकू बच्चे की नज़र से देखते थे ऐसे में एक लड़की से बात कर के मैं अपनी इमेज बनाना चाहता था ।

हमारी शर्त लगी बातों का सिलसिला शुरू हो गया, मैं और मेरा मित्र दोनो अपनी जोर अजमाइश में लगे थे कि पहले लड़की से बात शुरू हो । मैंने भी अपने तरफ से प्रयत्न शुरू किए, स्कूल मे चर्चित होने के कारण मेरी जान-पहचान हर क्लास के क्लास-कैप्टन से थी, जिस क्लास मे वो पड़ती थी, वहाँ से मैने अपनी एक सहेली मित्र को चुना जो मुझसे मेरी जान-पहचान उस लड़की से करा सके । बातों-बात मे पता चला की लड़की का नाम पुनिता हैं, और पास के ही सेक्टर मे वह रहती हैं । धीरे-धीरे दोस्तों की मदद से मेरी बातचीत प्रारंभ हुई, बात करने मे तो मेरे ऊटपटांग मित्र ने बाजी मर ली ।

लेकिन मुझे थोड़ा वक्त लग गया उससे बात-चीत शुरू करने मे, धीरे-धीरे हमारी बातचीतें बढ़ने लगी ... हमारे मुख्य मुलाक़ात का समय स्कूल से छुट्टी के समय का था, हम दोनों के घर अलग-अलग आमने सामने के सेक्टर मे थे । पुनिता के सड़क तक मैं उसके साथ बात करते जाया करता था और उसके बाद मैं अपने सेक्टर जाता था । रोज की इस साइकिल वाली बाती मे मजा आने लगा था, उसकी बातों से मेरा रस्ता कट जाता था । ज़्यादातर स्कूल के लोग और संगी-साथी उन्ही आस-पास के सेक्टरों से थे, तो उन्हे मेरी और पुनिता की ये मुलाक़ात दिखने लगी , कुछ ही दिनों मे बात फैलने लगी । अब हर कोई मेरे और पुनिता के बारे मे कहने लगा था । इस बात को मैं और पुनिता भी समझते थे की ये सब होना लाज़मी हैं लेकिन हम दोनों ने आपस मे एक दोस्त से ज्यादा नहीं सोंचा, लोग आकर हमें चिड़ाते हम उनसे यही कहते की हम दोस्त हैं करके ।

और अंत मे मेरे और ऊटपटांग उस दोस्त मे जीत मेरी हुई, हालांकि बात उसने पहले शुरू की लेकिन पुनिता का रुझान मेरे तरफ ज्यादा था और मुझे कुछ दिनों मे उसका मोबाइल नंबर भी मिल गया । लेकिन बात यहाँ खत्म नहीं हुई ।

ये तो पुनिता और मैं दोनों जानते थे की हमारा ये मिलना , साथ मे घर जाना , सुबह की हाय , शाम की गुड-बाय मोबाइल के पे वो सारे sms ऐसे ही नहीं थे । भले हम एक दुसरे को ये जाता रहे थे की हम दोस्त हैं , दुनिया को बता रहे थे की दोस्त हैं । लेकिन मन ही मन हम दोनों जानते थे की ये दोस्ती से बढ़ कर हैं ।

देखते ही देखते दिन गुजरने लगे, लोगों ने बोलना थोड़ा कम कर दिया , हमारी रोज की मुलाकते जारी थी , सुबह की गुड- मॉर्निंग से दिन की शुरुआत होती थी अब तो हमने पने स्कूल जाने का वक्त भी एक सा कर लिया था जिससे म साथ मे आ-जा सके । घर आने के बाद भी हमारी बातें खत्म ही नहीं होती थी । अब तो दिन के 100 sms भी कम पड़ने लगे थे । हम दोनों की बातें मुलाकातें का असर हम दोनों पर पड़ने लगा था पुनिता की कुछ बातें मेरे में और मेरी आदतें पुनिता भी अपनाने लगी थी । मेरे कुछ शौक को उसने भी अपना लिया था ।

इस कुछ दिनों के समय अंतराल मे मैंने बहुत कुछ महसूस किया, चाहे वो बदलते व्यवहार की हो या बदले मिजाज की हो । मैंने अपने अंदर मे खासा बदलाव देखा, कल तक चीजों से बेपरवाह मैं अब थोड़ा गंभीर स्वभाव का होने लगा था, कल तक मेरे लिए क्लास का मॉनिटर या स्कूल का प्रतिनिधि कोइ बड़ी बात नहीं थी लेकिन अब कोई मुझमे वो गुण देखने लगा था , अब किसी को फर्क पड़ता था की मैं उस किरदार को कितना हद तक निभा रहा हूँ । और यही चीजे मुझे बदल रही थी । पुनिता के बदलता हर एक स्वभाव मेरे प्रति कुछ अलग था । मेरे आलवा पुनिता भी बदलने लगी थी । अब पुनिता अपना हर काम मेरे से पूछकर या मेरे जैसा करने लगी थी , शायद वह अपनी दुनिया मेरे आस-पास बनाने लगी थी , चाहे वह कपड़े का कलर हो या मोबाइल की पसंद मुझे पुछ कर करने लगी थी । उसने मेरे जैसा ही मोबाइल खरीदा और गाड़ी भी एक दम एक जैसी मिलती जुलती । जबकि उसके पापा उसे वैसी गाड़ी नहीं दिलाना चाहते थे, लेकिन उसने पुराने मोडल के लाल-रंग की स्कूटी को ही अपनी पसंद बनाया क्यूकी वैसी ही गाड़ी मेरे पास ही थी । पुनिता का ऐसा व्यवहार मेरे लिए थोड़ा अलग था । वो पल भी कुछ अलग हो जाता हैं, जब आपकी एहमियत, आपसे ज्यादा कोई और करने लगता हैं, आपको हर बात पर प्राथमिकता देना, आपकी कदर , आपका ख्याल करना सब कुछ एक सुखद और प्यारा अनुभव देता हैं । मेरे लिए ये सब बहुत अलग था , खासकर किसी ऐसे से जिससे मे पिछले 2-3 महीने पहले जानता भी नहीं था ।


देखते ही देखते स्कूल के वो सत्र का आखिरी दौर आ गया , मुझे वो 26 जनवरी की बात याद हैं जब शायद पुनिता के पहले अनुग्रह को मैंने ठुकराया था । एक दिन पहले पुनिता ने मुझे sms कर पूछा की कल की परेड देखने हम साथ मे उसके गाड़ी मे जाएँगे । मैंने मज़ाक-मज़ाक मे हाँ कह दिया , मैंने सोंचा नहीं था की ये शायद क्या परिणाम निकालेगा । अगले दिन की तयारी पुनिता ने पहले ही शुरू कर दीं ,अपनी गाड़ी को धोना-पोंछना , साथ मे ले जाने के लिए खाने की सामाग्री वैगेरह-वैगेरह । मैं तो सब कुछ मज़ाक मे ही ले रहा था लेकिन जब उसने ये सब बातें बताई तो मन कुछ डगमगा सा गया । एक दिन पहले तक तक तो बातें सब हाँ मे थी , लेकिन रात तक मेरा मन इसके लिए ना” हीं कह रहा था । सुबह हुई , 26 जनवरी का दिन था उस दिन स्कूल सुबह को लगी और सुबह से ही पुनिता पूरे खुश-मिजाज मे थी । मैं उसे ऐसे देखकर कुछ भी नहीं कह पा रहा था, उसे लग रहा था की आज की स्कूल के बाद मैं उसके साथ परेड देखने जाऊंगा । मैंने इन सब से निकलना सहीं समझा , वो मेरा इंतज़ार करती रही और मैं स्कूल खत्म होते ही वहाँ से निकल कर घर गया । मेरे ऐसे बर्ताव से वो मुझसे कुछ नाराज़ हुई , लेकिन मेरे बहाने बनाने से वो उसे सच मान कर नाराजगी छोड़ी । लेकिन अब मैं समझने लगा था की पुनिता हमारे इस रिश्ते एक कदम आगे ले जाना चाहती हैं , वो कहीं न कहीं इन मेल-मुलाकातों को प्यार समझने लगी थी । वो शायद गलत नहीं थी लेकिन मैं इस रिश्ते को आगे इस हद तक नहीं बढ़ाना चाहता था ।

अब आए दिन कुछ न कुछ ऐसा होता , जिससे मुझे ये सब महसूस होने लगा था । पुनिता की सहेलियाँ जो मुझे जानती थी आक कहती थी की मैं पुनिता को प्रपोज़ करूँ या उससे इस रिश्ते के प्रति बात करूँ । उनकी बातें समझाइश कम और हिदायत ज्यादा लगती थी । पुनिता का मेरे प्रति झुकाव हर किसी को दिखने लगा था । लेकिन कोई मेरी सुनना नहीं चाहता था मैं शायद ऐसे किसी रिश्ते मे रहना ही नहीं चाहता था ।

ऐसा नहीं था की मैं पुनिता को पसंद नहीं करता था लेकिन मैं रोज की मुलाकातों से खुश था, मुझे इन सरल चीजों को कठिन नहीं बनाना था । लेकिन बढ़ते दिनो के साथ, चूंकि मैं अब कहीं न कहीं पुनिता से दूरी बनाने लगा था, ऐसे में पुनिता भी मेरे बदलते बदलाव को महसूस करने लगी थी , वो मुझे बार-बार अपने दिल की बात कहने को कहती थी । लेकिन जो मेरे दिल मे था उसे कोई सुनना या समझना भी नहीं चाहता था ।

स्कूल के दिन भी खत्म होने पर थे, धीरे-धीरे मेरे और पुनिता के बीच की बातें मुलाकतें कम होने लगी थी । कहीं न कहीं मेरा मन अब इस रिश्ते के प्रति एक दूरी बनाने की कोशिश कर रहा था । वो sms का जवाब न देना , आते वक्त भी मेरा और पुनिता का साथ न आना ... देखते ही देखते हमारी दूरियाँ बढ़ने लगी, शुरू-शुरू मे पुनिता ने काफी प्रयास किया की हम दोबारा वैसे रह सकें लेकिन फिसलते डोर की तरह हमारे बीच सब कुछ खत्म होता चला गया । बातें, मेल-मुलाकातें, मिलना-जुलना , साइकिल सावरी की गपशप, सब कुछ खत्म हो गया । शायद मैंने उस समय मे ये सब महसूस नहीं किया बस वक्त क साथ चीजें हालत पर छोड़ दी । स्कूल खत्म हो गये और उसके बाद मैं पुनिता को दोबारा देख भी नहीं पाया । कभी कभी मन करता की मुलाक़ात वैगेरह कर लूँ लेकिन कभी वैसे हालत ही बन नही पाये ।

बहुत दिनो बाद मैंने पुनिता को एक मेले पर देखा , वो देखकर मुस्कुराई मैं कुछ बात करता उससे पहले वो चल पड़ी। उसके बाद आज तक उससे रूबरू होने का मौका ही नहीं मिला । उसके दोस्तों से पता चला की, मेरे जाने के बाद बहुत दिनो तक वो दुखी थी, लेकिन बाद मे ठीक हो गयी । कहते हैं की ज़िंदगी की खाली जगह को भरना बहुत ही जरूरी होता हैं वरना दुख और तकलीफ उसमे अपना आसरा बना लेती हैं पुनिता ने भी वक्त्त के साथ अपनी जीवन की उस खाली जगह को प्यार से भर लिया । सुना हैं की वो अब वो खुश हैं उसके साथ ।

मेरी कहानी जानने वाले कुछ लोग मुझे आज भी कई बातें कहते हैं, किसी-किसी के लिए मेरा वो निर्णय सही था और किसी-किसी और के लिए वो गलत । लेकिन आज भी मेरे मन मे स बात पे एक मौन निर्णय हैं मैं खुद भी नहीं जनता की मैंने सहीं किया या गलत । मन की शांति आज भी उस सवाल का जवाब ढूंढती हैं ।
जो भी हो लेकिन उन दिनों की हर बातें आज भी एकदम ताज़ा नज़र आती हैं  । साइकिल वाला वो हर एक एहसास कुछ अलग ही था ।

-       अज्ञात


मैं उम्मीद करता हूं कि आज की कहानी आपको पसंद आई होगी, इस कहानी को लिखने का मकसद केवल और केवल प्यार के एक और प्रारूप को प्रदर्शित करना है । यह कहानी लेखक के केवल और केवल, लेखन-कला को प्रदर्शित करना हैं । कृपया अनुरोध हैं की कहानी की दुरुपयोग न करें और इस कहानी के पीछे छुपी वास्तविकता को उजागर करने का भी प्रयत्न न करें । कहानी और उस व्यक्ति विशेष की गरिमा बनाये रखे । लेख मे प्रयुक्त चित्र इंटरनेट से लिए गए हैं  ।
कहानी पढ़ने के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद ।


प्रेम नारायण साहू 

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